शिल्पकर्म ही श्रेष्ठकर्म

मनुष्य और ब्राम्हण वर्ग का सबसे उत्तम कर्म शिल्पकर्म माना जाता है। शिल्पकर्म को मनुष्य लोग किस प्रकार से करें वेदों में इसका उपदेश दिया है। 

स्वाहा यज्ञं कृणोतनेन्द्राय यज्वनो गृहे।
तत्र देवाँ उप ह्वये ॥
॥ १/१३/१२ ॥
भावार्थ
जो यज्ञमान या यज्ञकर्ता को अपने घर पर शिल्पकर्मरुपी यज्ञ करने के लिए अनुभवी शिल्पी पंडित विद्वानों को बुलाना चाहिए।
शिल्पकर्म अर्थात् विविध प्रकार के यन्त्र , कला - कौशल , रोबोट ,वाहन, विमान, शिल्प भवन निर्माण आदि बनाने के लिए उनके अनुभवी शिल्पी विद्वानो को प्रार्थना के साथ बुलाकर उनकी सहायता से यंत्र, कला, शिल्प आदि बनाने चाहिए। और उनके सहभागी बनकर पदार्थविद्या सीखनी चाहिए। यज्ञकताॅ या शिक्षार्थी को आलस्य त्यागकर विद्या और क्रिया की कुशलता सीखनी चाहिए। कुछ दो प्रकार के यज्ञ एक शिल्पकर्म वातावरण शुद्धि के लिए होता हैं और दूसरा शिल्पकर्म जिससे वाहन विमान वेगयंत्र नौका जिनसे पृथ्वी, जल व अंतरिक्ष मे गमन हो सिद्ध करने के लिए शिल्प विधा सीखनी चाहिए।
 ऐसी ही ईश्वर या विश्वकर्मा जी की आज्ञा सब वसुंधरा के मनुष्यों के लिए है। पुरुषार्थी होकर पदार्थों के गुणों को जानकर उनका उपयोग कर संसार का उपकार और सहयोग करना चाहिए। 
जैसे विज्ञानकताॅ एडीसन ने एक संस्कृत श्लोक के अर्थ पर विचार किया तो उन्हे बल्ब बनाने का संकेत मिला फिर पुरुषार्थ से एक हजार बार से भी अधिक प्रयास करने के बाद सफलता से आज उनके परिश्रम से पूरे संसार को सुख प्राप्त हो रहा है।। ऐसे ही नवीन खोजी विद्यार्थियो को नित्य पदार्थ विद्या को जानकर उससे विविध प्रकार के शिल्पकर्म सिद्ध करने चाहिए।
शिल्पकर्म तमाम विध्याओ से उत्तम कर्म हे जो भगवान विश्वकर्मा की अनंत तेज गति से शिल्पकमीॅ को आशीष रूपी फल प्राप्त हुआ है। 
संकलनकर्ता - मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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