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Showing posts from March, 2021

सामाजिक कार्यकर्ता मे होनी चाहिए सहनशीलता

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सामाजिक कार्यकर्ता मे होनी चाहिए सहनशीलता एक मंदिर बन रहा था जो हिंदू संस्कृति के हिसाब से ही पुरातन काल की नकशीकाम और पत्थर के हिस्सों को जोड़कर एक से बढ़कर एक मूर्ति दीवार और मंदिर का कार्य होना था।  जो काम करने के लिए सलाट और शिल्पी जो पत्थर को तराषके नक्शीकाम करने के लिए तैयार थे। एक बड़ा सा पत्थर की शिला को शिल्पी और सलाट ने लिया और सभी हथियार को लेकर तैयार हुए।   जब पत्थर की शिला को जब शिल्पी ने टान्चने के लिए फटका लगाया तब एक ही फटके से शिला के दो हिस्से हो गये.। तब सलाट (शिल्पी) ने कारीगरी दिमाग लगाकर एक हिस्से को मूर्ति और दूसरे हिस्से को मंदिर के बाहर के सीढ़ी के पथ के लिए बनाया। मूर्ति इतनी शानदार बनी और मंदिर को प्रतिष्ठित कर सभी समाज के लिए खुला किया । जब जब मंदिर पुराना होता गया वैसे ही भगवान और मंदिर की श्रद्धा बढ़ती जा रही थी। लोग आँख बंदकर  रुपए, पैसे, चढ़ावा, फूल, और सोना चांदी के आभूषण भी मूर्ति को चढ़ाने लगे। और दूसरी तरफ वो पत्थर जो एक ही पहाड़ एक ही शिला का दूसरा हिस्सा था जो मंदिर के बाहर पथ पर जड़ा हुआ था। उस पत्थर के ऊपर से पैर रखकर लाखो - करोड़ो श्

श्री संकटमोचन विश्वकर्माष्टकम्

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श्री संकटमोचन विश्वकर्माष्टकम् आदि समै जब सृष्टि रची तब, सोची करी ब्रह्मांड बनाए। स्थीर भयो नहीं शेष फना पर, विश्वकर्मा हरि रूप आए। स्थीर करी धरती ततकालहि जीव सभी सुरधाम रचाए । को नहीं जानत है जग में, विश्वकर्मा नाथ कहाए।। उग्र कराल कुरुप दिवाकर, वन्दन करी करमा हरषाए। तेज सुमन्द करी सुशोभित, पीर पराई सराण चढाए।  रांधल बैन सजीव चराचर, राखि करी सन्ताप मिटाए।  पारवती शिव लग्न समै जब, मोहित ब्रम्हन भान भुलाए।  दुसर बार गिरा तनुजा पर, मोहित होकर पाछल धाए।  दुनहि बार बहिष्कृत ब्रम्हहि, मान राखी मख भाग दिलाए।  मेरु निवासिन नागिन कन्या, नाम इला हरि भक्त कहाए।  औसर पाकर एक दिन दानव, ताहि हरि लइ जाइ सताए।  पीर हरी पल में प्रभु ने जब, आतॅ पुकार तहं आए।  गंग समीप करै तप भीषण, ऋषि अंगिरा ध्यान लगाए।  देखी दशा नभ वाणि कहे तब तजि कमाॅ क्यों मन भटकाए।  ध्यान किए ईकनिष्ठ प्रभु का, शिल्पहिं धारण अथवॅ पाए।  धमॅ परायण निधॅन दम्पति, एक रथकार वृत्ति चलाए।  नारि निपूत हरि शरणे जाई, अमावस पूजन ध्यान लगाए।  मेहर खूब करी कमॅहि जब, सुंदर सुत सुख संपति पाए।  विप्र निशाचर नाम जनाजॅन, शाप मिटा विश्वकुंड

विश्वकर्मा चौबीसी

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विश्वकर्मा चौबीसी मेरा पूजन करके तो देखो, कार्य सफल न हो जाए तो कहना।  मेरा स्मरण करके तो देखो, पराक्रम न बढ़ जाए तो कहना।  मेरा यज्ञ करके तो देखो, सबका पालन न हो जाए तो कहना।  मेरा भजन करके तो देखो, सर्व कल्याण न हो जाए तो कहना।  मेरी प्रार्थना करके तो देखो, कर्मयोगी न हो जाओ तो कहना।  मेरी आरती करके तो देखो, द्रेशभाव न मिट जाए तो कहना।  मेरी उपासना करके तो देखो, धनवान न हो जाओ तो कहना।  मेरी साधना करके तो देखो, सामर्थ्यवान न हो जाओ तो कहना।  मेरी आराधना करके तो देखो, बलवान न हो जाओ तो कहना।  मेरी वंदना करके तो देखो, सत्य मार्ग न मिल जाए तो कहना।  मेरा अनुष्ठान करके तो देखो, प्रचंडता न जाए तो कहना।  मेरी चालीसा पढ़कर तो देखो, आत्मनिष्ठा न जाए तो कहना।  मेरी प्रदक्षिणा करके तो देखो, गंभीरता न आ जाए तो कहना।  मेरा ध्यान लगाकर तो देखो, दीर्घ जीवन न मिल जाए तो कहना।  मेरा कीर्तन करके तो देखो, मर्यादा शक्ति न जाए तो कहना।  मेरा तप करके तो देखो, आत्मा निर्विकार न हो जाए तो कहना।  मेरा नमन करके तो देखो, शांतिदूत न बन जाओ तो कहना।  मेरा जप करके तो देखो, मृत्यु से निर्भय ना हो जाओ

शिल्पकर्म ही श्रेष्ठकर्म

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मनुष्य और ब्राम्हण वर्ग का सबसे उत्तम कर्म शिल्पकर्म माना जाता है। शिल्पकर्म को मनुष्य लोग किस प्रकार से करें वेदों में इसका उपदेश दिया है।  स्वाहा यज्ञं कृणोतनेन्द्राय यज्वनो गृहे। तत्र देवाँ उप ह्वये ॥ ॥ १/१३/१२ ॥ भावार्थ जो यज्ञमान या यज्ञकर्ता को अपने घर पर शिल्पकर्मरुपी यज्ञ करने के लिए अनुभवी शिल्पी पंडित विद्वानों को बुलाना चाहिए। शिल्पकर्म अर्थात् विविध प्रकार के यन्त्र , कला - कौशल , रोबोट ,वाहन, विमान, शिल्प भवन निर्माण आदि बनाने के लिए उनके अनुभवी शिल्पी विद्वानो को प्रार्थना के साथ बुलाकर उनकी सहायता से यंत्र, कला, शिल्प आदि बनाने चाहिए। और उनके सहभागी बनकर पदार्थविद्या सीखनी चाहिए। यज्ञकताॅ या शिक्षार्थी को आलस्य त्यागकर विद्या और क्रिया की कुशलता सीखनी चाहिए। कुछ दो प्रकार के यज्ञ एक शिल्पकर्म वातावरण शुद्धि के लिए होता हैं और दूसरा शिल्पकर्म जिससे वाहन विमान वेगयंत्र नौका जिनसे पृथ्वी, जल व अंतरिक्ष मे गमन हो सिद्ध करने के लिए शिल्प विधा सीखनी चाहिए।  ऐसी ही ईश्वर या विश्वकर्मा जी की आज्ञा सब वसुंधरा के मनुष्यों के लिए है। पुरुषार्थी होकर पदार्थों के गुणों को

सृजन कर हवन

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सृजन कर हवन सृष्टि की सुंदर धरा - वसुधा मे होता है कुंड हवन,  ब्रम्हत्व पूर्ण विधि - विधानों से करता है शिल्पी हवन,  मंत्रों की गूंज से अरणि यंत्र याग प्रज्वलित हवन,  लपटें उठी सौम्य सुगंध,  गगन गाए सुर नव भवन,  यज्ञमान आहुति देता बार बार,  समिधा जीवों के जतन,  उपवास अधीर धारण कर,  सम्मिलित लाग लगन,  प्रतिष्ठा पावन वास्तु शिल्पकर्म,  सूख करे आनन,  श्रीफल शिखा शिल्पी भौम,  अचल सम्पन्न कर हवन,  कर जोड़ प्रार्थी सुखमय,  देव गण मन पावन,  तपसी जन पुष्प सुमन,  बरसाए मेघ प्रसन्न, होम हवन अति हितकारी,  प्राण सुशोभित जीवन,  पूजा आरती छंद विश्वहताॅ, करे सब सुख सृजन, रचनाकार - ©️मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत

आज होली जलने वाली है !

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राज सत्ता के सहारे , परवस्त्र होकर नाचता इंसान ! पराक्रमी दीन-शोशित काट रहा है दिन भर भर ! आज वसुंधरा पर पिशाचों की ठिठोली खेल उठी है ! आज होली जलने वाली है ! अबला नारियों की राह , सुलगते कोयले चल पडी है ! चौगान में 2 स्वचिंगारियों की ज्वाला घुटती जा रही है ! दीन-दुखी-पात्र में अब निर्वस्त्र होली जल रही है ! आज होली जलने वाली है ! सृष्टि में सुगंध सुमन भी खिलने का सोचे कैसे ! अभिमान मे उन्मत्त मानव, खेल रंग-राग आज कैसे ! काष्ठ के ढेरों पर भयंकर होली आज पल रही है ! आज होली जलने वाली है ! रचनाकार - मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत

सुन तू अंधेरे तुझे ले चलू उजाले तक,

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सुन तू अंधेरे तुझे ले चलू उजाले तक, कहीं घनघोर अंधेरा छाए जब,  कहीं उजाला नज़र ना आये जब,  खुद को खुद से चुनौती मिले जब,  टकोर दिल तलक तक टकराए जब,  अंतरमन की सुन तू आवाज जब,  मुमकिन कर उठ, सोच विचार न अब,  जब लम्हा-लम्हा 'मनपसंद' हो तब  ठान, दीप से दीप जलाने की बारी हे अब गतिशील तेज उजाला की ओर जब,  देख रोम - रोम चमक उठा हे जब,  सुन तू अंधेरे तुझे ले चलू उजाले तक,  रचनाकार - ©️मयूर मिस्त्री - मोड़ासा

विश्वकर्मा वंशी राजा मंगलसिंह सिंह रामगढ़िया

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विश्वकर्मा वंशी राजा मंगलसिंह सिंह रामगढ़िया मंगल सिंह रामगढ़िया (1800-1879) के एक प्रमुख सिख नेता थे, जो एक सरदार थे, साथ ही विश्वकर्मा वंश से थे। जिन्होंने पहले और दूसरे एंग्लो-सिख युद्धों में भाग लिया। बाद में, उन्हें अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का प्रबंधक नियुक्त किया गया। उन्होंने "सरदार-ए-बवकर" का खिताब अपने नाम किया। 1862 में 17 साल तक अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के प्रबंधक 1879 में अपनी मृत्यु तक प्रसिद्ध सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया के भतीजे दीवान सिंह रामगढ़िया के पुत्र थे। मंगल सिंह दीवान सिंह के बेटे और सिख नेता जस्सा सिंह रामगढ़िया के भाई तारा सिंह रामगढ़िया के पोते थे। वह जस्सा सिंह के बेटे जोध सिंह के कुछ सम्पदाओं का उत्तराधिकारी थे । अपने छोटे दिनों के दौरान, मंगल सिंह महाराजा रणजीत सिंह की उपस्थिति में रहे, जिन्होंने उन्हें कई गांवों में जागीरें दीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद, मंगल सिंह को चार सौ फुट और विरासती पुराने रामगढ़िया कबीले के एक सौ दस तलवारों की कमान पेशावर भेज दी गई। वहाँ उन्होंने तेज सिंह और हरि सिंह नलवा के अधीन काम किया और अप्रैल 1837 में जमरू