समाज सृजन काव्य
समाज सृजन काव्य
सामाजिक सोच सह उत्साह- उल्लास ले चलो,
जीत ली है हारी बाज़ी, मन में यह विश्वास ले चलो,
उलझनें-अपवाद-अपमान को ढेर करते चलो,
हों बाधाएं कितनी पथ में, समाज में मुस्कान बनाए चलो,
आंतरिक भरी ऊर्जा बेमिसाल, प्रचार निरंतर करते चलो ,
डटकर, चुनौतियों से लड़कर, जीतेंगे सारा संसार,
एसी नीव हर कदम बनाकर चलो,
लें संकल्प समाज सृजन का मन में, उम्मीदों से हो भरपूर,
ठान लें पक्के राही , एक दूजे को थामे चले चलो,
फैलाओ ज्ञान और साहित्य समाज में , जय विश्वकर्मा का नारा गूंजाते चलो,
©मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत
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