सुन तू अंधेरे तुझे ले चलू उजाले तक,
सुन तू अंधेरे तुझे ले चलू उजाले तक,
कहीं घनघोर अंधेरा छाए जब,
कहीं उजाला नज़र ना आये जब,
खुद को खुद से चुनौती मिले जब,
टकोर दिल तलक तक टकराए जब,
अंतरमन की सुन तू आवाज जब,
मुमकिन कर उठ, सोच विचार न अब,
जब लम्हा-लम्हा 'मनपसंद' हो तब
ठान, दीप से दीप जलाने की बारी हे अब
गतिशील तेज उजाला की ओर जब,
देख रोम - रोम चमक उठा हे जब,
सुन तू अंधेरे तुझे ले चलू उजाले तक,
रचनाकार -
©️मयूर मिस्त्री - मोड़ासा
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