मरुत्सखा की उड़ान - शिवकर बापूजी तलपदे जी

मरुत्सखा की उड़ान - शिवकर बापूजी तलपदे जी 
शिवकर बापूजी तलपदे (1864 - 17 सितम्बर 1917 ) एक भारतीय विद्वान थे। उन्होंने 1895 में उन्होने मानवरहित विमान का निर्माण किया था वे मुंबई के निवासी थे तथा संस्कृत साहित्य एवं चित्र कला के अध्येता थे।

शिवकर बापूजी तलपदे जी का जन्म सन 1864 में मुंबई महाराष्ट्र में हुआ था। ‘जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट, मुंबई’ से अध्ययन समाप्त कर वे वहीं शिक्षक नियुक्त हुये। पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे का विवाह श्रीमती लक्ष्मीबाई से हुआ था। उनके दो पुत्र एवं एक पुत्री थे। जेष्ठ पुत्र मोरेश्वर मुंबई पौरपालिका के स्वास्थ विभाग में कार्यरत थे एवं कनिष्ठ पुत्र बैंक ऑफ़ बॉम्बे में लिपिक थे। पुत्री का नाम नवुबाई था।
उनके विद्यार्थी काल में गुरू श्री चिरंजीलाल वर्मा से वेद में वर्णित विद्याओं की जानकारी उन्हें मिली। उन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती कृत ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ एवं ‘ऋग्वेद एवं यजुर्वेद भाष्य’ एवं महर्षि भारद्वाज की 'विमान संहिता' का अध्ययन कर प्राचीन भारतीय विमानविद्या पर कार्य करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने संस्कृत सीखकर वैदिक विमानविद्या पर अनुसंधान आरम्भ किया।

भारत में हजारों साल पहले विमानों का उल्लेख मिलता है रामायण महाभारत के साथ-साथ कई अन्य वैदिक ग्रंथों में भी विमानों के बारे में उल्लेख है. बाकी लोगों के लिए यह बातें केवल एक कल्पना थी लेकिन शिवकर बापूजी ने इन्हें सच समझा और वे लग गए विमान बनाने में. विमान बनाने में सबसे बड़ी चुनौती जो थी वह थी कि जरूरी सामान कहां से लाया जाए. इस परेशानी के पीछे दो कारण थे पहला कारण था कि उनके पास पैसों की काफी कमी थी, सामान बहुत सारा लाना था. और दूसरा कारण था कि यह सब अंग्रेजों की नजर से बचाकर करना था. उन्होंने बांस की लकड़ियों का इस्तेमाल कर विमान बनाना शुरू किया. ईंधन के तौर पर इसमें तरल पारा इस्तेमाल किया गया पारा वजन में हल्का था इसलिए विमान को उड़ाने में परेशानी नहीं होती थी.. अपनी मेहनत और पैसा लगाने के बाद उन्होंने विमान को उसका रूप दे ही दिया. उन्होंने इस विमान का नाम मरूत्सखा रखा. विमान पूरी तरह बनकर तैयार हो चुका था और अब बारी थी उसे उड़ान भरने की, शिवकर तलपदे जी ने सन 1922 में एक प्रयोगशाला स्थापित किया और वेदमन्त्रों के आधार पर आधुनिक काल में पहला वैदिक विमान का मॉडल निर्माण किया। इसका परीक्षण सन् 1895 में मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर किया गया था। ऐसा पढनेको मिलता है।परन्तु उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार विमान उड़ाने के पहला प्रयास सन् 1914 से सन् 1917 ई. के मध्य में हुआ था। शिवकर बापूजी पूरा दिल लगा के हवाई जहाज बनाने में लग गए थे, उन्होंने हर किताब को पढ़ लिया. हर मुमकिन कोशिश कर ली विमान की कल्पना को हकीकत बनाने के लिए दिन रात एक कर उन्होंने सम्भव कर दिखाया था। 


ता. 17 सितम्बर 1917 को उनका स्वर्गवास हुआ एवं ‘मरुत्सखा’ विमान निर्माण का कार्य अधूरा रह गया। शिवकर बापूजी तलपदे (1919-1949) एक शोधकर्ता और संस्कृत ग्रंथों के गूढ़ पाठक थे।  उन्होंने पहले विमान को उड़ाने का प्रयास किया।  विमान का नाम मरुतसखा था। 

तलपड़े जी जो मुंबई में रहते हैं, उनको संस्कृत और वेदों के एक विशेषज्ञ पंडित सुबराय शास्त्री का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।  एयरोनॉटिक्स ने विद्वानों द्वारा लिखित, विमान को उड़ान भरने के लिए प्रेरित किया। बाल्यकाल से ही उन्हें संस्कृत ग्रंथों, विशेषतः महर्षि भरद्वाज रचित “वैमानिक शास्त्र” (Aeronauti cal Science) में अत्यन्त रुचि रही थी। वे संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। पश्चिम के एक प्रख्यात भारतविद् स्टीफन नैप (Stephen-K napp) श्री तलपदे के प्रयोगों को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं। एक अन्य विद्वान श्री रत्नाकर महाजन ने श्री तलपदे के प्रयोगों पर आधारित एक पुस्तिका भी लिखी हैं।

श्री तलपदे का संस्कृत अध्ययन अत्यन्त ही विस्तृत था और उनके विमान सम्बन्धित प्रयोगों के आधार निम्न ग्रंथ थेः

महर्षि भरद्वाज रचित् वृहत् वैमानिक शास्त्र

आचार्य नारायण मुन रचित विमानचन्द् रिका

महर्षि शौनिक रचित विमान यन्त्र

महर्षि गर्ग मुनि रचित यन्त्र कल्प

आचार्य वाचस्पति रचित विमान बिन्दु

महर्षि ढुण्डिराज रचित विमान ज्ञानार्क प्रकाशिका

इस महान ऐतिहासिक क्षण के गवाह थे महादेव गोविंद रानडे और तीसरे सयाजीराव गायकवाड़।  पुणे का केसरी अखबार भी इस बात का उल्लेख करता है। बड़ोदा के महाराज श्री गायकवाड़, जो कि श्री तलपदे के प्रयोगों के लिए आर्थिक सहायता किया करते थे। 

विमान के प्रयोग के बाद उन्होंने विमान को तलपड़े के घर पर रखा गया था। इसके विपरीत, अमेरिकी सेना ने राइट भाइयों को 5 डॉलर देकर उनके प्रयोग में मदद की। बताया जाता है कि श्री तलपदे के स्वर्गवास हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने कर्ज से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से “मारुतशक्ति” के अवशेष को उसकी तकनीक सहित किसी विदेशी संस्थान को बेच दिया था।

पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे जी द्वारा निम्न पाँच पुस्तकें लिखी है। 

1.प्राचीन विमान कला का शोध

2.ऋग्वेद-प्रथम सूक्त व उसका अर्थ

3.पातंजलि योगदर्शनान्तर्गत शब्दों का भूतार्थ दर्शन

4.मन और उसका बल

5.गुरुमंत्र महिमा

साथ ही उन्होंने अनेक सामयिक और पुस्तकों का संपादन कार्य भी किया है। 

1.वैदिक धर्मस्वरुप ‘ऋग्वेदादिकभाष्यभूमिका’ का मराठी अनुवाद, 1904
2.राष्ट्रीय उन्नतीचीं तत्वें
3.ब्रह्मचर्य, १९०५
4.राष्ट्रीसूक्त व त्याचा अर्थ
5.वैदिक विवाह व त्याचा उद्देश
6.सत्यार्थप्रकाश पूर्वार्ध, १९०७
7.गृहस्थाश्रम, १९०८
8.योगतत्त्वादर्श

उनके द्वारा अन्य कार्य और उनको पुरस्कार मिले हैं। 

1.संपादक, ‘आर्यधर्म’
2.मंत्री, वेद विद्या प्रचारिणी पाठशाला
3.प्रकाशक, शामराव कृष्णअणि मंडली
4.सदस्य, वेदधर्म प्रचारिणी सभा
5.सदस्य, आर्य समाज। काकड़वाडी, मुंबई
6.कोल्हापूर शंकराचार्य से ‘विद्याप्रकाशप्रदीप’ उपाधि से समान्नित

तलपड़े जी के काम के आधार पर, फिल्म प्रसारित की गई थी।  फिल्म में तलपदे जी के चरित्र को बहुत ही गलत तरीके से दर्शाया गया है। इसपर बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी।  शिवकर बापूजी तलपड़े द्वारा लिखित प्राचीन विमानन की पुस्तक भी वर्तमान में दुर्लभ है।

यहाँ पर यह बताना अनुचित नहीं होगा कि राइट बंधु ने जब पहली बार अपने हवाई जहाज को उड़ाया था तो वह आकाश में मात्र 120 फुट ऊँचाई तक ही जा पाया था जबकि श्री तलपदे जी का विमान 1500 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा था। सबसे ज्यादा दुःख की बात तो यह है कि इस घटना के विषय में विश्व की समस्त प्रमुख वैज्ञानिको और वैज्ञानिक संस्थाओं और संगठनों को  पूर्ण जानकारी होने के बावजूद भी आधुनिक हवाई जहाज के प्रथम निर्माण का श्रेय राईट बंधुओं को दिया जा रहा है और जारी भी है, और हमारे देश की सरकार ने कभी भी इस विषय में आवश्यक संशोधन करवाने के लिए कहीं आवाज नहीं उठाई न तो विश्वकर्मा समाज ने आवाज उठाई हे। 

हमारे प्राचीन ग्रंथ का ज्ञान अथाह सागर हैं किन्तु वे ग्रंथ अब लुप्तप्राय -से हो गए हैं। यदि कुछ ग्रंथ कहीं उपलब्ध भी हैं तो उनका किसी प्रकार का उपयोग ही नहीं रह गया है क्योंकि हमारी दूषित शिक्षानीति हमें अपने स्वयं की भाषा एवं संस्कृति को हेय तथा पाश्चात्य भाषा एवं संस्कृति को श्रेष्ठ समझना ही सिखाती है।यह हमारे विश्वकर्मा समाज और उनसे जुड़ी कला का अत्यंत महत्वपूर्ण आईना दिखा रहे हैं जो हम विश्वकर्मा वंशी शायद यह कला वैभव से दूर होते जा रहे हैं। 

हमको अपने पूर्वजों और महान विश्वकर्मा वंशी शिल्पकला विशेषज्ञ पूज्य तळपदे जी पर गर्व है। स्वामी दयानन्द जी ने अपने वेदभाष्य में शिल्पियों के लिए बहुत सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग किया है । 

यह लेख संकलन मे नीचे दिए गए पुस्तकों और ग्रंथ का सन्दर्भ के रूप में मदद लिया गया है।

प्राचीन विमान विद्या (पूर्वार्ध)

अर्वाचीन भारतीय वैज्ञानिक, भाग 2,

विमान के आविष्कारक - पंडित शिवकर बापूजी तलपड़े जी, 

विज्ञान-कथा, दूसरा भाग, 

संकलनकर्ता - मयुरकुमार मिस्त्री

श्री विश्वकर्मा साहित्य धर्म प्रचार समिति 

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