श्री संकटमोचन विश्वकर्माष्टकम्
श्री संकटमोचन विश्वकर्माष्टकम्
आदि समै जब सृष्टि रची तब, सोची करी ब्रह्मांड बनाए।
स्थीर भयो नहीं शेष फना पर, विश्वकर्मा हरि रूप आए।
स्थीर करी धरती ततकालहि जीव सभी सुरधाम रचाए ।
को नहीं जानत है जग में, विश्वकर्मा नाथ कहाए।।
उग्र कराल कुरुप दिवाकर, वन्दन करी करमा हरषाए।
तेज सुमन्द करी सुशोभित, पीर पराई सराण चढाए।
रांधल बैन सजीव चराचर, राखि करी सन्ताप मिटाए।
पारवती शिव लग्न समै जब, मोहित ब्रम्हन भान भुलाए।
दुसर बार गिरा तनुजा पर, मोहित होकर पाछल धाए।
दुनहि बार बहिष्कृत ब्रम्हहि, मान राखी मख भाग दिलाए।
मेरु निवासिन नागिन कन्या, नाम इला हरि भक्त कहाए।
औसर पाकर एक दिन दानव, ताहि हरि लइ जाइ सताए।
पीर हरी पल में प्रभु ने जब, आतॅ पुकार तहं आए।
गंग समीप करै तप भीषण, ऋषि अंगिरा ध्यान लगाए।
देखी दशा नभ वाणि कहे तब तजि कमाॅ क्यों मन भटकाए।
ध्यान किए ईकनिष्ठ प्रभु का, शिल्पहिं धारण अथवॅ पाए।
धमॅ परायण निधॅन दम्पति, एक रथकार वृत्ति चलाए।
नारि निपूत हरि शरणे जाई, अमावस पूजन ध्यान लगाए।
मेहर खूब करी कमॅहि जब, सुंदर सुत सुख संपति पाए।
विप्र निशाचर नाम जनाजॅन, शाप मिटा विश्वकुंड नहाए।
महा चाह उर कन्या दान की, दशॅन औ हरि आशिष पाए।
कन्यादान दिया सच्चे दिल, पुण्य सुमेरु महा फल पाए।
दीन दयाल उदार शिरोमणि, देवन के तुम काज बनाए।
कौन सा संकट मौर गरीब का, जो तुम सौ नहीं जात भगाए।
बेगी हरो भगवान महाप्रभु, जो कछु संकट मोहि सताए।
दोहा
तुम तजि हौ कासों कहो, को हितु और हमार।
हमरी भव बाधा हरो, हम हैं दास तुमार।।
।। इति श्री संकटमोचन विश्वकर्माष्टकम् सम्पूर्णम् ।।
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