विश्वकर्मा वंशी ब्रह्मर्षि संत लालो जी का जीवन परिचय

विश्वकर्मा वंशी ब्रह्मर्षि संत लालो जी का जीवन परिचय। 

सरदार सुरजीत सिंह जोबन की पुस्तक रामगढिया शिरोमणि से साभार उद्ह्रत 
ब्रह्मर्षि भाई लालो जी का जन्म सैदपुर जिला गुजंरावालाला में भाई जगतराम गौत्र घटाऊडे तथा माता खेमो के घर 11आश्विन सवंत 1509 अर्थात सन 1452को हुआ था। उस दिन मंगलवार का दिन था। इस तरह भाई लालो गुरू नानक देव जी से लगभग 17वर्ष आयु में बड़े थे। वे अपना पुश्तैनी लकड़ी का काम करते थे। यह भी कहा जाता है कि वे दवाइयां देने का काम भी करते थे तथा तैया बुखार का अचूक ईलाज करते थे। 
गुरु नानक देव जब अपनी पहली प्रचार यात्रा पर निकले तो उन्होंने मरदाना से पूछा कि कहाँ चले तो मरदाना ने कहा कि गुरू मै क्या जानू। जहां आप चाहें ले चले
इस पर गुरू नानक ने कहा कि चलो मरदाना ऐमनाबाद मे लालो बढ ई रहता है वह साधु है उसके दर्शन कर आये।
मरदाने के साथ गुरू नानक ने लालो जी के घर के बाहर पहुंच कर करतार करतार नाम से आवाज लगाई। आवाज सुनकर लालों जी ने दरवाजा खोला तो गुरु नानक को देखकर सोच में पड गया। 
गुरु नानक का घर में चारपाई पर बैठाकर आदर सत्कार किया तथा बिना औपचारिकता के चौके में बैठाकर सादा सरसों का साग और कोधरे की रोटी खिलायी। जिसमें मरदाना को अमृत जैसा स्वाद आया। इसके पश्चात भाई लालो जी के घर लगातार संतों का आना जाना शुरू हो गया। 
ऐमनाबाद के एक सरीन खत्री ने एक बार ब्रह्म भोज का आयोजन किया जिसमें संतो ब्राह्मणों को भी आमंत्रित किया गया गुरू नानक देव जी को भी उसमें निमंत्रण भेजा गया। गुरु नानक उस भोज में नहीं गये। उन्होंने कहा कि हम सात्विक भोजन करते हैं और तुम्हारा भोजन बेईमानी के पैसे से बना है। उन्होंने सेठ के भोजन तथा भाई लालो जी के घर के भोजन को निचौडा तो सेठ के भोजन से खून तथा लालो जी के घर के भोजन से दूध की धार निकली।
ऐमनाबाद के नबाब जालमखान का बेटा बुरी तरह से बीमार हो गया। जो गुरु नानक की जूठन खाने मे देकर भाई लालो जी ने उसे ठीक कर दिया। गुरु नानक भाई लालो जी के घर अपने जीवनकाल में तीन बार ठहरे। 
भाई लालो जी की मृत्यु सन 1587-88 में  हुई। 
हमें गर्व होना चाहिए कि विश्वकर्मा समाज में ब्रह्मर्षि लालों जी जैसे महान संत ने जन्म लिया। 
उन्हे कोटिशः नमन।
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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