आज होली जलने वाली है !

राज सत्ता के सहारे , परवस्त्र होकर नाचता इंसान !
पराक्रमी दीन-शोशित काट रहा है दिन भर भर !
आज वसुंधरा पर पिशाचों की ठिठोली खेल उठी है !
आज होली जलने वाली है !

अबला नारियों की राह , सुलगते कोयले चल पडी है !
चौगान में 2 स्वचिंगारियों की ज्वाला घुटती जा रही है !
दीन-दुखी-पात्र में अब निर्वस्त्र होली जल रही है !
आज होली जलने वाली है !

सृष्टि में सुगंध सुमन भी खिलने का सोचे कैसे !
अभिमान मे उन्मत्त मानव, खेल रंग-राग आज कैसे !
काष्ठ के ढेरों पर भयंकर होली आज पल रही है !
आज होली जलने वाली है !

रचनाकार - मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत


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