तुम वही हो उन्नती के सितारे.......

तुम वही हो उन्नती के सितारे....... कैसे जगमगा रहे हैं रत्न ठिकाने, देख अचंभित हुए मखमली बिछाने, वीर बन उठाए तीरे अंदाज तरखाने, चल पड़ा तू कर्ता, सृजन दिखलाने, तुम वही हो उन्नती के सितारे....... गतिशील स्वयंम् तेरे कदम चलाने, मिले कोई तत्व तेरे संग आजमां ले, निर्मित अधिकार अधिवक्ता सब आने, स्थापित होगा उद्देश विपदा हजार उठाले, तुम वही हो उन्नती के सितारे....... पालन अवगुण सम, तू परख स्वीकारे, धैर्य इरादे समेट चल शिखर तराशने, धरोहर समेत देख रही प्रगति सामने, प्रतिष्ठा जगतपति, नीव परब्रम्ह संवारे, तुम वही हो उन्नती के सितारे....... अचल विरल सागर भरे घोर उफाने, रटण न छोड़ विश्वकर्मा सत्य निखारे, सम्भव योजन पार, समाजकर्ता आधारे, गतिमान संरचना कर, स्वयंम् खोज सितारे, तुम वही हो उन्नती के सितारे....... काव्य रचना - मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत