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Showing posts from January, 2021

शिल्पाचायॅ मण्डन सूत्रधार

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शिल्पाचायॅ मण्डन सूत्रधार शिल्पाचायॅ मंडन सूत्रधार जी महाराणा कुंभा (1433-1468 ई.) के प्रधान सूत्रधार (वास्तुविद) तथा मूर्तिशास्त्री थे । यह मेदपाट (मेवाड़) का रहने वाले थे । रूपमंडन में मूर्तिविधान की  अच्छी विवेचना प्रस्तुत की है। मंडन सूत्रधार केवल शास्त्रज्ञ ही नहीं थे , अपितु उनको वास्तुशास्त्र का प्रयोगात्मक अनुभव भी था। चित्तौड़गढ़ नरेश महाराणा कुंभा के स्थापत्य कला के प्रख्यात आचार्य थे। कुंभलमेर का दुर्ग, आबू जैन महल आदि का सृजन इन्हीं की कृतियां हैं।  इनके पिता जी का नाम षेत या क्षेत्र था जो संभवत: गुजराती थे और राणा कुंभाश् के शासन के पूर्व ही गुजरात से जाकर मेवाड़ में बस गए थे । मंडन सूत्रधार वास्तुशास्त्र का प्रकांड पडित तथा शास्त्रप्रणेता थे । इसने पूर्वप्रचलित शिल्पशास्त्रीय मान्यताओं का पर्याप्त अध्ययन किया था। इसकी कृतियों में मत्स्यपुराण से लेकर अपराजितपृच्छा और हेमाद्रि तथा गोपाल के संकलनों का प्रभाव था। काशी के कवींद्राचार्य (17वीं शती) की सूची में इसके ग्रंथों की नामावली मिलती है। मंडन की रचनाएँ निम्नलिखित हैं- देवतामूर्ति प्रकरण प्रासादमंडन राजबल्लभ वा

विश्वकर्मा तंत्रोक्त मंत्र

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विश्वकर्मा तंत्रोक्त मंत्र (कौलक्रम अनुसार ) ॐ नमस्ते-नमस्ते कंबीघराय ॐ आघ्रात्मने श्री भूकल्पाय श्री विश्वबल्लभे विश्वकर्मणे आगच्छ-आगच्छ कला-कौशलं वरं प्रयच्छ- वरं प्रयच्छ।  कौलान्तक पीठ हिमालय' प्रस्तुत करता है 'कौलक्रमानुसार' 'विश्वकर्मा तंत्रोक्त मंत्र '  ये मंत्र 'विद्या और कलाओं' में निपुणता के साथ-साथ, भवन-वाहन आदि का सुख भी प्रदान करता है। निर्माण कलाओं और आवष्कारों व नए विचारों सहित 'भगवान विश्वकर्मा जी' को प्रसन्न करने के लिए इस स्तुति मंत्र को साधा जाता है। बिना 'विश्वकर्मा' के निर्माण सिद्धि अधूरी रहती है।  आशा है कि आपको प्रस्तुत मंत्र विशेष लाभ प्रदान करेगा व आपको जीवन में सफलताएं प्राप्त होंगी।  - मयूर मिस्त्री (गुजरात) विश्वकर्मा साहित्य भारत सन्दर्भ - कौलान्तक पीठ टीम - हिमालय

वेदो का विश्वास है पुराण....

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वेदो का विश्वास है पुराण.... वेदो का विश्वास है पुराण.... मुनि ओ की आस है पुराण...  कर्म और कौशल्य हे पुराण.... हर पंक्तिओ मे ज्ञान हे पुराण.... वंशज को राह देती पुराण.... समाज का हित है पुराण....  श्रुष्टि का सर्जन हे पुराण....  प्रभु का स्मरण हे पुराण....  शक्ति एवं साधना हे पुराण....  जीवन का मर्म हे पुराण....  औज़ार में ताकत दे पुराण....  घरघर रखे जब पुराण....  श्री विश्वकर्मा प्रभु की पुराण  एकता और अखंडता का संदेश हे पुराण  मयूर मिस्त्री गुजरात

विश्वकर्मा मंदिर एक सामाजिक धरोहर

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विश्वकर्मा मंदिर एक सामाजिक धरोहर भारतीय संस्कृति के हिसाब से देखा जाए तो कोई भी समाज के एकता का स्थल मंदिर होता है हम इसी विषय पर कुछ बाते यह लेख के अनुसार बताना चाहते हैं।  विश्वकर्मा समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कोई भी प्रकार के कार्यक्रम ज्यादातर मंदिरो मे ही रखे जाते हैं वह इसीलिए की हम प्रभु विश्वकर्मा जी के सानिध्य मे हर सम्भव नए सामाजिक कार्य उनके आशिर्वाद से अच्छे कर सके। आराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह या देवस्थान ही मंदिर है। जहां अपने सम्प्रदाय, धर्म या विश्वकमिॅय परंपराएं विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य आचार्य या धर्मगुरु अपने समाज के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं जिससे विश्वकर्मा समाज के मानने वालों का हित हो और उन्हें पता चल सके कि उनके समाज की संस्कृति क्या है।  विश्वकर्मा मन्दिरों के निर्माण का उत्तरोत्तर विकास दृष्टिगोचर होता है। पहले लकड़ी के मन्दिर बनाते थे या बनते होंगे लेकिन जल्दी ही भारत के अनेक स्थानों पर पत्थर और ईंटो से मन्दिर बनने लगे। 7वीं शताब्दि तक देश के आ

पुस्तकें

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पुस्तकें  पुस्तकें जीवन को बनाती है बनकर खिताब ,  रचनात्मक ज़िन्दगी के रंग दिखाती है पुस्तकें,  देती है दर्शन, ढूंढ लेता उसमे मार्गदर्शन,  सच्चाई पर ही अमल करना सिखाती है पुस्तकें,  हम को सिखाती है सृजन कर्म कौशल,  रौशनी आँखों की रोशन करती है पुस्तके,  धर्म कर्म मर्म शर्म इनके अलंकार है।  हर रूप में नित निराले श्रींगार सजे पुस्तके,  रचना गीत काव्य कविता के राग है पुस्तक,  महकती खुशबु की तरह साँसो में आती है पुस्तकें,  कागज़ो पर लिखते रहता है मनपसंद मयूरा,  शाही के सिंचन से पन्ने, फूल बनाती है पुस्तके,  कभी ग्रंथ कभी किताब कभी तू प्रणालिका,  ग्रंथालय की राज - रानी कहलाती है पुस्तकें,  मयूर मिस्त्री (मनपसंद)

बस पसंद तेरी मेरी है.....

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बस पसंद तेरी मेरी है..... समाज सभी के लिए एक ही है..                 ...पर... कुछ उसमें से प्रतिष्ठा ढूंढते है.... कुछ उसमें से सम्मान ढूंढते है.....                  ....और.... कुछ सिर्फ समाज के पदाधिकारी बनते है..... ज़िदगी भी...समाज दर्पण की भांति ही है... यह सिर्फ हम पर ही निर्भर करता है कि.... इस समाज से हम क्या पाना चाहते है...  सेवा, विकास, सहयोग, साहित्य, सहकार, शिक्षा, ज्ञान, विचार, विरोध, व्यवहार, रोजगार, वैभव, समर्पण, सत्कार, सौहार्द, कौशल, कला, योजना। क्रांति, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, नेतृत्व, आदि...      हमें क्या ढूंढ़ना है..... आप खुद उस सूत्र से विमुख नहीं... बस पसंद तेरी मेरी हे.... रचना - मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत

जय विश्वकर्मा का नारा गूंजाते चलो,

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जय विश्वकर्मा का नारा गूंजाते चलो,  सामाजिक सोच सह उत्साह- उल्लास ले चलो,  जीत ली है हारी बाज़ी, मन में यह विश्वास ले चलो,  उलझनें-अपवाद-अपमान को ढेर करते चलो,  हों बाधाएं कितनी पथ में, समाज में मुस्कान बनाए चलो,  आंतरिक भरी ऊर्जा बेमिसाल, प्रचार निरंतर करते चलो , डटकर, चुनौतियों से लड़कर, जीतेंगे सारा संसार,  एसी नीव हर कदम बनाकर चलो,  लें संकल्प समाज सृजन का मन में, उम्मीदों से हो भरपूर, ठान लें पक्के राही , एक दूजे को थामे चले चलो,  फैलाओ ज्ञान और साहित्य समाज में , जय विश्वकर्मा का नारा गूंजाते चलो,  ©मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत

एक रोज़ नजर थम सी गई उस फव्वारे पर,

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एक रोज़ नजर थम सी गई उस फव्वारे पर, एक रोज़ नजर थम सी गई उस फव्वारे पर, जो फैलाए बूंदे रंगीन जमीन पर, ध्यान रख बूँदों पर नहीं भेद उनके छींटाव पर, समुह बनाए चलता है बनकर एकता के ध्येय पर, आज़माकर देख उस समुह को जो बिखरा है ज़मी पर, जो दिखाता एकजुट हे गिरता है खुद ज़मीर पर,  हवा में भी बिखरती है बूंद, बहती धार एकरूप पर,  देख ठान उस फव्वारे से, भीतर भर्रा दबाव पर,  यंत्र गतिमान करते रखता है जो चलता है लक्ष्य पर,  सुन उस बूँदों की आवाज होती है एक ताल पर,  रंग उन बूँदों के थे हज़ारों, लगते मोती धरातल पर,  बन जाऊँ मोती, या बन जाऊँ यंत्र रहूँगा एक समुह पर,  तरीके, तारण, तारीफे होते हैं सन्मान पर, हो निडर मन बूँदों जैसा, कर दिखा समुह ज़मी पर, एक रोज़ नजर थम सी गई उस फव्वारे पर, जो फैलाए बूंदे रंगीन जमीन पर, ©️मयूर मिस्त्री (मनपसंद)

हाँ...! मैंने देखा है भारत

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हाँ...! मैंने देखा है भारत खिलखिलाती नदियों में मिलते लाल रंग का भारत,  पहाड़ों को चीरती मदद की चिल्लाहट का भारत, पिछड़े गांवों में असुविधाओं से भरे बचपन का भारत, भाषा की खींचतान मे बंटवारे का भारत, कौमी दंगों के बीच एकता के नारों का भारत, राजनीतिक ख़ुर्शी के नीचे डगमगाता भारत, निर्वस्त्र हुए संस्कारों मे भिगा मदिरा का भारत, उलझे सुलझे इशारों पर टिके सैनिकों का भारत, दानवीरों की भूमि में सिसकती भुख का भारत,  पानी, जंगल और संस्कार से लुप्त होता भारत,  सही दिख रहा है आधा समुन्दर मे डूबा भारत, सोचा नहीं एसा देख रहा हू भारत,  हाँ...! मैंने देखा है भारत, ©️मयूर मिस्त्री (मनपसंद)

ध्यान ही सृजन, कर्म ही सृजन

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ध्यान ही सृजन, कर्म ही सृजन  कर्म .... कौशल के सारे दिनों में कोई कोई क्षण ही होता है कलाकृति, अद्वितीय सृजन ही जिसमें.... अपनी ही ऊर्जा से मेघ वसुंधरा पर छाये जाते हैं शीत लहरे,  सृजन ही जिसमें....  अलंकार का समूचा दर्द उतर आता है उसके धातु पत्र में,  सृजन ही जिसमें.... अग्नि की व्याकुल प्रतिक्षा यज्ञ से अपेक्षा है सृजन ही जिसमें.... लौह तडपकर बनता है पुष्पक गति अनुवाद ... सृजन ही जिसमें.... पत्थरों के सीने से राम,  लिख उभर आती है नल सेतु,  सृजन ही जिसमें.... संख्य असंख्य अस्त्र,  विश्वकर्मा ही अंग हर क्षण हे,  सृजन ही जिसमें.... सुवर्ण लंक ही राख में  फिर जन्म दारूकवन अखूट,  कोई कोई क्षण ही होता है सृजन ही जिसमें.... पाते हर पल देवशिल्पी अपरम्पार, मयूर मिस्त्री गुजरात विश्वकर्मा साहित्य भारत

अदृश्य सत्य की दृष्ट छाया को व्यक्त करने वाला “कलाकार”

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अदृश्य सत्य की दृष्ट छाया को व्यक्त करने वाला “कलाकार” सत्य को पारितोषिक वस्तु जैसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता,किन्तु शब्दों के माध्यम से ही जो व्यक्ति सत्य का साक्षात्कार करा सके उस जादूगर को कलाकार कहते । अपने अस्तित्व का खूँटा समाज में गाड़ने से अस्तित्व खो जाता है । क्योंकि व्यक्ति सत्य है तो समाज भी झूठा नहीं ।  स्वयं से जुड़ने के लिये समाज के ऋणी बने तब अन्दर का सर्जक जाग सकेगा । रचना - मयूर मिस्त्री

मन काव्य सन्मान

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मन काव्य सन्मान दूर दूर तक जगमगाते तारे बैचेन से परेशान, वसुधा स्थिति गंभीर ब्रम्हांड को मिला फरमान, मिलते नहीं तार, हुए तार - तार भर्रा जन गुमान, सकल शोभा पृथ्वी तेरा, संचालन नहीं समान,  अधूरे मन - पर्वत क्रोधित धरा छूना गगन अभिमान, लहरों की पहरेदारी अंत तक का स्वाभिमान, सेवा आरोग्य उपाय दिखते सुखद अहसान, अन्न-अन्न, जीवन तरंग बेकाबू लाचार हुए गणमान,  होली रमजान ईस्टर मनाने तरसे द्रश्य स्वजन मकान,  नित - नित आत्म निर्भर प्रत्यक्ष कर नियमन, विकराल विषाणु शत्रु अद्रश्य पहने परिधान, सामना कर कवच रख, दूर से ही सावधान, दूषित नभ , निस्तेज प्रकाश, सरिता सुशोभित,  प्रयोग, स्वच्छ, सुरक्षा, चिकित्सक को मिले सन्मान, ©️मयूर मिस्त्री (मनपसंद)

नाम मात्र विश्वकर्मा

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नाम मात्र विश्वकर्मा  सकल ब्रम्हांड में एक नाम है विराट विश्वकर्मा,  वेद पुराण साहित्य में होती उनकी जयकार,  कार्यकर्ता करके देते हैं सेवा को प‍डकार,  ऋषि मुनि तपस्वी गाते हैं महिमा अपरम्पार,  लोहार के हाथोडे मे होती है लोहे फटकार,  बढई काष्ठ कला सर्वत्र छाई रहे दमदार,  कंसारे की ताम्रकला से चमके धातु की चमकार,  शिल्पी की छैनी से खड़ा हे आज इतिहास,  सोनार की कारीगरी में चमक रहा विश्वकर्मा परिवार,  संत के आशीष लेकर जपो  नमो विश्वकर्मा हरबार,  मयूर मिस्त्री मोड़ासा

विश्वकर्मा रत्न शिल्प रत्नपद्मश्री प्रभाशंकर ओ सोमपुरा और परिवार

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विश्वकर्मा रत्न शिल्प रत्न पद्मश्री प्रभाशंकर ओ सोमपुरा और परिवार पद्मश्री से सम्मानित प्रभा शंकर ओ. सोमपुरा जी की विरासत नागर शैली की धरोहर मानी जाती है । जिसको उनके बेटे और शिष्यों द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है। चंद्रकांत भाई प्रसिद्ध परिवार की तीसरी पीढ़ी है जो राम मंदिर निर्माण में योगदान दे रही है। उनकी चौथी पीढ़ी भी इस काम में सक्रिय है। आर्किटेक्चर चंद्रकांत भाई ने वास्तु कला में कोई व्यवसायिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया इंटरमीडिएट के बाद पिता ने उनकी पढ़ाई बंद करवा दी थी।  चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने देश-विदेश में अब तक 100 से ज्यादा मंदिर बनाए हैं। लंदन पिट्सबर्ग में सर्व धर्म मंदिर, बैंगकॉक में विष्णु मंदिर और अमेरिका में जैन मंदिर बनाया। मंदिर का नक्शा उत्तर भारत की नागर शैली पर बनाया गया है। श्री प्रभा शंकर सोमपुरा जी द्वारा लिखित क्षीणाॅरव ग्रंथ शिल्प विज्ञान और पूरे विश्वकर्मा समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि है  नागर शैली भारतीय हिंदू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। जो विश्वकर्मीय वास्तु शास्त्र के अनुसार नागर शैली में मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वो

भाषा में विश्वकर्मा

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भाषा में विश्वकर्मा  विश्वकर्मा साहित्य भारत के माध्यम से एकजुटता के अनेक प्रयासों मे से एक ओर सामाजिक संदेश आपके सामने प्रस्तुत किया जाता है। विश्वकर्माजी के साहित्य और लेख और सामाजिक प्रचार प्रसार पढ़ने के लिए विश्वकर्मा साहित्य भारत समुह मे नीचे दी गई लिंक के माध्यम से जरूर जुड़े और जोड़े । https://www.facebook.com/groups/1478545285635701/?ref=share हिन्दी भाषी बोले - जय विश्वकर्मा  तमिल भाषी बोले - ஜெய் விஸ்வகர்மா तेलुगु भाषी बोले - జై విశ్వకర్మ बंगाली भाषी बोले - জয় বিশ্বকর্মা कन्नड भाषी बोले - ಜೈ ವಿಶ್ವಕರ್ಮ पंजाबी भाषी बोले - ਜੈ ਵਿਸ਼ਵਕਰਮਾ गुजराती भाषी बोले - જય વિશ્વકર્મા  मलयालम भाषी बोले - ജയ് വിശ്വകർമ്മ उडिया भाषी बोले - ଜୟ ବିଶ୍ୱକର୍ମା | मराठी भाषी बोले - जय विश्वकर्मा मारवाड़ी भाषी बोले - जै विश्वकर्मा  अंग्रेज़ी भाषी बोले - Jay Vishwakarma  सिंधी भाषी बोले - جيئي ويشوڪارما उर्दू भाषी बोले -  جئے وشوکرما *सृष्टि पर जो सुंदर रुप है* *इसी जीवनदाता विश्वकर्मा का स्वरुप है* *सिर्फ जाती - भाषा के भेद है,*  *उखाड़ फेंको अब वक़्त हे एकजुट का,* *कब विश्वकर्मा वंशी समाज के

समाज सृजन काव्य

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समाज सृजन काव्य सामाजिक सोच सह उत्साह- उल्लास ले चलो,  जीत ली है हारी बाज़ी, मन में यह विश्वास ले चलो,  उलझनें-अपवाद-अपमान को ढेर करते चलो,  हों बाधाएं कितनी पथ में, समाज में मुस्कान बनाए चलो,  आंतरिक भरी ऊर्जा बेमिसाल, प्रचार निरंतर करते चलो , डटकर, चुनौतियों से लड़कर, जीतेंगे सारा संसार,  एसी नीव हर कदम बनाकर चलो,  लें संकल्प समाज सृजन का मन में, उम्मीदों से हो भरपूर, ठान लें पक्के राही , एक दूजे को थामे चले चलो,  फैलाओ ज्ञान और साहित्य समाज में , जय विश्वकर्मा का नारा गूंजाते चलो,  ©मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत

विश्वकर्मा पांचाल कुलभूषण स्वामी श्री भीष्म जी महाराज

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शत शत नमन 🌹🌹🌹🌹🌹 विश्वकर्मा पांचाल कुलभूषण स्वामी श्री भीष्म जी महाराज (घरौंडा करनाल हरियाणा) वाणी सदा सुख शांति फैले मेरे भगवान दुनिया में।  बनावे फिर से हम अपने वतन की शान दुनिया में।  व्रतधारी, सदाचारी बने नर नार भारत में।  वेद विद्या पढ़े सीखे ज्ञान विज्ञान दुनिया में।  बहे दुध की नदियां मेरे इस देश भारत में।  पशु, पक्षी गऊ माता ना हो कुर्बान दुनिया में।  एशिया सर्व यूरोप में फहरावे ओ३म् का झंडा।  वेद की शिक्षा के हित भाई करै सब दान दुनिया में।  सकल विश्व के नर नारी रहे आजाद होकर के,  कहै "भीष्म" घर घर हो वेद व्याख्यान दुनिया में।। देश गौरव - समाज रत्न "स्वामी भीष्म जी" आपकी गणना विश्वकर्मा पांचाल ब्राम्हण कुलभूषण और आर्य समाज व आधुनिक भारत के निर्माताओं में होती है। स्वामी जी ने भारत के पुर्नउत्थान तथा सामाजिक ,धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक पुर्नजागरण में अद्वितीय योगदान दिया है। आर्य समाज में 80 से ज्यादा भजन मंडलियां तैयार कर स्वतंत्र रुप से वेद प्रचार के लिए भेजी हे । जिन्होने हरियाणा समेत उत्तर भारत के अनेक राज्यों में ख़्याती प्राप्त की

विश्वकर्मा वंश शिरोमणि भक्त संत श्री नामदेव जी महाराज

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विश्वकर्मा वंश शिरोमणि भक्त संत श्री नामदेव जी महाराज भक्त नामदेव महाराज का जन्म २६ अकटुबर १२७० (शके ११९२) में महाराष्ट्र के सतारा जिले में कृष्णा नदी के किनारे बसे नरसीबामणी नामक गाँव में एक शिंपी जिसे छीपा भी कहते है के परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दामाशेट और माता का नाम गोणाई देवी था। इनका परिवार भगवान विट्ठल का परम भक्त था। नामदेव का विवाह राधाबाई के साथ हुआ था और इनके पुत्र का नाम नारायण था। गुरु दीक्षा संत नामदेव ने विसोबा खेचर को गुरु के रूप में स्वीकार किया था। ये संत ज्ञानेश्वर के समकालीन थे और उम्र में उनसे ५ साल बड़े थे। संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर के साथ पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण किए, भक्ति-गीत रचे और जनता जनार्दन को समता और प्रभु-भक्ति का पाठ पढ़ाया। संत ज्ञानेश्वर के परलोकगमन के बाद इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। इन्होंने मराठी के साथ ही साथ हिन्दी में भी रचनाएँ लिखीं। इन्होंने अठारह वर्षो तक पंजाब में भगवन्नाम का प्रचार किया। अभी भी इनकी कुछ रचनाएँ सिक्खों की धार्मिक पुस्तकों में मिलती हैं। मुखबानी नामक पुस्तक में इनकी रचनाएँ संग्रहित हैं। आज भी इनके