भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित शिवलिंग को कार्तिकेय द्वारा स्थापित

भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित शिवलिंग को कार्तिकेय द्वारा स्थापित 
कार्तिकेय जी भगवान शिव और भगवती पार्वती के पुत्र हैं । ऋषि जरत्कारू और राजा नहुष के बहनोई हैं और जरत्कारू और इनकी छोटी बहन मनसा देवी के पुत्र महर्षि आस्तिक के मामा ।
भगवान कार्तिकेय छ: बालकों के रूप में जन्मे थे तथा इनकी देखभाल कृतिका (सप्त ऋषि की पत्निया) ने की थी, इसीलिए उन्हें कार्तिकेय धातृ भी कहते हैं।

सूतजी बोले, हे ऋषियो! इस प्रकार तीनों लिंगों की स्थापना करने के बाद देवताओं की विजय स्तंभ रोपने की इच्छा को मान देकर कार्तिक ने अपनी विजय की यादगार के लिए विजय स्तंभ बनाने की बजाय उसके लिए भी एक शिवलिंग की स्थपना की और उसका नाम स्तंभेश्व रखा। इसके बाद शिवलिंग की प्रतिष्ठा का विष्णु ने तथा प्रभु श्रीविश्वकर्मा ने वर्णन करके देवताओं को भी शिवलिंग की प्रतिष्ठा करने की इच्छा प्रकट की ।
इससे उन सबके बदले में कार्तिक स्वामी ने सिद्धेश्वर के नाम से पांचवां लिंग बनाया। जो सब देवता अलग-अलग लिंग बनाएंगे, तो अधिक लिंगों की पूजा कौन करेगा और  इस प्रकार से प्रतिष्ठा किए हुए लिंग जो पूजन बिना रहे, तो उनका प्रायश्चित बनाने वाले को लगे इसलिए सबसे अलग-अलग लिंग न बनाकर सबने एक साथ मिलकर एक ही लिंग बनाया था।
हे ऋषियों! इस उत्तम तीर्थ की उत्पत्ति हुई, फिर कार्तिक की विजय के बाद उत्पन्न हुए तीर्थ में सब देवता निवास करते हैं। सब तीर्थ का महात्म्य ज्यादा उत्तम है। सौनकजी बोले, हे सूतजी! कार्तिक जीते और उनकी याद के लिए उत्तम तीर्थ बनाया, तो आपसे जान लिया परंतु आपने जो कहा कि यहां सब देवता निवास करते हैं तथा सब तीर्थ यहां आकर रहते हैं। वे किस प्रकार बनाए थे, आप हमसे विस्तारपूर्वक कहो। तुमने यह अति उत्तम प्रश्न किया है, तो मैं तुमको सुनाता हूं। वह आप ध्यान से सुनो। विराट विश्वकर्मा के अंश द्वारा उत्पन्न हुए ब्रह्मदेव के पुत्र नारदजी  एक समय अपने पिता ब्रह्माजी की सभा में गए। उस सभा में दान की महिमा की चर्चा हो रही थी। उस सभा में तय करने को आया कि दान का अत्यंत महत्त्व होता है तथा दान में दी हुई वस्तु जब तक चले तब तक दान देने वाले को उसका फल मिलता है। फिर भी सब दानों में भूमि दान ऐसा है कि जो कई पीढि़यों तक कायम रहता है इसलिए भूमि का दान देने वाले को तथा उसके वंशजों को फल मिलता ही रहता है।
भूमिदान की ऐसी महिमा सुनकर नारदजी को भी भूमिदान करने की इच्छा उत्न्न हुई परंतु स्वयं अकिंचन होने के कारण भूमिदान के लिए भूमि कहां से आए तथा इस विचार में पड़ गए नारदजी ने भूमिदान के लिए महीसागर संगम किनारे के ऊपर की भूमि पसंद आई।
इस समय ये भूमि सौराष्ट्र के राजा के अधिकार में होने से नारदजी ने इस राजा को अपने ज्ञान से प्रसन्न करके उसके द्वारा यह श्रेष्ठ भूमि, गाय, स्वर्ण वगैरह अत्यंत द्रव्य प्राप्त किया। इसके बाद इस श्रेष्ठ भूमि का दान करने के लिए वह उत्तम ब्राह्मण की खोज करने के लिए निकले। क्योंकि कुपात्र को दान देने से मनुष्य को पुण्य प्राप्त नहीं होता परंतु उसको ऐसे दान से प्रायश्चित लगता है।

उत्तरप्रदेश के इगलास का गाव पाताल खेड़िया सावन में आस्था का केंद्र बना रहता है। बताया जाता है कि यहां द्वापर में भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय ने शिवलिंग की स्थापना की थी, जिसकी ख्याति कुमारेश्वर शिवलिंग के नाम से दूरदराज क्षेत्रों तक फैली हुई है। कार्तिकेय ने एक राक्षस का वध करने के बाद प्रायश्चित के लिए इस शिवलिंग की स्थापना की थी। कुमारेश्वर मंदिर जाने के लिए आपको अलीगढ़-मथुरा मार्ग स्थित इगलास के गांव पाताल खेड़िया पहुंचना होगा। यहीं पर कुमारेश्वर मंदिर दिखाई पड़ जाएगा। हालांकि, रास्ते में दो शिवलिंग और दिखाई देंगे।
*इतिहास*
मंदिर संचालक परमानंद गिरी बताते हैं कि द्वापर में कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध किया था। ताड़कासुर शिवभक्त था। जब इसका पता कार्तिकेय को चला तो उन्होंने प्रायश्चित की ठानी। कार्तिकेय ने विश्वकर्मा से तीन शिवलिंग कुमारेश्वर, प्रतिज्ञेश्वर व कपिलेश्वर को स्थापित कराया। ये तीनों कुछ ही दूरी पर हैं। प्रत्येक शिवलिंग की ऊंचाई 4-5 फुट है। ऐसा बताया जाता है कि इनका वर्णन शिवपुराण, स्कंदपुराण, भागवत पुराण व विश्वकर्मा पुराण में भी है।
*भै माता का मंदिर*
कुमारेश्वर मंदिर में कार्तिकेय ने भै माता की प्रतिमा की भी स्थापना की थी। बताया जाता है कि संपूर्ण भारत में भै माता का यह एकमात्र मंदिर है। इसमें नंदी, पार्वती, गणेश, हनुमानजी, शनिदेव, बाबा जाहरवीर, मां दुर्गा, मां काली की भी प्रतिमाएं है। मंदिर में तीन सींग वाली गाय भी है। पुजारी बताते हैं कि शुरू से ही गाय के तीन सींग हैं।
पार्वती सरोवर
मंदिर के पास ही पार्वती सरोवर है। मंदिर पर सालभर धार्मिक कार्यक्रमों की धूम रहती है। वैसे तो यहा प्रत्येक सोमवार को भक्तों का जमावड़ा रहता है। महाशिवरात्रि पर मंदिर मे धार्मिक अनुष्ठान के साथ यहां मेला भी लगता है।
मयुरकुमार मिस्त्री
श्री विश्वकर्मा साहित्य धर्म प्रचार समिति 

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