मरुत्सखा की उड़ान - शिवकर बापूजी तलपदे जी
ता. 17 सितम्बर 1917 को उनका स्वर्गवास हुआ एवं ‘मरुत्सखा’ विमान निर्माण का कार्य अधूरा रह गया। शिवकर बापूजी तलपदे (1919-1949) एक शोधकर्ता और संस्कृत ग्रंथों के गूढ़ पाठक थे। उन्होंने पहले विमान को उड़ाने का प्रयास किया। विमान का नाम मरुतसखा था।
तलपड़े जी जो मुंबई में रहते हैं, उनको संस्कृत और वेदों के एक विशेषज्ञ पंडित सुबराय शास्त्री का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। एयरोनॉटिक्स ने विद्वानों द्वारा लिखित, विमान को उड़ान भरने के लिए प्रेरित किया। बाल्यकाल से ही उन्हें संस्कृत ग्रंथों, विशेषतः महर्षि भरद्वाज रचित “वैमानिक शास्त्र” (Aeronauti cal Science) में अत्यन्त रुचि रही थी। वे संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। पश्चिम के एक प्रख्यात भारतविद् स्टीफन नैप (Stephen-K napp) श्री तलपदे के प्रयोगों को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं। एक अन्य विद्वान श्री रत्नाकर महाजन ने श्री तलपदे के प्रयोगों पर आधारित एक पुस्तिका भी लिखी हैं।
श्री तलपदे का संस्कृत अध्ययन अत्यन्त ही विस्तृत था और उनके विमान सम्बन्धित प्रयोगों के आधार निम्न ग्रंथ थेः
महर्षि भरद्वाज रचित् वृहत् वैमानिक शास्त्र
आचार्य नारायण मुन रचित विमानचन्द् रिका
महर्षि शौनिक रचित विमान यन्त्र
महर्षि गर्ग मुनि रचित यन्त्र कल्प
आचार्य वाचस्पति रचित विमान बिन्दु
महर्षि ढुण्डिराज रचित विमान ज्ञानार्क प्रकाशिका
इस महान ऐतिहासिक क्षण के गवाह थे महादेव गोविंद रानडे और तीसरे सयाजीराव गायकवाड़। पुणे का केसरी अखबार भी इस बात का उल्लेख करता है। बड़ोदा के महाराज श्री गायकवाड़, जो कि श्री तलपदे के प्रयोगों के लिए आर्थिक सहायता किया करते थे।
विमान के प्रयोग के बाद उन्होंने विमान को तलपड़े के घर पर रखा गया था। इसके विपरीत, अमेरिकी सेना ने राइट भाइयों को 5 डॉलर देकर उनके प्रयोग में मदद की। बताया जाता है कि श्री तलपदे के स्वर्गवास हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने कर्ज से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से “मारुतशक्ति” के अवशेष को उसकी तकनीक सहित किसी विदेशी संस्थान को बेच दिया था।
पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे जी द्वारा निम्न पाँच पुस्तकें लिखी है।
1.प्राचीन विमान कला का शोध
2.ऋग्वेद-प्रथम सूक्त व उसका अर्थ
3.पातंजलि योगदर्शनान्तर्गत शब्दों का भूतार्थ दर्शन
4.मन और उसका बल
5.गुरुमंत्र महिमा
साथ ही उन्होंने अनेक सामयिक और पुस्तकों का संपादन कार्य भी किया है।
1.वैदिक धर्मस्वरुप ‘ऋग्वेदादिकभाष्यभूमिका’ का मराठी अनुवाद, 1904
2.राष्ट्रीय उन्नतीचीं तत्वें
3.ब्रह्मचर्य, १९०५
4.राष्ट्रीसूक्त व त्याचा अर्थ
5.वैदिक विवाह व त्याचा उद्देश
6.सत्यार्थप्रकाश पूर्वार्ध, १९०७
7.गृहस्थाश्रम, १९०८
8.योगतत्त्वादर्श
उनके द्वारा अन्य कार्य और उनको पुरस्कार मिले हैं।
1.संपादक, ‘आर्यधर्म’
2.मंत्री, वेद विद्या प्रचारिणी पाठशाला
3.प्रकाशक, शामराव कृष्णअणि मंडली
4.सदस्य, वेदधर्म प्रचारिणी सभा
5.सदस्य, आर्य समाज। काकड़वाडी, मुंबई
6.कोल्हापूर शंकराचार्य से ‘विद्याप्रकाशप्रदीप’ उपाधि से समान्नित
तलपड़े जी के काम के आधार पर, फिल्म प्रसारित की गई थी। फिल्म में तलपदे जी के चरित्र को बहुत ही गलत तरीके से दर्शाया गया है। इसपर बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी। शिवकर बापूजी तलपड़े द्वारा लिखित प्राचीन विमानन की पुस्तक भी वर्तमान में दुर्लभ है।
यहाँ पर यह बताना अनुचित नहीं होगा कि राइट बंधु ने जब पहली बार अपने हवाई जहाज को उड़ाया था तो वह आकाश में मात्र 120 फुट ऊँचाई तक ही जा पाया था जबकि श्री तलपदे जी का विमान 1500 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा था। सबसे ज्यादा दुःख की बात तो यह है कि इस घटना के विषय में विश्व की समस्त प्रमुख वैज्ञानिको और वैज्ञानिक संस्थाओं और संगठनों को पूर्ण जानकारी होने के बावजूद भी आधुनिक हवाई जहाज के प्रथम निर्माण का श्रेय राईट बंधुओं को दिया जा रहा है और जारी भी है, और हमारे देश की सरकार ने कभी भी इस विषय में आवश्यक संशोधन करवाने के लिए कहीं आवाज नहीं उठाई न तो विश्वकर्मा समाज ने आवाज उठाई हे।
हमारे प्राचीन ग्रंथ का ज्ञान अथाह सागर हैं किन्तु वे ग्रंथ अब लुप्तप्राय -से हो गए हैं। यदि कुछ ग्रंथ कहीं उपलब्ध भी हैं तो उनका किसी प्रकार का उपयोग ही नहीं रह गया है क्योंकि हमारी दूषित शिक्षानीति हमें अपने स्वयं की भाषा एवं संस्कृति को हेय तथा पाश्चात्य भाषा एवं संस्कृति को श्रेष्ठ समझना ही सिखाती है।यह हमारे विश्वकर्मा समाज और उनसे जुड़ी कला का अत्यंत महत्वपूर्ण आईना दिखा रहे हैं जो हम विश्वकर्मा वंशी शायद यह कला वैभव से दूर होते जा रहे हैं।
हमको अपने पूर्वजों और महान विश्वकर्मा वंशी शिल्पकला विशेषज्ञ पूज्य तळपदे जी पर गर्व है। स्वामी दयानन्द जी ने अपने वेदभाष्य में शिल्पियों के लिए बहुत सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग किया है ।
यह लेख संकलन मे नीचे दिए गए पुस्तकों और ग्रंथ का सन्दर्भ के रूप में मदद लिया गया है।
प्राचीन विमान विद्या (पूर्वार्ध)
अर्वाचीन भारतीय वैज्ञानिक, भाग 2,
विमान के आविष्कारक - पंडित शिवकर बापूजी तलपड़े जी,
विज्ञान-कथा, दूसरा भाग,
संकलनकर्ता - मयुरकुमार मिस्त्री
श्री विश्वकर्मा साहित्य धर्म प्रचार समिति
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