समाज की अधोगति के मुख्य कारण

समाज की अधोगति के मुख्य कारण
सामाजिक कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है और ना ही कम होनेवाले है और हम मे से कई कलाकार या कार्यकर्ता या सम्मानित व्यक्ती नीचे बैठे तालियां बजाते रह जाएंगे क्यूंकि आप ऊंचे पद पर या सामाजिक कार्यकर्ता या कोई कला से जुड़े व्यक्ती तो हे लेकिन राजनैतिक पद और रूपया पैसा या डोनेटर नहीं है तो तालियां तो बजानी ही पड़ेगी और साथ में आपकी कारकिॅदी को ढलते देखते रहेंगे। 
शब्द कठोर है उससे मत नाता जोड़े नाता जोड़ना ही है तो अपने अंदर के कार्यकर्ता की ऊर्जा कैसे समाज से खत्म हो गई थी यह जरूर सोचिए। आज सभी अपने अपने जीवन में बहुत से कार्यकर्ता देखे होंगे और शायद आप भी हो सकते हैं क्या उन्हें अब जगा सकते हैं क्या उन्हें अब वापस समाज में जगह दे पाएंगे क्या अपनी सामाजिक ऊर्जा और आपके अंदर वक्तृत्व के बोल वापस आ सकेंगे। 
अपने कर्तव्य के प्रति एकनिष्ठ आज कोई भी व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा हैं, उनकी यह सबसे बड़ी पूंजी है बस स्टेज पर की खुर्शी और फूल-मालाएं ही है। 
जिसका समाज में सर्वथा अभाव है वह है सामाजिक निष्ठा। सामाजिक विकास एक सतत प्रक्रिया है, जो अपना आकार ग्रहण करने में लंबा समय लेती है। इसमे कई कार्यकर्ता द्वारा बहुत सहयोग और योगदान जो वर्षो लग जाते हैं और सारा साम्राज्य कार्यक्रम में आने वाले मुख्य अतिथि राजनैतिक या रुपये वाले जमा कर बैठ जाते हैं और अपने संस्थाओ के अध्यक्ष और प्रबंधक भी इनके अलावा कुछ देख नहीं पाते हैं। यही स्थिति मे कैसे समाज के विकास को बेहतर तरीके से आकार नहीं ग्रहण कर पाएंगे। इसका कारण पैसे की कमी नहीं, बल्कि स्टेज पर बैठने वाले कार्यक्रम के पूर्ण होते ही खो जाते हैं और अपने प्रति हर स्तर पर प्रतिबद्धता की कमी ही कारण है। विकास का मंत्र किसी व्यक्ति, परिवार या समाज को कुछ दे देने में नहीं, बल्कि समुदाय के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त कर देने में छिपा हुआ है। यदि धर्मशालाएं , प्रशिक्षण , महिला उद्योग के साधन, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं तथा कारीगर व्यवस्था भी उपलब्ध करा दी जाएं तो संबंधित क्षेत्र के लोग विकास की राह पर बिना व्यक्तिगत सरकारी मदद के भी चल निकलते हैं। व्यक्तिगत तौर पर किसी व्यक्ति अथवा समुदाय को कुछ दे देना तो मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने जैसा होता है। इससे संबंधित व्यक्ति अथवा समुदाय फौरी तौर पर जरूर लाभान्वित हो जाता है, किंतु उसका सामुदायिक विकास पर कोई असर नहीं पड़ता। जब कोई परिश्रम कर आगे बढ़ता है तो वह उदाहरण बनता है और वह कई अन्य लोगों के विकास का कारण भी बनता है। वह प्रेरक और उत्प्रेरक की भूमिका में आ जाता है। लेकिन हमारे सामाजिक कार्यक्रमों में जब तक संस्थाओ द्वारा कलाकार, श्रेष्ट कारीगर, कला साहित्य, शिक्षक, प्रोफेसर, चित्रकार, साहित्यकार, लेखक, कवि, सरकारी अधिकारियों, विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने वाले व्यक्ति को स्टेज पर जब बिठाना शुरू करेंगे उस समय हमारे समाज का निर्माण बहुत तेज गति से आगे बढ़ सकेगा। 
संस्थाकीय सहमति का आधार भी यही है, ताकि उनका लाभ उठाकर समाज आगे बढ़ने लगे। सबसे बड़ी बात यह भी संभव है कि इन्हीं व्यक्तीओ के सहयोग से जब काम होगा, जागरुकता की सोच से सच्चे लोगो को समाज में प्रस्थापित करे। राजनैतिक और रुपया यही मुख्य धारा से भटक कर समाज को अधोगति की ओर ले जाने में लगे हे इन्हीं लोगों की मानसिकता बदले। आधारभूत संरचनाएं खड़ी करने में सामाजिक सलाहकारो या प्रतिष्ठित पुरस्कारीत व्यक्तीओ की सलाह लेना जरूरी है। इससे अबतक की इसकी उभरी सकारात्मक छवि पर असर पड़ेगा। इस प्रकार साख बनेगी तो निश्चय ही इसमें गति आएगी।
आज का विश्वकर्मा समाज हो या फिर ओर समाज हो लेकिन समाज के लोग इन्हीं रिवाजों के घेरे में फंसा हुआ है। 
समाज में सही व्यक्ती को अपनी जगह मिले यही आशा है नहीं तो बहुत से लोग निष्ठा से समाज से जुड़े हुए हैं उन्हें भी हम खो सकते हैं।
यह लेख विश्वकर्मा साहित्य भारत के माध्यम से मेरे द्वारा लिखा गया है समाज से जुड़े हुए सभी से गुजारिश है कि इस लेख को सामाजिक द्रष्टि से ही पढ़े समझे।
©️ मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा_साहित्य_भारत

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