ज्ञानदेवी धिमान

ज्ञानदेवी धिमान 
विश्वकर्मा बढई समाज के गौरव और पहचान ज्ञान देवी धीमान, बुलंद होसले, दृढ़ संकल्प। उनका नाम शामली के स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूतों में शामिल है। उन्होंने लाठियां खाईं, सड़क पर घसीटा गया, यहां तक कि उनका गर्भपात भी हो गया, लेकिन उनके मुंह से वंदेमातरम् का ही नारा गूंजता रहा। उनके पति प्यारेलाल धीमान भी उनके साथ बराबर के शरीक रहे। वर्ष 1902 में जन्मी ज्ञान देवी बेहद उत्साही स्वतंत्रता सेनानी थीं। वर्ष 1930 में हुए नमक सत्याग्रह में उन्हें पांच माह की कड़ी कारावास हुई। वर्ष 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें तीन माह की कैद तथा 30 रुपये जुर्माना लगाया गया। इसके अलावा 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने पर 21 माह की कैद की सजा सुनाई गई। वह आजादी के आंदोलन के साथियों के साथ मिलकर शामली कोतवाली में तिरंगा फहराने पहुंच गईं थी। वहां तैनात दरोगा असलम ने विरोध किया तथा ज्ञान देवी और उनके साथ गए लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया। अन्य सेनानियों के साथ ज्ञानदेवी को सड़क पर गिराकर लात-घूसों से पीटा और घसीटा गया। इस घटना में ज्ञान देवी का गर्भपात भी हो गया। इसके बावजूद उनके मुंह से वंदेमातरम् का ही नारा गूंजता रहा। ज्ञान देवी के पौत्र उदयपाल धीमान बताते हैं कि उन्हें प्रयागराज की नैनी जेल में भी रखा गया। वहां पर पंडित जवाहर लाल नेहरू भी थे। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी से ज्ञान देवी के बेहद नजदीकी संबंध रहे। दादा प्यारेलाल भी स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। ज्ञान देवी को धीमान ( बढई)  समाज सदा याद करता रहेगा।
श्री विश्वकर्मा साहित्य धर्म प्रचार समिति ज्ञान देवी को कोटि कोटि नमन करते हैं।

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