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Showing posts from April, 2023

प्राचीन भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

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प्राचीन भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये प्राचीन साहित्य और पुरातत्व का सहारा लेना पड़ता है। प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधता सम्पन्न है। इसमें धर्म, दर्शन, भाषा, शिक्षा आदि केअतिरिक्त गणित, ज्योतिष, सैन्यविज्ञान, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, आदि भी वर्ण्यविषय रहे हैं। समस्त ज्ञान-विज्ञान का मूल स्तोत्र वेद हैं। वेद परमात्मा द्वारा दिया वो ज्ञान है जो मानव की सामर्थ्य व दृष्टि से परिपूर्ण है। प्राचीन ऋषियों ने अपने योगबल प्रज्ञा से वेद के गम्भीर अर्थों को समझ कर वैज्ञानिक प्रतिभा विकसित जी जिसके आधार पर विभिन्न तकनीके व यंत्रों का निर्माण प्राणी मात्र के हित की दृष्टि से हुआ।  मध्यकाल में भारत पर आक्रांताओं द्वारा आक्रमण हुए। गुरूकुलों व विश्वविद्यालय जला दिए गए। संस्कृति के केंद्र मंदिर व भवन नष्ट कर दिए गए। हजारों प्राचीन पुस्तकें जिनमें आध्यात्म विज्ञान व पदार्थ विज्ञान था उनको भी नष्ट कर दिया गया। किन्तु वर्तमान में आज भी हमें  350 से अधिक विज्ञान व प्रौद्योगिकी के ग्रन्थ मिलते हैं। जो भी लोग यह कहते कि भार

बांग्लादेश म्युजियम में विश्वकर्मा जी की मूर्ति

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बांग्लादेश म्युजियम में विश्वकर्मा जी की मूर्ति बहुत ही वैभव तरीके से और प्रभावशाली स्वरुप में दिखने वाली मूर्ति मे कौन है? वह और उसकी दो महिला साथी कमल पर खड़ी हैं, यह एक संकेत है कि वे दिव्य रूप हैं। संग्रहालय का भी सवाल है कि क्या यह ब्रह्मांड के वास्तुकार विश्वकर्मा की मूर्ति है? पूर्ण इतिहास में जानकारी यही है कि कलाकारों ने अपनी रचनात्मकता दिखाने के लिए नियमों को तोड़ने का प्रयास किया है और नहीं भी किया है , लेकिन उन्हें जीविकोपार्जन के लिए अपने कर्म करना ही है। स्थापत्य कला इतिहासकारों द्वारा कला के कई कार्यों की पहचान पर उम्दा बहस की जाती है। आपको बहुत सारा संशोधन का काम करना है, बहुत सारे शोध करना है, और फिर भी, आप कभी भी अपने निष्कर्ष के बारे में पूरी तरह से निश्चित नहीं हो सकते। क्यूंकि यह विषय ही सृष्टि से लेकर मानव सभ्यता से जुड़ा हुआ है।  इस समकालीन मूर्ति की पहचान विश्वकर्मा और ब्रह्मा दोनों के रूप में की गई है। लेकिन सिंहासन के पीछे कारीगरों के औजारों का जोड़ स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि कलाकार ने विश्वकर्मा की छवि (मूर्ति) बनाई होना चाहिए । जिसे ब्रह्मा क

विश्वकर्मा : 100 शिल्प ग्रंथ प्रदाता

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विश्वकर्मा : 100 शिल्प ग्रंथ प्रदाता कलाएं कितनी हो सकती हैं?  सब लोकोपयोगी हों। लोक उपयोगी सृजन से बड़ा कोई सृजन नहीं। सृजन श्रम, संघर्ष, समय को बचाने वाला और परिश्रम को सार्थक कर आजीविका देने वाला हो। भारत विश्वकर्मीय ज्ञान के 100 से ज्यादा ग्रंथों से समृद्ध रहा है। ये गोपनीय अधिकांश ग्रंथ गत डेढ़ दशक में ही सानुवाद प्रकाश में आए हैं... क्या आप जानते हैं  आज विश्वकर्मा जयंती की  हार्दिक शुभकामनाएं... विश्‍वकर्मा और उनके शास्‍त्र (संदर्भ : विश्‍वकर्मा ग्रंथों का बढ़ता प्रयोग) यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है कि कल तक जो शिल्प और स्थापत्य के ग्रंथ केवल शिल्पियों के व्यवहार तक सीमित और केन्द्रित थे, उन पर आज अनेक संस्थानों से लेकर कई विश्व विद्यालयों तक ज्ञान सत्र आयोजित होने लगे हैं, सेमिनार, राष्ट्रीय, अंतर राष्ट्रीय गोष्ठियां होने लगी हैं। अनेक विद्वानों की भागीदारी होने लगी है। शिल्प के ये विषय पाठ्यक्रम के विषय होकर रोजगार और व्यवहार के विषय हुए हैं।  शिल्‍प और स्‍थापत्‍य के प्रवर्तक के रूप में भगवान् विश्‍वकर्मा का संदर्भ बहुत पुराने समय से भारतीय उपमहाद्वीप में ज्ञेय

देवताओं के पुरोहित विश्वकर्मा पुत्र आचार्य विश्वरूप

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देवताओं के पुरोहित विश्वकर्मा पुत्र आचार्य विश्वरूप भृगुकुल उत्पन्न त्वष्टा विश्वकर्मा के पुत्र देवताओं के पुरोहित विश्वरूप के प्रकट दिवस (वैशाख मास शुक्ल पक्ष द्वितीया) पर सभी सनातनियों को शुभकामनाएँ।  मित्रों एवं महानुभावों, भृगुकुल उत्पन्न त्वष्टा विश्वकर्मा के पुत्र देवताओं के पुरोहित विश्वरूप जी थे जिनका एक नाम त्रिशिरा विश्वरूप भी था। वह तीन सिरों वाले थे जिस कारण उनका नाम त्रिशिरा भी पड़ा। एक समय देवताओं के गुरु बृहस्पति जी देवताओं से रुष्ट होकर आचार्य पुरोहित का पद त्यागकर जब स्वर्गलोक से चले गये थे तब सब देवताओं ने परम तेजस्वी परम तपस्वी विद्वान भृगुकुल में उत्पन्न त्वष्टा विश्वकर्मा के पुत्र विश्वरूप जी को पुरोहित आचार्य बनाया। एक समय विश्वरूप एवं देवताओं के राजा इंद्र से विवाद होने पर देवराज इंद्र ने छल से विश्वरूप जी की हत्या कर दी जिस कारण देवराज इंद्र को ब्रह्महत्या लगी और इंद्र ने उसका प्रायश्चित भी किया। निम्न सभी प्रमाणों से हम यह सिद्ध करेंगे कि भृगुकुल उत्पन्न त्वष्टा विश्वकर्मा के पुत्र विश्वरूप जी देवताओं के आचार्य पुरोहित थे।   काश्यपस्य ततो जज्ञे दित्

भृगु वंशी भगवान परशुराम

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भृगु वंशी भगवान परशुराम  अंगिरा ऋषि (विश्वकर्मा) के सगे छोटे भाई भृगु ऋषि (विश्वकर्मा) से भृगुनंदन (ऋचीक), भृगुनंदन (ऋचीक) महाराज से जमदग्नि ऋषि जमदग्नि ऋषि की पत्नि रेणुका से जन्में भगवान परशुराम।  'परशु' प्रतीक है पराक्रम का। 'राम' पर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। शास्त्रोक्त मान्यता तो यह है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, अतः उनमें आपादमस्तक विष्णु ही प्रतिबिंबित हो हैं, परंतु मेरी मौलिक और विनम्र व्याख्या यह है कि 'परशु' में भगवान शिव समाहित हैं और 'राम' में भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का है। इसलिए मेरे मत में परशुराम दरअसल 'शिवहरि हैं। पिता जमदग्नि और माता रेणुका ने तो अपने पाँचवें पुत्र का नाम 'राम' ही रखा था, लेकिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्ना करके उनके दिव्य अस्त्र 'परशु' (फरसा या कुठार) प्राप्त करने के कारण वे राम से परशुराम हो गए । 'परशु' प्राप्त किया गया शि

विश्वकर्मा समाज गौरव वैज्ञानिक पी एल मिस्त्री

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विश्वकर्मा समाज गौरव वैज्ञानिक पी एल मिस्त्री  शाख से टूट जाये वो पत्ते नहीं हैं हम, आंधियों से कह दो अपनी औकात मे रहें!! नज्म की ये पक्तियां उन शख्सियतों को समर्पित करती हैं, जिन्होंने अपने दम पर दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। पी0एल0 मिस्त्री भी उनमें से ही एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने पचास वर्ष पूर्व ही विज्ञान और तकनीकी के आयामों में अपनी छवि प्रतिष्ठित कर दी थी। एक अद्भुत, अविस्मरणीय और विलक्षण वैज्ञानिक जिन्होंने विश्वकर्मा और सुथार समाज को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व को गौरवान्वित किया। एक प्रभावशाली व्यक्तित्व जिन्होंने विज्ञान और मैकेनिज्म के सिद्धान्तों को वर्षों पहले मूर्त रूप देकर अपना लोहा मनवाया। हम बात कर रहे हैं- विश्वकर्मा गौरव स्व0 पूनमचन्द लाखाजी मिस्त्रीजी (पी0एल0 मिस्त्रीजी) की, जो राजस्थान के पाली जिले के छोटे से कस्बे तखतगढ़ में 1914 में साधारण सुथार परिवार में अपनी आंखे खोली। उनके पिता साधारण सुथारी कार्य करते थे और प्रतिकूल परिस्थितियों में संघर्ष करते हुये केवल अपने पुत्र को पांचवी तक भी शिक्षा नहीं दिला सके। लेकिन पिता ने अपने बेटे की मंशा भांप क

ज्ञानदेवी धिमान

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ज्ञानदेवी धिमान  विश्वकर्मा बढई समाज के गौरव और पहचान ज्ञान देवी धीमान, बुलंद होसले, दृढ़ संकल्प। उनका नाम शामली के स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूतों में शामिल है। उन्होंने लाठियां खाईं, सड़क पर घसीटा गया, यहां तक कि उनका गर्भपात भी हो गया, लेकिन उनके मुंह से वंदेमातरम् का ही नारा गूंजता रहा। उनके पति प्यारेलाल धीमान भी उनके साथ बराबर के शरीक रहे। वर्ष 1902 में जन्मी ज्ञान देवी बेहद उत्साही स्वतंत्रता सेनानी थीं। वर्ष 1930 में हुए नमक सत्याग्रह में उन्हें पांच माह की कड़ी कारावास हुई। वर्ष 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें तीन माह की कैद तथा 30 रुपये जुर्माना लगाया गया। इसके अलावा 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने पर 21 माह की कैद की सजा सुनाई गई। वह आजादी के आंदोलन के साथियों के साथ मिलकर शामली कोतवाली में तिरंगा फहराने पहुंच गईं थी। वहां तैनात दरोगा असलम ने विरोध किया तथा ज्ञान देवी और उनके साथ गए लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया। अन्य सेनानियों के साथ ज्ञानदेवी को सड़क पर गिराकर लात-घूसों से पीटा और घसीटा गया। इस घटना में ज्ञान देवी का गर्भपात भी हो गया। इसके बाव

एक शोध

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एक शोध  यदि हमारे पूर्वजों को हवाई जहाज बनाना नहीं आता, तो हमारे पास "विमान" शब्द भी नहीं होता।  यदि हमारे पूर्वजों को Electricity की जानकारी नहीं थी, तो हमारे पास "विद्युत" शब्द भी नहीं होता।  यदि "Telephone" जैसी तकनीक प्राचीन भारत में नहीं थी तो, "दूरसंचार" शब्द हमारे पास क्यों है।  Atom और electron की जानकारी नहीं थी तो अणु और परमाणू शब्द कहाँ से आये?  Surgery का ज्ञान नहीं था तो, "शल्य चिकितसा" शब्द कहाँ ये आया? विमान,  विद्युत, दूरसंचार, ये शब्द स्पष्ट प्रमाण है, कि ये तकनीक भी हमारे पास थी।  फिसिक्स के सारे शब्द आपको हिन्दी में मिल जायेंगे।  बिना परिभाषा के कोई शब्द अस्तित्व में रह नहीं सकता।  सौरमण्डल में नौ ग्रह है व सभी सूर्य की परिक्रमा लगा रहे है, व बह्ममाण्ड अनन्त है, ये हमारे पूर्वजों को बहुत पहले से पता था। रामचरित्र मानस में काक भुशुंडि - गरुड संवाद पढ़िये, बह्ममाण्ड का ऐसा वर्णन है, जो आज के विज्ञान को भी नहीं पता। अंग्रेज़ जब 17-18 सदी में भारत आये तभी उन्होंने विज्ञान सीखा,  17 सदी के पहले का आपको कोई साइं

श्री विश्वकर्मा स्तोत्र

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#विश्वकर्मा_साहित्य_भारत श्री विश्वकर्मा स्तोत्र                    पद्म पुराणे भू खंडे स्कंद- विश्वकर्मा महात्म्ये अध्याय २५ श्लोक ७-१७ श्री विश्वकर्मा स्तोत्र कृष्ण रुद्रावूचतु:।    ॐ वशंतंतुमयं शिक्यं शिक्ये ब्रह्माण्डमद्भुतम्।  निहितं उभयं येन विश्वकर्मा स पातु न: ।।७।।  अर्थात -  सब जगत के उत्पन्न कर्ता श्री विश्वकर्मा इन्होंने सूत्रमय रचे हुए पृथ्वी रूपी छीके में सूक्ष्म देहरूप पिण्डाण्ड व ब्रह्माण्ड इन दोनों को एक जगह गूथ कर उन सब सूक्ष्म तत्वात्मक चराचरो को स्थूलत्व दिये हैं। ॐ दिवि भुव्युदरे काष्ठपाषाणादौ च यो विभु।  चतुर्धा व्यभजज्योतिश्चतुर्विध फलाप्तये।।८।।  अर्थात - श्री मद्विश्वकर्मा परमात्मा ने चतुर्विध अर्थात चार तरह की फल प्राप्ति के लिए यज्ञ निर्माण करने के वास्ते तेज स्तत्व के चार भाग किए हैं। वह चारों भाग उन्होंने आकाश, भूमि, उदर और काष्ठ पाषाणादि ऐसे चार जगह में रक्खे हैं। ॐ वातरज्जू धृतं दिव्यं ज्योति कालस्य कारणम्  बिभ्रमीत्यनिशं येन प्रवर्तंते क्रतु क्रिया॥ ९॥  अर्थात् - आकाश में रखे हुए तेज को वायु रूप रज्जू में गूंथ कर उससे हमेशा फिरने वाला और जिसस

श्री कृष्ण द्वारा भगवान विश्वकर्मा जी की स्तुति

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विश्वकर्मा_साहित्य_भारत श्री कृष्ण द्वारा भगवान विश्वकर्मा जी की स्तुति  कालयवन से बचने एवं यादवो को बचाने के लिऐ इस स्तुति से श्रीकृष्ण भगवान ने विश्वकर्मा भगवान का आवाह्न किया था, इस स्तुति का नित्य पठन करने से आपके ऊपर आने वाले संकट टल जाते है। ॥कृष्ण उवाच॥ वशंतन्तुमय शिकयं, शिकये बह्मांडम् द्रतम। निहितं चोमेयं येन, विश्वकर्मा स पातु नः॥ यः कालं दक्षिणां चैव, यजमानं हवीषि च। धार चन्यः पर शिवो, विश्वकर्मा स पातु नः॥ नमत्यनेक करसतां, मधुरैकर संजलम। यस्त तद्बबीज योगे न, महाशिल्पी स पातुन॥ भौमान्यनेकरुपाणी यस्य, शिल्पानि मानवाः। उपजिवन्ति तं विश्वं, विश्वकर्मा स पातु नः॥ दिशा कालौ सूर्य चंद्राभ्यां, गोविप्राभ्यां हविमंनून। निर्माय निर्मये यज्ञं, तस्मै यज्ञात्मने नमः॥ दिवि भुव्य अंतरिक्षे च, पाताले वापि सवॅसः। यत् किचिंत् शिल्पीनां, शिलपं तत् प्रवॅतक ने नमः॥ दिवि भुव्यूदरे काष्ट, पाषाणादि च यौ विभु। चतुधाॅ व्यभजयोति च चतुॅविध, फलात्ये येन विश्वकर्मा पातुनः॥ भगवान विश्वकर्मा जी की यह स्तुति से हमे तत्काल फल मिलता है, यह प्रार्थना से ही प्रसन्न होकर भगवान विश्वकर्मा जी ने सुवर्

वैदिक यज्ञ वेदी और शिल्प विद्या

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वैदिक यज्ञ वेदी और शिल्प विद्या विश्वकर्मिय शिल्प कला एक बहुत ही बड़ा विषय है। स्थापत्य निर्माण क्रिया तकनीक विज्ञान और मन्त्रों से आभूषित है शिल्प विद्या। शिल्प विद्या को स्थाप्त्य विद्या भी कहते हैं। इसका प्रयोग विज्ञान, तकनीक और नित्य् काम आने वाले साधनों में होता है। शिल्प विद्या के द्वारा ही सुन्दर किले, मुर्तियाँ, सेतु, वाद्य यंत्र, आभूषण और अध्ययन सामग्री, नित्य कार्य के साधन, खिलौने, यातायात और संचार के साधन निर्मित होते है। इस प्रकार हम देखते है कि शिल्प विद्या हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है। इस विज्ञान के बारे में वेदों और वैदिक वाङ्मय में विस्तार से अनेकों निर्देश और उपदेश सङ्कलित है। इस शिल्प विद्या का मूल वेद ही है, वेदों में अनेकों मन्त्रों द्वारा शिल्प विद्या का उपदेश किया है। शिल्प वैश्वदेव्यो रोहिण्यत्र्यवयो वाचेsविज्ञाताsअदित्यै सरूपा धात्रे वत्सतर्यो देवानां पत्नीभ्य  (यजु. 24.5)  इसके भावार्थ में स्वामी दयानन्द जी ने लिखा है कि वे विद्वान शिल्प विद्या से अनेकों यानादि बनाएं । वेदों से पृथक् व्याकरण, ज्योतिष, कल्प और ब्राह्मण ग्रन्थों में भी शिल्प और श

यज्ञोपवीतं

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विश्वकर्मा ब्राह्मण सबसे ऊंच ब्राह्मण है ब्रह्मांड पुराण स्कंद पुराण विश्वकर्मा पुराण तथा वेदो आदि आदि पुराणों में वर्णित इतिहासिक ज्ञान के अनुसार विश्वकर्मा ब्राह्मण उच्च ब्राह्मण हैं । जनेऊ अधिकार मे सबसे उच्च ब्राह्मण विश्वकर्मा ब्राह्मण हैं जो वेदों में भी वर्णित है तथा अन्य सारे प्रमुख पुराणों में भी वर्णित है।  नये जीवन की ओर पहला कदम त्याग, पवित्रता, तेजस्विता एवं परमार्थ के प्रतीक व्रतबन्ध स्वरूप यज्ञोपवीत का नवीनीकरण किया जाता है। यज्ञोपवीत का सिंचन करके पाँच देव शक्तियों के आवाहन स्थापन के उपरान्त उसे धारण कर लिया जाता है, पुराना उतार दिया जाता है। यह क्रम यज्ञोपवीत संस्कार प्रकरण में भी दिया गया है। यज्ञोपवीत सिंचन मन्त्र बोलते हुए यज्ञोपवीत पर जल छिड़कें, पवित्र करें, नमस्कार करें- ॐ प्रजापतेयर्त्सहजं पवित्रं, कापार्ससूत्रोद्भवब्रह्मसूत्रम्॥ ब्रह्मत्वसिद्ध्यै च यशः प्रकाशं, जपस्य सिद्धिं कुरु ब्रह्मसूत्र॥ पंचदेवावाहन निम्नस्थ मन्त्रों के साथ यज्ञोपवीत में विभिन्न देवताओं का आवाहन करें- (१) ब्रह्मा- ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्, विसीमतः सुरुचो वेन आवः। स बुध

વિશ્વકર્મિય શિલ્પશાસ્ત્રના ગ્રંથોની ઓળખ

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વિશ્વકર્મિય શિલ્પશાસ્ત્રના ગ્રંથોની ઓળખ ભારતીય વિશ્વકર્મા શિલ્પકારોએ ભારતીય જીવન દર્શન અને સંસ્કૃતિ ને પોતાનું જીવન લક્ષ્ય માનીને રાષ્ટ્રના પવિત્ર સ્થાનો પસંદ કરીને ત્યાં પોતાનું જીવન વિતાવી ને ત્યાં વિશ્વ ની શિલ્પકલા ના ઈતિહાસમાં અદ્વિતીય વિશાળ ભવનોના નિર્માણ કર્યા છે. જે જોતા જ સૌ કોઈ આશ્ચર્ય મુગ્ધ બને છે.  આપણાં વિશ્વકર્મિય શિલ્પીઓએ પહાડો માથી દિધૅકાય શિલાઓ ખોદી કાઢી ને ભૂખ અને તરસની પણ પરવા કર્યા વિના પોતાના ધર્મની મહત્તમ ભાવના રાષ્ટ્ર અને સમાજ ના ચરણોમાં ધરી છે. લોકહિત અને ધર્મ સંસ્કૃતિ ના પ્રતિક નું પ્રસ્થાપન કર્યું છે. સમાજ અને દેશ પણ તેઓના આ કાર્ય બદલ શંખનાદ વડે પોતાના શિલ્પકાર ની ચતુર્દિશ ફેલાવી છે. ભારતના આવા શિલ્પીઓની અજબ સ્થાપત્ય કળાના કારણે ભારત ને અજર અમર પદે સ્થાપેલ છે. આવા પુણ્યવાન શિલ્પીઓને કોટિ કોટિ ધન્યવાદ ઘટે છે.  વિશ્વકર્મિય શિલ્પશાસ્ત્રની ભારતમાં બે પરંપરા છે, ઉત્તરી અથવા નાગરી અને દક્ષિણી અથવા દ્રવિડ. નાગરી શૈલીના વાસ્તુગ્રંથોના મુખ્ય પ્રણેતા વિશ્વકર્મા મનાય છે. નાગરી શૈલીના ગ્રંથોમાં ‘વિશ્વકર્મા-વાસ્તુશાસ્ત્ર’ (‘વિશ્વકર્મ-પ્રકાશ’), ભોજદેવનું ‘સમરાંગણ

ब्रह्मांड और सृष्टि के तत्व

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अभ्द्र्यः सम्भूतः पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मणः समवतॅताधि (ऋग्वेद) Do all the planets in this universe have similar physical eliments found on the earth? क्या इस ब्रह्माण्ड के सभी ग्रहों में समान भौतिक तत्व पृथ्वी पर पाए जाते हैं? Rugveda - A prime vedic literature mentions about composition of universe and planets as follow ऋग्वेद - एक प्रमुख वैदिक साहित्य में ब्रह्मांड और ग्रहों की रचना के बारे में उल्लेख है This gives an idea whether natural compositions / compounds of earth elements found on the earth are found in all the planets in this universe इससे अंदाजा होता है कि पृथ्वी पर पाए जाने वाले पृथ्वी तत्वों के प्राकृतिक संघटन/यौगिक इस ब्रह्मांड के सभी ग्रहों में पाए जाते हैं या नहीं The work of creation of universe is done by equally expanding (in all directions) water balance of elements creation and compounds of such earthly elements ऐसे पार्थिव तत्त्वों के जल सन्तुलन का समान रूप से विस्तार (सभी दिशाओं में) करके सृष्टि की रचना का कार्य और यौगिकों का निर्माण होता है। प्रच

Personal Bio

*Personal Bio :* *Name :* Mayur Mistry *Resi. Address :* 39 Mazumpark Shamlaji Road Modasa 383315 Dist Aravalli Gujarat State *Contacts :* 09427850097 08849313233  *Email :* mayurmanavpvc@gmail.com  *Instagram :* @mayur_mistry_official  https://www.instagram.com/invites/contact/?i=1eum482u6mov0&utm_content=1w6340t *Pratilipi :* Mayur Mistry "Manpasand"  https://gujarati.pratilipi.com/user/28y719jn9j?utm_source=android&utm_campaign=myprofile_share *Twitter :* https://twitter.com/Mayur_Mistry_82?s=09 *Facebook Profile  :* Mayur Mistry  https://www.facebook.com/mayur.mistry.3154 *Facebook Page :* Mayur Vishwakarma  https://www.facebook.com/Mayur-Vishwakarma-462994747234448/ *Facebook Page :* Mayur Mistry Gujarat  https://www.facebook.com/profile.php?id=100063893222740  *Business Bio :* Owner Of Furniture Shop  Maanav PVC Furnitures  Modasa - Gujarat  *Facebook Profile:* Maanav Pvc Modasa  https://www.facebook.com/saurashtraluharsuthar.sabarkantha *Facebook Page :* Maanav