बस पसंद तेरी मेरी है.....
बस पसंद तेरी मेरी है.....
समाज सभी के लिए एक ही है..
...पर...
कुछ उसमें से प्रतिष्ठा ढूंढते है....
कुछ उसमें से सम्मान ढूंढते है.....
....और....
कुछ सिर्फ समाज के पदाधिकारी बनते है.....
ज़िदगी भी...समाज दर्पण की भांति ही है...
यह सिर्फ हम पर ही निर्भर करता है कि....
इस समाज से हम क्या पाना चाहते है...
सेवा, विकास, सहयोग, साहित्य, सहकार, शिक्षा, ज्ञान, विचार, विरोध, व्यवहार, रोजगार, वैभव, समर्पण, सत्कार, सौहार्द, कौशल, कला, योजना। क्रांति, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, नेतृत्व, आदि...
हमें क्या ढूंढ़ना है.....
आप खुद उस सूत्र से विमुख नहीं...
बस पसंद तेरी मेरी हे....
रचना - मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत
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