मन काव्य सन्मान

मन काव्य सन्मान

दूर दूर तक जगमगाते तारे बैचेन से परेशान,
वसुधा स्थिति गंभीर ब्रम्हांड को मिला फरमान,

मिलते नहीं तार, हुए तार - तार भर्रा जन गुमान,
सकल शोभा पृथ्वी तेरा, संचालन नहीं समान, 

अधूरे मन - पर्वत क्रोधित धरा छूना गगन अभिमान,
लहरों की पहरेदारी अंत तक का स्वाभिमान,

सेवा आरोग्य उपाय दिखते सुखद अहसान,
अन्न-अन्न, जीवन तरंग बेकाबू लाचार हुए गणमान, 

होली रमजान ईस्टर मनाने तरसे द्रश्य स्वजन मकान, 
नित - नित आत्म निर्भर प्रत्यक्ष कर नियमन,

विकराल विषाणु शत्रु अद्रश्य पहने परिधान,
सामना कर कवच रख, दूर से ही सावधान,

दूषित नभ , निस्तेज प्रकाश, सरिता सुशोभित, 
प्रयोग, स्वच्छ, सुरक्षा, चिकित्सक को मिले सन्मान,

©️मयूर मिस्त्री (मनपसंद)

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