विश्वकर्मा पांचाल कुलभूषण स्वामी श्री भीष्म जी महाराज

शत शत नमन
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विश्वकर्मा पांचाल कुलभूषण
स्वामी श्री भीष्म जी महाराज
(घरौंडा करनाल हरियाणा)

वाणी

सदा सुख शांति फैले मेरे भगवान दुनिया में। 
बनावे फिर से हम अपने वतन की शान दुनिया में। 
व्रतधारी, सदाचारी बने नर नार भारत में। 
वेद विद्या पढ़े सीखे ज्ञान विज्ञान दुनिया में। 
बहे दुध की नदियां मेरे इस देश भारत में। 
पशु, पक्षी गऊ माता ना हो कुर्बान दुनिया में। 
एशिया सर्व यूरोप में फहरावे ओ३म् का झंडा। 
वेद की शिक्षा के हित भाई करै सब दान दुनिया में। 
सकल विश्व के नर नारी रहे आजाद होकर के, 
कहै "भीष्म" घर घर हो वेद व्याख्यान दुनिया में।।
देश गौरव - समाज रत्न

"स्वामी भीष्म जी" आपकी गणना विश्वकर्मा पांचाल ब्राम्हण कुलभूषण और आर्य समाज व आधुनिक भारत के निर्माताओं में होती है। स्वामी जी ने भारत के पुर्नउत्थान तथा सामाजिक ,धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक पुर्नजागरण में अद्वितीय योगदान दिया है। आर्य समाज में 80 से ज्यादा भजन मंडलियां तैयार कर स्वतंत्र रुप से वेद प्रचार के लिए भेजी हे । जिन्होने हरियाणा समेत उत्तर भारत के अनेक राज्यों में ख़्याती प्राप्त की है।

जन्म - परिचय

सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के ठीक दो वर्ष बाद इस महान क्रांतिकारी जन्म हुआ। इनका जन्म सम्वत् विक्रमी 1914 ,मास चैत्र, कृष्ण पंचमी, दिन रविवार अर्थात मार्च 1859 में हरियाणा के कुरूक्षेत्र जिले के तेवड़ा नामक गांव में हूआ। ये एक निर्धन परिवार था। इनके पिता जी श्री बारु राम था जो की सनातनी थे। स्वामी भीष्म जी का बचपन का नाम लाल सिंह था। स्वामी जी के पिता जी शिव के उपासक थे। समाज में प्रचलित रीति रिवाजों एवं मूर्ती पूजा में उनका अटूट श्रद्धा थी।
परिवार

स्वामी भीष्म जी की माता जी का नाम पार्वती देवी था। जो की एक विनम्र, सुशील, तथा धार्मिक विचारों की आदर्श भारतीय नारी थी। इनकी माता इन्हें महान और ज्ञानी बनाना चाहती थी। साथ ही वह रुढीवादी ब्राह्मत्व के प्रभाव को पूर्णयता समाप्त करने के लिए अपने पुत्र को तर्क विद्या एवं शास्त्रों की विद्या से परिपूर्ण एक प्रकांड पंडित बनाना चाहती थी। माता के अथक प्रयत्न व उनके प्रभाव के कारण ही स्वामी भीष्म यह सब बन पाये थे। बच्चों में प्राय: जो आदते होती है। जैसे कुश्ती लड़ना, कबड्डी खेलना, दौड़ना, व्यायाम करना भजन, गाने संगीत सुनना इत्यादि ये सब स्वामी भीष्म में भी थी। गाने भजन व संगीत सुनने की में इनकी विशेष रुची थी।

शिक्षा - स्वाध्याय

स्वामी जी ने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव के पंडित चन्दनराम से प्राप्त की। कुछ समय इन्होने साधु पाठशाला हरिद्वार में भी शिक्षा ग्रहण की। तदन्तर इन्होने वेदांत की अनेक पुस्तको का स्वाध्याय किया और साथ ही गाने बजाने का अभ्यास भी। ग्यारह वर्ष की आयु से ही भजन गाने लग गए थे। इनकी आवाज शुरू से ही सुरीली थी। धीरे धीरे ये उच्च कोटी के गायक बन गए। स्वामी जी में देश भक्ति की भावना कुट कुट कर भरी हूई थी। सन् 1878 ई० में ये क्रांतिकारियों से प्रभावित हो कर कानपुर जाकर 62 20 पलटन में भर्ती हो गए थे। पौने दो वर्ष तक फौज में नौकरी करने के बाद वे बंदुक लेकर फरार हो गए एवं क्रांतिकारियों के साथ मिल गए।

सन्यास ग्रहण

स्वामी भीष्म जी सन् 1889 ई० में सन्यासी योगीराज जी के पास बल्ली गोहाणा पहूंचे। इन्होने योगीराज से प्रार्थना की कि वे इन्हें अपना शिष्य बनाकर इनका जीवन सफल बनाएं। परंतु सन्यासी योगीराज ने इनकी यौवन अवस्था बलिष्ठ शरीर एवं पहलवानी के कारनामों को जानकर यह संदेह हो गया था कि शायद ये सदाचारी ना रह सकें। अत: सन्यासी योगीराज ने इन्हें सन्यास देने से मना कर दिया। स्वामी भीष्म जी ने बार बार उनसे निवेदन किया परंतु वे मना करते रहे। एक दिन स्वामी भीष्म ने योगीराज जी से कहा मैने दृढ़ निश्चय किया है कि मैं सन्यासी ही बनूंगा। आप जो इसके लिए शर्त रखे मुझे मंजूर है। तब स्वामी योगीराज ने कहा आप अपनी इन्द्री में छेदन कर ले तो मैं आपको सन्यास दे सकता हूं। स्वामी भीष्म जी ने यह शर्त सहर्ष स्वीकार कर ली। परिणाम स्वरुप इन्होने इंद्री निग्रह की कड़ी शर्त पूरी करके सन्यास ग्रहण किया और इनका नाम आत्म प्रकाश रखा। लेकिन आगे चलकर ये सन्यासी ""भीष्म ब्रह्मचारी"" के नाम से विख्यात हूए।

आर्य समाज में प्रवेश

सन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी जी इकतारा लेकर भजन गाते थे। सन् 1886 में रोहतक का एक लड़का ज्ञानी राम सत्यार्थ प्रकाश लेकर आया। बोला स्वामी जी इसको पढ़ा दो। स्वामी जी ने उस लड़के को साफ मना कर दिया। क्योंकि स्वामी जी सत्यार्थ प्रकाश को हाथ लगाना भी पाप समझते थे। दूसरे दिन वह दो आदमियों को लेकर आ पहूंचा ओर कहा कि आप कहा करते हैं कि कमल का फुल जल में ही रहता है, लेकिन उसके उपर जल का कोई असर नही होता, इसी प्रकार आपके सत्यार्थ प्रकाश का प्रभाव नही पड़ेगा। उनके काफी आग्रह करने के बाद स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ाना आरम्भ किया
उसको पढ़ाने के चक्कर में स्वामी जी ही पढ़े गए। और खुद स्वामी जी आर्य समाज के रंग में रंगे गए।

लेखन कार्य -  पुस्तकें

स्वामी भीष्म जी महाराज ने अपने जीवन में 85 सफल और प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक शिष्य तैयार किये, लगभग 228 पुस्तकें लिखी जिनमे से लगभग 125 पुस्तकें आज भी उपलब्ध हैं। स्वामी भीष्म जी ने भजन मंडलियों द्वारा सामाजिक व धार्मिक क्रांति एवं स्वतंत्रता आंदोलन के स्वरों को समाज में गुंजित किया और राष्ट्रिय चेतना जागृत की। स्वामी जी ने क्रांतिकारी एवं राष्ट्रीयता से सम्बधिंत विषयों पर पुस्तकें लिखी है जिनमें हजारो ही कविताएं एवं भजन संकलित हैं। 

प्रमुख रचनाएं और ग्रंथ

स्वतंत्र भारत, नौजवानो को आह्वान, क्रांति का बिगुल, क्रांति का गोला, भयंकर तूफान, शहीदों के जीवन, भीष्म के तारे, भीष्म की गर्ज, भीष्म की दहाड़, भीष्म की तड़फ, भीष्म की धुम, भीष्म की तोप, विश्व प्रकाश अप्रकाशिक भीष्म भजन भंडार भाग १व २ तथा इनकी एक पुस्तक ""प्रमाण"" जो कि शास्त्रार्थ पर है। ये पुस्तक श्री जगदेव सिंह सिद्धांति जी ने अपनी सम्राट् प्रेस में छापी थी।

पांचाल ब्राह्मण प्रकाश-1932, पांचाल ब्राह्मण दीपिका, शिल्पी ब्राह्मण, पांचाल परिचय, महऋषि विश्वकर्मा, विश्वकर्मा दर्शन भाग एक और भाग दो तथा पांचाल ब्राह्मण गोत्रावली आदि पुस्तकें लिख कर समाज को अनेक धार्मिक पुस्तके समर्पित किये थे ।

क्रांतिकारियों से मिलनसार

सन् 1920 से सन् 1934 तक स्वामी भीष्म जी करैहड़ा गांव से समीप, गाजियाबाद उत्तर प्रदेश जंगल में कुटिया बना कर रहे। यहां इनसे भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, अश्फाक उल्लां खां लाल बहादुर शास्त्री, तथा चौधरी चरण सिंह आदि क्रांतिकारी यहां आकर सहयोग प्राप्त करते थे। और भविष्मयी योजनाएं बनाते थे। ये कुटिया क्रांतिकारियों का अड्डा बन गई थी। 10 सितम्बर 1922 को स्वामी भीष्म जी ने अमृतसर में सिक्खों के धर्म युद्ध में भाग लिया, इन्होने गुरु का बाग घायल सिक्खों को सहायता एवं सांत्वना दी।


अखिल भारतीय पांचाल ब्राम्हण महासभा 
स्वामी जी करेहड़ा के बाद 1934 से 1936 तक पांचाल ब्राह्मण धर्मशाला पाण्डु पिंडारा में रहे 1936 में घरौंडा आकर रहने लगे।

1917 में स्वामी भीष्म जी महाराज के लम्बे प्रयास के बाद प्रथम बार अखिल भारतीय पांचाल ब्राह्मण महासभा का गठन हुआ  इसी सभा का एक अधिवेशन 1929 में स्वामी जी के करेहड़ा आश्रम में ही हुआ।  स्वामी भीष्म जी द्वारा संस्थापित इस संस्था के अथक प्रयास से 1930 में पहली बार सरकारी गजट में लोहार जाती के लिए पांचाल ब्राह्मण शब्द सम्मान पूर्वक लिखा गया।। स्वामी भीष्म जी ने लोहार जाति जिसको उस समय तथाकथित ब्राह्मण और अन्य शुद्र अथवा कमीण कहा करते उनसे लगभग 17 बार विभिन्न स्थानों पर शास्त्रार्थ करके सिद्ध किया कि सभी विश्वकर्मा वंशी शुद्ध और श्रेष्ठ पांचाल ब्राह्मण हैं।  

देश प्रेम - भक्ति

सन् 1936 में स्वामी जी ने घरौंडा करनाल में भीष्म भवन बनाया और उसी दिन तिरंगा फहरा दिया। यह झंडा अंग्रेज अधिकारियों, पुलिस आदि के विरोध के बावजूद आजादी आने तक शान से फहराता रहा।

सन् 1938 में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में दिल्ली में एक अखिल भारतीय नौजवान सम्मेलन हूआ। उस सम्मेलन में स्वामी जी ने मंच से एक क्रांतिकारी कविता सुनाई। तब नेता जी ने स्वामी जी से कहा कि वे इस कविता की अंतिम पंक्ति ""जवानी सफल हो सेना के तैयार से "" को सार्थक कर दिखाएंगें। नेता जी के इसी दृढ़ संकल्प का परिणाम था द्वितीय महायुद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज का गठन तथा भारत को स्वतंत्र करने के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। भारत आजाद हो गया लेकिन जिसका इंतजार पुरे आर्यावर्त यानी भारत को था उस वीर बहादुर बोस की याद में स्वामी जी ने भजन गाकर सुनाया था। जो आज भी बेहद लोकप्रिय है।

स्वरचित भजन

देश स्वतंत्र आज है-मां के सर पर ताज है।
भारतीयों का राज है-पर आने वाला आया ना।।टेक।।

पानी की तरह खून बहाया बाग के सच्चे माली ने।
भारत को आजाद किया है उस प्यारे बंगाली ने।
पापों का घट फोड़ गया, मां का बंधन तोड़ गया।
ना जाने किस ओड़ गया जो आकर दर्श दिखाया ना।।1।।

चालीस करोड़ भाईयों के दुख को उसने अपना दुख समझा।
आजादी के लाने को ही महावीर ने सुख समझा।।
तज के घर को बार गया-सात समुन्दर पार गया,
भारत का भार उतार गया-पर आजादी सुख पाया ना।2।

कस्तूरी की शुद्धि सुगन्धि छुपती नहीं छुपाने से।
इसी तरह से चश्मे वाला भी रूकता ना आने से।
शान वतन की बोस था, ब्रह्मचारी निर्दोष था,
होके गया रूपोष था-जो मरने से घबराया ना।।3।।

नर नारी बेचैन वतन के करें वसु को याद सभी।
कहाँ छुपे हो आ जाओ अब हो गये हैं आजाद सभी।।
कोई कहे कि मर गया हमें स्वतंत्र कर गया।
भीष्म सुनकर डर गया-जब किसी ने पता बताया ना।।4।।

इतने करूणा भरे शब्द सुनकर श्रोताओं के आंसू निकल आते थे।

अंधविश्वास मिटाया

एक बार स्वामी जी उत्तर प्रदेश के किसी गांव में गए हुए थे। पंडित चन्द्रभानु भी स्वामी जी के साथ थे। गांव में नौगजे सैयद का खौफ था। प्रचार में स्वामी जी ने भुत प्रेत का खंडन किया तो एक आदमी रोने लगा। वह एक मुस्लिम कुंजड़ा था। उसने एक आमों का बाग ले रखा था। वो बोला महात्मा जी हमारे बाग में नोगजे सैयद आते हैं। पेड़ तोड़ जाते हैं। आम तोड़ कर ले जाते हैं। हम वहां रात को सो नहीं सकते। स्वामी जी बोले - हमे दिखाओ। अगली रात को स्वामी जी के साथ पांच व्यक्ति गए। जेली गंडास ले ली। बाग के पास छिपकर बैठ गए। रात के ठीक 12 बजे चांद निकला। 3 नो बजे सैयद आए। उनके पाजामे बहुत लम्बे थे। कुर्ता मनुष्य जैसा। स्वामी जी ने कहा इनके पाजामें व कुर्ते में इतना फर्क क्यों हैं। स्वामी व इनके साथियों ने उन पर हमला बोल दिया। एक एक जेली में तीनो नो गजे गीर गए। हाथ जोड़कर बोले हम निकट गांव के नट हैं। पैरों में लम्बे बांस बांधकर लट्ठे का थान पैरो पर लपेट लेते हैं। हमारे पास पैसे नहीं थे। एक सप्ताह पूर्व इनसे २० सेर आम उधार लेने आए थे। इन्होने मना कर दिया। अगले दिन हमने इनको आकर डराया की हमारे दादा जी कहते हैं की इस बाग में नो गजे सैयद रहते हैं। अगली रोज हम भेष बदलकर आए ओर आम तोड़कर ले गए। हम अचारी आम आस पास के गांव में बेच देते हैं। हमे छोड़ दो। स्वामी जी बोले गांव में चलो। लोगो का भ्रम मिटाना है। इन कुंजड़ो की भरपाई कर देना। उनके हाथ बांधकर गांव में लाया गया। पंचायत ने उन पर जुर्माना लगाया। तब स्वामी जी ने कहा भूत बीते समय काल का वक्त है। भूत प्रेत से बचना चाहते हो तो आर्य और वैदिक अनुष्ठानी बनो। ताकि पाखंड से पीछा छुटे समाज जागरूकता की और आए ।

स्वामी जी के शिष्य

स्वामी भीष्म जी ने 84 सफल आर्य भजनोपदेशक तैयार किये। स्वामी जी के शिष्यों की सूची बहुत लम्बी है। लेकिन इनमे से प्रमुख हैं 

डॉ राम मनोहर लोहिया, स्वामी रामेश्वरनन्द, मनी राम बागड़ी, बी पी मौर्य, राम चन्द्र जी विकल, ज्ञानी जैल सिंह, चरण सिंह व् लाल बहादुर शास्त्री आदि अनेक राष्ट्रीय स्तर के नेता स्वामी जी के शिष्य रहे हैं। और पंडित हरिदत्त जी, पंडित ज्योतिस्वरुप मानपुरा, स्वामी रामेश्वरानंद जी, पंडित चन्द्रभानु आर्योपदेशक, महाशय परमानंद आर्य, चौधरी नत्था सिंह, स्वामी रुद्रवेश जी, रामस्वरुप आजाद, पंडित ताराचंद वैदिक तोप,रतीराम,स्वामी विद्यानंद, स्वामी ब्रह्मानंद, मनीराम बागड़ी, रामचन्द्र जी विक्कल,  इत्यादि स्वामी भीष्म जी के प्रसिद्ध शिष्य रहे हैं।

सम्मान प्राप्ति

स्वामी भीष्म जी की देश के प्रति सेवाओं को देखते हुए 1981 कुरुक्षेत्र में सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया जिसमे चौधरी भजन लाल का पूरा मन्त्रीमण्डल और केंद्र से तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह सहित अनेको मंत्री व् कई राज्यो के राज्यपाल आदि स्वामी जी का सम्मान करने पहुंचे थे। जुलाई 1983 में कलकत्ता के अन्दर स्वामी जी का सार्वजनिक अभनन्दन जाति सदन हाल में बड़े शानदार तरीके से किया गया। 1983 में ही राष्ट्रपति बनने के बाद ज्ञानी जैल सिंह जी स्वामी जी के निमन्त्रण पर पांचाल ब्राह्मण धर्मशाला पाण्डु पिंडारा जींद में भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापना हेतु पधारे।  1980 अमेरिका में एक गोष्ठी में वेड प्रकाश बटुक ने स्वामी भीष्म जी के कार्यों पर एक निबन्ध पढ़ा और उनके देश के प्रति किये कार्यो की चर्चा की।

स्वामी भीष्म जी की सेवाओं को देखते हूए 21 मई 1981 को हरियाणा सरकार ने स्वामी जी महाराज का नागरीक अभिनन्दन कुरूक्षेत्र की भूमी पर किया। जिसमे तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री श्री ज्ञानी जैल सिंह ने स्वामी भीष्म जी महाराज को एक कर्मठ देश भक्त उच्च कोटी का समाज सेवक बताते हूए उनकी सेवाओं को याद किया।

स्वामी जी को भारत रत्न देने के लिए गया किन्तु तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री मति इंदिरा गांधी ने नए नियम के अनुसार समय आभाव के कारण वर्ष 1985 में स्वामी जी को भारत रत्न का सम्मान देने की बात कही किन्तु दुर्भाग्य से 1984 अक्टूबर में इंदिरा जी की हत्या हो गई।। हरियाणा सरकार स्वामी जी को सम्मान के रूप में 1000 रुपए मासिक पेंशन देती थी।

देह त्याग

आर्य प्रतिनिधी सभाओं व अन्य सामाजिक संस्थाओं के द्वारा समाज सुधार के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान के लिए 124 वर्षीय स्वामी भीष्म जी महाराज का शानदान नागरिक अभिनन्दन किया गया। 08 जनवरी 1984 को 125 वर्ष की आयु में प्रातः 3 बजे स्वेच्छा से ईश्वर चिन्तन करते हुए प्राणायाग द्वारा देह त्याग कर मोक्ष मार्ग पर चल दिए।
8 जनवरी सन् 1984 दिन रविवार को भीष्म भवन घरौंडा में स्वामी जी महाराज का शरीरांत हूआ। इस प्रकार देश का एक महान क्रांतिकारी सन्यासी अपना कार्य कर विदा हूआ।

विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज के गौरव स्वामी भीष्म जी महाराज। मै और समाज भी स्वामीजी के जीवन शैली से अत्यंत प्रभावित हे और हम  सभी विश्वकर्मा पांचाल समाज का प्रत्येक व्यक्ति स्वामी भीष्म जी महाराज के जीवन को जानकर उनसे प्रेरणा और गौरव महसूस करते हैं। 

स्वामी भीष्म जी ने अपने नि: स्वार्थ सेवा, त्याग, भावना से जो परोपकार के लिए जीवन बिताया है।
उनका ये कार्यों से समाज सदैव ऋणी रहेगा। स्वामी भीष्म जी को शत शत नमन। 
वैदिक धर्म की जय। 
विश्वकर्मा भगवान की जय।

प्रकाशक -
पांचाल ब्राम्हण साहित्य सदन
धरोंडा हरियाणा

संकलन - मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत

सन्दर्भ सूची -

- प्रेरणा स्त्रोत श्री शिवकुमार आर्य
- पांचाल ब्राम्हण साहित्य सदन 
- श्री विश्वकर्मा वंश परिचय

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