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Showing posts from May, 2023

विश्वकर्मिय काष्ठ शिल्पकारों की मेहनत से बनता है जगन्नाथपुरी का रथ

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विश्वकर्मिय काष्ठ शिल्पकारों की मेहनत से बनता है जगन्नाथपुरी का रथ भारत में यह यात्रा मुख्य रूप से ओडिशा में जुलाई माह में आयोजित की जाती है। जगन्नाथ रथ यात्रा के मुख्य आकर्षण मंदिर के आकार के विशाल रथ होते हैं, जो जगन्नाथ मंदिर से तीन देवताओं को ले जाते हैं। श्री विश्वकर्मा साहित्य धर्म प्रचार समिति के द्वारा आपको विश्वकर्मा समाज और उनसे जुड़े साहित्य की सबसे बड़ी मात्रा में जानकारी आप सभी को मिलती रही है आज आप सभी के लिए जगन्नाथ प्रभु की रथयात्रा और रथ निर्माण के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं। यह रथ वास्तुशिल्प के चमत्कार माने जाते हैं, अतः निश्चित रूप से इन शानदार रथों के निर्माण की प्रक्रिया भी जटिल और विस्तृत होती है। हर साल नए रथों का निर्माण किया जाता है, और इन रथों को विशालता तथा भव्यता प्रदान करने के लिए लगभग 200 बढ़ई, सहायक, लोहार, दर्जी और चित्रकारों का कठिन परिश्रम और ईश्वर के प्रति अथाह समर्पण की आवश्यकता होती है। ये सभी 58 दिनों की सख्त समय सीमा के अनुसार अथक परिश्रम करते हैं तथा इन अजूबों का निर्माण करते हैं। यह बेहद दिलचस्प है की, विश्वकर्मिय शिल्पकार

विंध्य के अमर शहीद 'मथानी लोहार'

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विंध्य के अमर शहीद 'मथानी लोहार' सन् अठारह सौ संतावन की क्रांति में आधिकारिक (गजेटियर व अन्य सरकारी दस्तावेजों के अनुसार) तौर पर विंध्यक्षेत्र से रणमत सिंह, श्यामशाह के बाद एक नाम जो प्रमुखता के साथ आता है वह है ..मथानी लोहार.. का। क्या कोई अमर शहीद मथानी लोहार के गाँव व उनके वंशजों के बारे में कुछ जानता है..? सन् संतावन की क्रांति में आरा(बिहार) से कुँवर सिंह ने कूँच किया रीमा राज्य की ओर, यहां के राजा से मदद की उम्मीद में। क्रांतिकारियों के अगुआ नाना साहब ने रीमा राजा रघुराज सिंह को अँग्रेजों के खिलाफ मदद देने के लिए मार्मिक पत्र लिखा था। (रीवा स्टेट गजेटियर में नानासाहेब का पत्र व रघुराज सिंह का जवाब दोनों ही वृस्तित रूप में उल्लिखित हैं) तब अँग्रेजों के पक्के गुलाम बन चुके और अपनी 'कामलीला' के लिए सरनाम रघुराज सिंह ने नाना साहब को जवाबी पत्र लिखा कि यदि कोई बागी (क्रांतिकारी) रीमा राज्य की सीमा में घुसेगा तो उसके साथ दुश्मनों जैसा सलूक किया जाएगा(यह धमकी भी रीवा स्टेट गजेटियर में उल्लिखित है)। सूबेदारों व कारिंदों को क्रांतिकारियों से निपटने का हुक्म दे

भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित शिवलिंग को कार्तिकेय द्वारा स्थापित

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भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित शिवलिंग को कार्तिकेय द्वारा स्थापित  कार्तिकेय जी भगवान शिव और भगवती पार्वती के पुत्र हैं । ऋषि जरत्कारू और राजा नहुष के बहनोई हैं और जरत्कारू और इनकी छोटी बहन मनसा देवी के पुत्र महर्षि आस्तिक के मामा । भगवान कार्तिकेय छ: बालकों के रूप में जन्मे थे तथा इनकी देखभाल कृतिका (सप्त ऋषि की पत्निया) ने की थी, इसीलिए उन्हें कार्तिकेय धातृ भी कहते हैं। सूतजी बोले, हे ऋषियो! इस प्रकार तीनों लिंगों की स्थापना करने के बाद देवताओं की विजय स्तंभ रोपने की इच्छा को मान देकर कार्तिक ने अपनी विजय की यादगार के लिए विजय स्तंभ बनाने की बजाय उसके लिए भी एक शिवलिंग की स्थपना की और उसका नाम स्तंभेश्व रखा। इसके बाद शिवलिंग की प्रतिष्ठा का विष्णु ने तथा प्रभु श्रीविश्वकर्मा ने वर्णन करके देवताओं को भी शिवलिंग की प्रतिष्ठा करने की इच्छा प्रकट की । इससे उन सबके बदले में कार्तिक स्वामी ने सिद्धेश्वर के नाम से पांचवां लिंग बनाया। जो सब देवता अलग-अलग लिंग बनाएंगे, तो अधिक लिंगों की पूजा कौन करेगा और  इस प्रकार से प्रतिष्ठा किए हुए लिंग जो पूजन बिना रहे, तो उनका प्रायश्चित

भारतीय संगीत दुनिया के गौरव श्री नानजीभाई मिस्त्री

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भारतीय संगीत दुनिया के गौरव श्री नानजीभाई मिस्त्री  यदि मनुष्य में साहस, पुरुषत्व की भावना के साथ-साथ नैसर्गिक गुण हों तो मनुष्य कैसे उन्नति कर सकता है और प्रसिद्धि प्राप्त कर सकता है। यह जानने के लिए स्व. श्री नानजीभाई मिस्त्री का इतिहास जानने योग्य है। हालांकि प्रज्ञाचक्सु ने बिना किसी परिवार या अन्य लोगों की मदद के बिना किसी चीज से एक अच्छी सुगंध पैदा की और एक अच्छा और महान जीवन जिया जिसे आज भी उनके प्रशंसक, परिवार के सदस्य और कलाकार नहीं भूल सकते हैं। ऐसे महान विरले व्यक्ति और विश्वकर्मा समाज के गौरव को शत शत नमन करते हैं।  खुद श्री नानजीभाई अघेडा जी का जन्म वर्ष 1931 में भावनगर जिले के नारी गांव में विश्वकर्मा कुल के गुर्जर बढ़ई जाति में हुआ था। उनके पिता रेलवे में कार्यरत थे। बढ़ईगीरी (काष्ठ कला) भी करते हैं। श्री नानजीभाई मिस्त्री ने केवल पाँच वर्ष की अल्पायु में ही शीतला रोग के कारण अपनी दोनों आँखें खो दी थीं। इसी दौरान मां की भी अचानक मौत हो गई। पिता ने पुनर्विवाह किया। दो भाई और चार बहनें थी और घर में एक नई माँ आई थी। और कम उम्र में घर छोड़ने का समय आ गया था। स्वय

मरुत्सखा की उड़ान - शिवकर बापूजी तलपदे जी

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मरुत्सखा की उड़ान -  शिवकर बापूजी तलपदे जी  शिवकर बापूजी तलपदे (1864 - 17 सितम्बर 1917 ) एक भारतीय विद्वान थे। उन्होंने 1895 में उन्होने मानवरहित विमान का निर्माण किया था वे मुंबई के निवासी थे तथा संस्कृत साहित्य एवं चित्र कला के अध्येता थे। शिवकर बापूजी तलपदे जी का   जन्म सन 1864 में मुंबई महाराष्ट्र में हुआ था। ‘जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट, मुंबई’ से अध्ययन समाप्त कर वे वहीं शिक्षक नियुक्त हुये। पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे का विवाह श्रीमती लक्ष्मीबाई से हुआ था। उनके दो पुत्र एवं एक पुत्री थे। जेष्ठ पुत्र मोरेश्वर मुंबई पौरपालिका के स्वास्थ विभाग में कार्यरत थे एवं कनिष्ठ पुत्र बैंक ऑफ़ बॉम्बे में लिपिक थे। पुत्री का नाम नवुबाई था। उनके विद्यार्थी काल में गुरू श्री चिरंजीलाल वर्मा से वेद में वर्णित विद्याओं की जानकारी उन्हें मिली। उन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती कृत ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ एवं ‘ऋग्वेद एवं यजुर्वेद भाष्य’ एवं महर्षि भारद्वाज की 'विमान संहिता' का अध्ययन कर प्राचीन भारतीय विमानविद्या पर कार्य करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने संस्कृत सीखकर वैदिक विमानविद्

महान वैज्ञानिक पीएल मिस्त्री (पूनचंद लखाजी मिस्त्री)

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विश्वकर्मा वंश गौरव  वैज्ञानिक दिवंगत पीएल मिस्त्री (पूनचंद लखाजी मिस्त्री) भारत ऊर्जा दक्षता के लगभग भुला दिए गए विज्ञान का अग्रणी है। दुनिया पर अपनी छाप छोड़ने वाले लोगों की गूंज देश को जगाती है। विश्वकर्मा वंशी के लिए गौरव और भारत देश के लिए एक शानदार, अविस्मरणीय, अद्वितीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने न केवल समाज का सुधार किया बल्कि पूरे विश्व को गर्व है। एक प्रभावशाली व्यक्तित्व जिसने वर्षों पहले विज्ञान और तंत्र के सिद्धांतों को मूर्त रूप देकर अपनी योग्यता साबित की थी।  सन 1914 से 1991 के मध्य युग के विश्वकर्मा ऐसे ही एक शख्स हैं पीएल मिस्त्री। पूनाचंद लखाजी मिस्त्री का जन्म सन 1914 में राजस्थान के पाली जिले के एक छोटे से शहर तखतगढ़ में एक साधारण विश्वकर्मा सुथार परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री लखाजी सुतार तखतगढ़ के एक बढ़ई थे। उनके पिता विश्वकर्मा काष्ठ कला परंपरा में काम करते थे। बढ़ईगीरी में उनके पिता के कौशल ने उन्हें प्रयोगशाला में प्रेरित किया। उन्होंने बड़ी विपरीत और आर्थिक परिस्थितियों में कठिन अध्ययन किया। उन दिनों वे अपने बेटे को पांचवीं कक्षा तक भी नहीं पढ़ा सकत

विश्वकर्मा वंश के वीरों की गाथा वेलुथम्पी अचारी का इतिहास:

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विश्वकर्मा वंश के वीरों की गाथा वेलुथम्पी अचारी का इतिहास: मदुराई जिले में वेलुथम्पी अचारी के बारे में ज्यादातर चंदन देवा क्षेत्र के द्वारा में चर्चित की जाती है। तत्कालीन अत्याचारी सरकारी अधिकारियों के प्रति उनकी वीरता, निडरता और अपने आश्रितों की मदद ने उनको एक किंवदंती (कहीं सुनी कथा) बना दिया। वेलुथम्पी अचारी का जन्म तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के पुन्नैवसल गाँव में हुआ था और उनका जन्म का नाम मोवेन्दन था। ठकप्पन मुथैया अचारी पेशे से पीतल श्रमिक यानी ताम्रकार का एक परिवार आजीविका की तलाश में मदुराई आया था। आचारी ने मदुराई में एक महिला से बलात्कार करने आए छह लोगों को मार दिया था और महिला के सम्मान की रक्षा के लिए तभी से वेलुथम्पी के रूप में जाना जाने लगे थे । ब्रिटिशों के लिए चोर थे। वह जो हमेशा दूसरों की भलाई के लिए काम करते थे और उन लोगों की मदद करते है जो उस पर निर्भर हैं। ब्रिटिश पुलिस को भेष बदल कर धोखा देने, पुलिस के कब्जे से भागने, मौजूदा गोरों को लूटने, ब्लैकमेल करने और दुश्मन को टेढ़े-मेढ़े धनुष से मारने जैसी साहसिक गतिविधियों ने लोगों को आकर्षित किया। अपने साथियो

"स्तम्भराज" विजय के प्रतीक हैं पाषाण स्‍तंभ

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"स्तम्भराज" विजय के प्रतीक हैं पाषाण स्‍तंभ शिल्प की दृष्टि बहुत दूर तक फैली हुई है अनेक दरवाजे शिल्प, स्थापत्य, कला, वैभव, रचना, मूर्ति जैसे विषयो के खुले हैं। आज एक ओर द्वार स्तंभों की ओर भी खुलता है। स्तंभ यानी लोह काष्ठ शीला धातु से बने खंभे । काष्ठ से लेकर पाषाण तक के खंभे हमारी संस्कृति की झलक मिलती है । अनेक प्रमाणित ग्रंथो वेदों से लेकर पुराणों और शिल्पशास्त्रों में उल्लेख मिलता आया है। शासकों ने यदि विजय के घोषणा के रूप में करवाए तो आराधकों ने देवताओं के यशवर्धन के उद्देश्य से स्तंभों का निर्माण करवाया था । यू कहे तो मीनार भी उसका एक रूप है। अशोक के स्तंभ,जीजाक का कीर्तिस्तंभ, कुंभा का विजय स्तंभ हेलियोडोरस का विष्णु ध्वज भारत में सबसे कलात्मक स्तंभ है, साथ ही कैलास मंदिर ईलोरा का स्तम्भ जब देखो तब अपनी कला के कौशल का स्मारक जैसा लगता है। इन स्तंभों का निर्माण हमेशा शासकों द्वारा होता रहा है, आज के युग में भी अहमदाबाद में भी एक विजयस्तंभ बना है। अन्य जगह की बात करे तो रोम की तर्ज पर क्लॉक (घड़ी) टावर भी बनाए गए हैं । इनका उदय या उन्नत स्वरूप संस्कृति गौरव