विश्वकर्मा मंदिर द्वारिका

विश्वकर्मा मंदिर द्वारिका
भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित नगरी द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में स्थित एक नगर तथा पवित्र हिन्दू तीर्थस्थल है। यह हिन्दुओं के साथ सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है। जिले का नाम द्वारका पुरी से रखा गया है। 
यहा पर स्थित शारदा-मठ को आदि गुरू शंकराचार्य ने बनबाया था। उन्होने पूरे देश के चार कोनों में चार मठ बनायें थे। उनमें एक यह शारदा-मठ है। परंपरागत रूप से आज भी शंकराचार्य मठ के अधिपति है। भारत में सनातन धर्म के अनुयायी शंकराचार्य का सम्मान करते है। 
द्वारिका में भगवान विश्वकर्मा जी का भी मंदिर हैं जो शहर के मध्य विस्तार मे मौजूद हैं। द्वारिका के मध्य में तीनबत्ती चौक पर विश्वकर्मा जी का भव्य मंदिर हे। 
इसके इतिहास की जानकारी से प्राप्त होता है कि लगभग 1935 से 1940 के बीच में इस मंदिर का निर्माण किया गया है। यह मंदिर की जगह पहले से ही सौराष्ट्र के लोहार समाज की मानी जाती है इसीलिए वहाँ उस समय का निर्णय समाज में विश्वकर्मा मंदिर और धर्मशाला के रूप में किया जाए इसीलिए वहाँ मंदिर बनवाया गया था। 
सामाजिक कार्यो को गति धीरे धीरे मिलने लगी और आज वहां पर बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध हो रही है जो समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण सहयोग और एकता का संदेश है। 
मंदिर निर्माण के समय श्री वीरजी वालजी कवा जी ने बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। उस समय श्री वसरामजी नारणजी मकवाणा जी और मधुभाई रामजी जिल्का जी ने मंदिर के निर्माण और विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण संघर्ष किया था। जो आज समाज के लिए बहुत काम आ रहा है। 
श्री वीरजी वालजी कवा के पुत्र श्री रसिकभाई वीरजी कवा जी आज इस मंदिर के अध्यक्ष हे जिन्होंने मंदिर और धर्मशाला को समाज और संस्कृति की धरोहर के रूप संयोजित और उल्लेखनीय प्रगति द्वारा सम्भाल के रखा है। 
विश्वकर्मा मंदिर परिसर में बहुत ही सुंदर मंदिर हे जो परिसर और मुख्य दरवाजे के बिल्कुल सामने हे। परिसर में रुकने के लिए रूम की व्यवस्था भी है। परिसर में 29 रूम की व्यवस्था हे और साथ ही साहित्य प्रचार प्रसार के लिए दो सभा खंड हे। मंदिर का विशाल परिसर भी है। रसोई घर और रसोई साधन से परिपूर्ण सुविधा भी उपलब्ध है। मिनरल वॉटर और गरम पानी की व्यवस्था भी है। मंदिर की व्यवस्था के लिए ऑफिस भी मौजूद हैं जिससे यात्रियों को परेशानी न हो सके और परिसर में योग्य मार्गदर्शन मिल सके। 
विश्वकर्मा मंदिर के अध्यक्ष श्री रसिक भाई वीरजी कवा और श्री अशोकभाई दयालजी मकवाणा, श्री भरतभाई नानजी कारेलिया, हसमुखभाई लालजी सिद्धपुरा, और रमेश भगवानजी कवा, देवांग चंदुभाई मकवाणा के संचालन द्वारा समाज के कई कार्यक्रमों को आयोजित किया गया है। 
विधवा सहाय, मेडिकल सहाय, शिक्षा प्रवृत्ति, और बच्चों के लिए इनाम वितरण और सामाजिक अनेक कार्यो को अग्रणी और उल्लेखनीय मानकर करते आए हैं। 
विश्वकर्मा मंदिर 80 साल पुराना भी है और बहुत प्रचलित भी है द्वारिका यात्रा की नगरी होने के कारण यहा दूर से आने वाले यात्री को रुकने के लिए पहले से ही अनुमति लेनी आवश्यक हो जाती है। 
विश्वकर्मा मंदिर के साथ साथ यहा नगर में बहुत से मंदिर यहा मौजूद हैं। 
जैसे कि गोमती द्वारका, निष्पाप कुंड,  मंदिर परिक्रमा, रुक्मणी मंदिर, महर्षि दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर, कुशेश्र्वर मंदिर, शारदा मठ, हनुमान मंदिर, कैलास कुंड, चक्रतिथॅ, और भी बहुत सारे मंदिर दर्शन कर सकते हैं। 
द्वारिका से 30 किलो मीटर पर नागेश्वर मंदिर और गोपी तालाब हे। और पास ही ओखा समुद्री तट पर फेरी बोट द्वारा बेट द्वारिका जा सकते हैं वहाँ श्री कृष्ण मंदिर और चौरासी धुना और कई तालाब है-रणछोड़ तालाब, रत्न-तालाब, कचौरी-तालाब और शंख-तालाब। इनमें रणछोड तालाब सबसे बड़ा है। इसकी सीढ़िया पत्थर की है। जगह-जगह नहाने के लिए घाट बने है। इन तालाबों के आस-पास बहुत से मन्दिर है। इनमें मुरली मनोहर, नीलकण्ठ महादेव, रामचन्द्रजी और शंख-नारायण के मन्दिर खास है।
विश्वकर्मा मंदिर द्वारिका के अध्यक्ष द्वारा जानकारी के अनुसार यह लेख विश्वकर्मा साहित्य भारत द्वारा प्रसारित हो रहा है। 
लेख - मयूर मिस्त्री (मोड़ासा - गुजरात)
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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