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Showing posts from December, 2020

तुम वही हो उन्नती के सितारे.......

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तुम वही हो उन्नती के सितारे....... कैसे जगमगा रहे हैं रत्न ठिकाने, देख अचंभित हुए मखमली बिछाने,  वीर बन उठाए तीरे अंदाज तरखाने,  चल पड़ा तू कर्ता, सृजन दिखलाने,  तुम वही हो उन्नती के सितारे....... गतिशील स्वयंम् तेरे कदम चलाने,  मिले कोई तत्व तेरे संग आजमां ले,  निर्मित अधिकार अधिवक्ता सब आने,  स्थापित होगा उद्देश विपदा हजार उठाले,  तुम वही हो उन्नती के सितारे....... पालन अवगुण सम, तू परख स्वीकारे,  धैर्य इरादे समेट चल शिखर तराशने,  धरोहर समेत देख रही प्रगति सामने,  प्रतिष्ठा जगतपति, नीव परब्रम्ह संवारे,  तुम वही हो उन्नती के सितारे....... अचल विरल सागर भरे घोर उफाने,  रटण न छोड़ विश्वकर्मा सत्य निखारे,  सम्भव योजन पार, समाजकर्ता आधारे,  गतिमान संरचना कर, स्वयंम् खोज सितारे,  तुम वही हो उन्नती के सितारे....... काव्य रचना - मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत

मेरे वतन के नाम सत्यमेव लिखते रहना

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मेरे वतन के नाम सत्यमेव लिखते रहना ए हवाऐ मेरी बाते गुनगुनाते रहना, सरजमीं को आजादी के गीत देते रहना,  लहू दिया हिफाज़त मे, अमन तू बनाए रखना,  देश के तिरंगे को सदा दिल में बसाये रखना, वीर खड़े चट्टान बने, नाम अमर बनाए रखना,  तिरंगे की शान में एकता सेतु बांधे रहना ,  अंधेरों से उजालों तक, सीमा पर डटे रहना, अमर शहीदों के नाम दीप जलाये रखना, अशोक चक्र के नाम सलाम करते रखना, मिट्टी मेरे चमन की सदा महकाते रहना, देश भक्ति के मान सम्मान तुम गाते रहना, नारा मेरे इन्कलाब का रग रग मे बहाते रहना,  मेरे वतन के नाम सत्यमेव लिखते रहना,  ©️ मयूर मिस्त्री गुजरात विश्वकर्मा साहित्य भारत

विश्वकर्मा पुत्री रिद्धि सिद्धि सहित गणेश परिवार

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विश्वकर्मा पुत्री रिद्धि सिद्धि सहित गणेश परिवार  शास्त्रों व ग्रंथों के अनुसार गणेश जी की शादी रिद्धि, सिद्धि जी से हुई थी। रिद्धि, सिद्धि जी भगवान विश्वकर्मा जी की पुत्री थी। इनके दो पुत्र हुए जिनका नाम लाभ और क्षेम है। रिद्धि के द्वारा लाभ का जन्म हुआ और सिद्धि के द्वारा क्षेम का जन्म हुआ। लोक परंपरा व संस्कृति के अनुसार इन्हें शुभ - लाभ कहा जाता है। श्री गणेश – ॐ गं गणपतये नम:। ऋद्धि – ॐ हेमवर्णायै ऋद्धये नम:। सिद्धि – ॐ सर्वज्ञानभूषितायै नम:। लाभ – ॐ सौभाग्य प्रदाय धन-धान्ययुक्ताय लाभाय नम:। शुभ – ॐ पूर्णाय पूर्णमदाय शुभाय नम:। मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत

सच्ची प्रार्थनाएं प्रभु विश्वकर्मा की - मयूर मिस्त्री

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सच्ची प्रार्थनाएं प्रभु विश्वकर्मा के द्वारा हमेशा स्वीकार की जाती है, फिर ये फर्क़ नहीं पड़ता कि वो क्या है और किस भाषा में हे, ज़ज्बात आध्यात्मिक न हो मेरा मन आराध्य अविरत कहता है, तू जगतकर्ता हे तू अविनाशी है तो मेरी राह निश्चित ऊर्जावान हे, माथा टेकने आया था जब जब तेज रोशनी से मिला आशीष हे, आगे राह मेरी हे और राही बनाया मेने हंसवाहन धारी तुझे है, - मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत

विश्वकर्मा मंदिर एक सामाजिक धरोहर

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श्री नारायण दास श्रीरामचार्य जी

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विश्वकर्मा वंश गौरव विश्वज्ञ वंश कसारा कैरवा अचल परिपुर्णा निर्मलानंद राजयोगी  श्री नारायण दास श्रीरामचार्य जी श्री नारायण दास श्रीरामाचार्य का जन्म 26.3.1926 को कलवाकोलू, पड्डा कोट्टापल्ली मंडल, नगर कुरनूल जिले के श्री नारायण दास नरसाचार्य और रुक्मिनम्बा दंपति के गाँव में जन्म हुआ था। उन्होंने अपने बड़े भाई श्री बज्जय्याचारी के साथ ज्योतिष, आगम और वास्तु का अध्ययन किया और एक सिद्धांतकार के रूप में जाने गए। कडप्पा कन्नैय्या में हारमोनियम शिक्षा में कुशल हुए। जंगल खाते में कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य करते हुए, उन्होंने अपने संघ के महासचिव के रूप में अपनी लंबी सेवा का समर्पण सहकार दिया। इतना ही नहीं, ऋषिओ ने पूर्व काल में कैसे समय बिताया और जल विज्ञान और वायुगति की शिक्षा में प्रवेश लिया। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना राज्य के महबूबनगर जिले, वानापर्थी, नागरकुर्नूल गडवाल जैसे कई स्थानों पर मंदिरों का निर्माण किया गया। अध्यात्म के क्षेत्र में विश्वकर्मा से संबंधित 14 पुस्तकें प्रकाशित किए हैं। उन्होंने गायत्री संध्या वंदना होमविधि, (दो संस्करण) कंदुकुरी रुद्रकवि विजयम , विश्वक

विश्वकर्मा मंदिर द्वारिका

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विश्वकर्मा मंदिर द्वारिका भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित नगरी द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में स्थित एक नगर तथा पवित्र हिन्दू तीर्थस्थल है। यह हिन्दुओं के साथ सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है। जिले का नाम द्वारका पुरी से रखा गया है।  यहा पर स्थित शारदा-मठ को आदि गुरू शंकराचार्य ने बनबाया था। उन्होने पूरे देश के चार कोनों में चार मठ बनायें थे। उनमें एक यह शारदा-मठ है। परंपरागत रूप से आज भी शंकराचार्य मठ के अधिपति है। भारत में सनातन धर्म के अनुयायी शंकराचार्य का सम्मान करते है।  द्वारिका में भगवान विश्वकर्मा जी का भी मंदिर हैं जो शहर के मध्य विस्तार मे मौजूद हैं। द्वारिका के मध्य में तीनबत्ती चौक पर विश्वकर्मा जी का भव्य मंदिर हे।  इसके इतिहास की जानकारी से प्राप्त होता है कि लगभग 1935 से 1940 के बीच में इस मंदिर का निर्माण किया गया है। यह मंदिर की जगह पहले से ही सौराष्ट्र के लोहार समाज की मानी जाती है इसीलिए वहाँ उस समय का निर्णय समाज में विश्वकर्मा मंदिर और धर्मशाला के रूप में किया जाए इसीलिए वहाँ मंदिर ब

वंशागत कला

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वंशागत कला “कला में मनुष्‍य अपने भावों की अभिव्‍यक्ति करता है ” जीवन भी एक कला है। जीवन जीने की कला। कला एक व्यवसाय हो सकता है लेकिन व्यवसाय को कला सिर्फ इसी सन्दर्भ में कह सकते हैं जब आज के जटिल और भ्रष्ट माहौल में भी किस तरह नीतिगत रह कर कुशलता के साथ सब कुछ व्यवस्थित रखें; उसे यह आता हो। वंशागत कला के सीखने में कितनी सुगमता होती है, यह प्रत्यक्ष है। शिक्षा में कलाओं की शिक्षा भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती थीं कलाओं के सम्बन्ध में रामायण, महाभारत, पुराण, काव्य आदि ग्रन्थों में जानने योग्य, सामग्री भरी पड़ी है; परंतु इनका थोड़े में, पर सुन्दर ढंग से विवरण शुक्राचार्य के 'नीतिसार' नामक ग्रन्थ के चौथे अध्याय के तीसरे प्रकरण में मिलता है। उनके कथनानुसार कलाएँ अनन्त हैं, उन सबके नाम भी नहीं गिनाये जा सकते; परंतु उनमें 64 कलाएँ मुख्य हैं। कला का लक्षण हैं कि जिसको एक मूक व्यक्ति भी, जो वर्णोच्चारण भी नहीं कर सकता, कर सके, वह 'कला' है।  एक बढ़ई का लड़का बढ़ईगिरी जितनी शीघ्रता और सुगमता के साथ सीखकर उसमें निपुण हो सकता है, उतना दूसरा नहीं, क्योंकि वंश-परम्परा और

विश्वकर्मा पुराण सृजनकर्ता के आधार हैं...

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विश्वकर्मा पुराण सृजनकर्ता के आधार हैं...   विश्वकर्मा पुराण कोष ज्ञान के, कथाओं के, सूक्तो के, विश्वकर्मा पुराण विविध विद्याओं के विशद आगार हैं।   विश्वकर्मा पुराण झरोखे हैं अकल्पनीय वैदिक संस्कृति के, विश्वकर्मा पुराण दिव्य गाथाओं के अनोखे भंडार हैं।   विश्वकर्मा पुराण दिग्दर्श हैं विविध विधि-विधानों के, विश्वकर्मा पुराण सभी वेदों के, उपनिषदों के सार हैं।   विश्वकर्मा पुराण व्यावहारिक निचोड़ हैं ऋषि चिंतन के, विश्वकर्मा पुराण वंशीय जीवनशैली के आधार हैं। रचनाकार - मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत  मोड़ासा - गुजरात

समाज की अधोगति के मुख्य कारण

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समाज की अधोगति के मुख्य कारण सामाजिक कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है और ना ही कम होनेवाले है और हम मे से कई कलाकार या कार्यकर्ता या सम्मानित व्यक्ती नीचे बैठे तालियां बजाते रह जाएंगे क्यूंकि आप ऊंचे पद पर या सामाजिक कार्यकर्ता या कोई कला से जुड़े व्यक्ती तो हे लेकिन राजनैतिक पद और रूपया पैसा या डोनेटर नहीं है तो तालियां तो बजानी ही पड़ेगी और साथ में आपकी कारकिॅदी को ढलते देखते रहेंगे।  शब्द कठोर है उससे मत नाता जोड़े नाता जोड़ना ही है तो अपने अंदर के कार्यकर्ता की ऊर्जा कैसे समाज से खत्म हो गई थी यह जरूर सोचिए। आज सभी अपने अपने जीवन में बहुत से कार्यकर्ता देखे होंगे और शायद आप भी हो सकते हैं क्या उन्हें अब जगा सकते हैं क्या उन्हें अब वापस समाज में जगह दे पाएंगे क्या अपनी सामाजिक ऊर्जा और आपके अंदर वक्तृत्व के बोल वापस आ सकेंगे।  अपने कर्तव्य के प्रति एकनिष्ठ आज कोई भी व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा हैं, उनकी यह सबसे बड़ी पूंजी है बस स्टेज पर की खुर्शी और फूल-मालाएं ही है।  जिसका समाज में सर्वथा अभाव है वह है सामाजिक निष्ठा। सामाजिक विकास एक सतत प्रक्रिया है, जो अपना आकार ग्रहण करन

शिल्पकार_और_कारीगर

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शिल्पकार_और_कारीगर  शिल्पकार,कारीगर,मिस्त्री, बढई,लुहार, स्वर्णकार ताम्रकार इत्यादि को वेद ‘तक्क्षा’ कह कर पुकारते हैं| ऋग्वेद ४.३६.१ रथ और विमान बनाने वालों की कीर्ति गा रहा है| ऋग्वेद ४.३६.२ रथ और विमान बनाने वाले बढई और शिल्पियों को यज्ञ इत्यादि शुभ कर्मों में निमंत्रित कर उनका सत्कार करने के लिए कहता है| इसी सूक्त का मंत्र ६ ‘तक्क्षा ‘ का स्तुति गान कर रहा है और मंत्र ७ उन्हें विद्वान, धैर्यशाली और सृजन करने वाला कहता है| वाहन, कपडे, बर्तन, किले, अस्त्र, खिलौने, घड़ा, कुआँ, इमारतें और नगर इत्यादि बनाने वालों का महत्त्व दर्शाते कुछ मंत्रों के संदर्भ : ऋग्वेद १०.३९.१४, १०.५३.१०, १०.५३.८, अथर्ववेद १४.१.५३, ऋग्वेद १.२०.२, अथर्ववेद १४.२.२२, १४.२.२३, १४.२.६७, १५.२.६५ ऋग्वेद २.४१.५, ७.३.७, ७.१५.१४ | ऋग्वेद के मंत्र १.११६.३-५ और ७.८८.३ जहाज बनाने वालों की प्रशंसा के गीत गाते हुए आर्यों को समुद्र यात्रा से विश्व भ्रमण का सन्देश दे रहे हैं| अन्य कई व्यवसायों के कुछ मंत्र संदर्भ : वाणिज्य – ऋग्वेद ५.४५.६, १.११२.११, मल्लाह – ऋग्वेद १०.५३.८, यजुर्वेद २१.३, यजुर्वेद २१.७, अथर्ववेद ५.

विश्वकर्मा वंशी ब्रह्मर्षि संत लालो जी का जीवन परिचय

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विश्वकर्मा वंशी ब्रह्मर्षि संत लालो जी का जीवन परिचय।  सरदार सुरजीत सिंह जोबन की पुस्तक रामगढिया शिरोमणि से साभार उद्ह्रत  ब्रह्मर्षि भाई लालो जी का जन्म सैदपुर जिला गुजंरावालाला में भाई जगतराम गौत्र घटाऊडे तथा माता खेमो के घर 11आश्विन सवंत 1509 अर्थात सन 1452को हुआ था। उस दिन मंगलवार का दिन था। इस तरह भाई लालो गुरू नानक देव जी से लगभग 17वर्ष आयु में बड़े थे। वे अपना पुश्तैनी लकड़ी का काम करते थे। यह भी कहा जाता है कि वे दवाइयां देने का काम भी करते थे तथा तैया बुखार का अचूक ईलाज करते थे।  गुरु नानक देव जब अपनी पहली प्रचार यात्रा पर निकले तो उन्होंने मरदाना से पूछा कि कहाँ चले तो मरदाना ने कहा कि गुरू मै क्या जानू। जहां आप चाहें ले चले इस पर गुरू नानक ने कहा कि चलो मरदाना ऐमनाबाद मे लालो बढ ई रहता है वह साधु है उसके दर्शन कर आये। मरदाने के साथ गुरू नानक ने लालो जी के घर के बाहर पहुंच कर करतार करतार नाम से आवाज लगाई। आवाज सुनकर लालों जी ने दरवाजा खोला तो गुरु नानक को देखकर सोच में पड गया।  गुरु नानक का घर में चारपाई पर बैठाकर आदर सत्कार किया तथा बिना औपचारिकता के चौके में बैठ

विश्वकर्मा अवतार अभिन्नता

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#विश्वकर्मा_अवतार_अभिन्नता                #ब्रह्मा - पुर्वकाल में विराट विश्वकर्मा ही ब्रह्मा के रुप में अवतरित हुए । (1) स्कन्द म.पु. काशी खण्ड 86/3-78 (२2 वैवस्वत पुराण 96/34 #विष्णु - भगवान विष्णु एवं भगवान विश्वकर्मा में परस्पर अभिन्नता है । (1) पद्म म.पु.भुखण्ड २९ (2) स्कन्द म.पु .काशी खण्ड 24 #शिव - महादेव जी स्वयं विश्वकर्मा के रुप में अवतार धारण करते हैं । (1) मदनरल , वृद्ध-वशिष्ठ (2) वैवश्वत पुराण उत्तरार्द्ध 96/25 अ. 96 कृष्ण-भीम संवाद । #श्रीराम - भगवान राम को भि विश्व का सृष्टा विश्वकर्मा कहकर अभिन्नता प्रदर्शित कि गयि है । (1) वाल्मीकि रामायण 6/22/45  #श्रीकृष्ण - भगवान श्री कृष्ण और भगवान विश्वकर्मा में लेश मात्र भी अन्तर नहि है । (1) पद्म म.पु. भुखण्ड अ.29  #स्वामी_बृहस्पत्ती - वाचस्पती ( बृहस्पति ) के अवतार प्रभु विश्वकर्मा हुये । (1) विष्णु महा पुराण   #सुर्य - भगवान विश्वकर्मा , सुर्य भगवान के साक्षात अवतार है । (1) विश्वमेदिनी कोष (2) अमर कोष - वर्ग 3/409 #ऋषि_कश्यप - भौवन विश्वकर्मा , कश्यप मुनि के अवतार है । उन्हें काश्यपीच विश्वकर्मा भी कहा गया है। (1