श्री कृष्ण द्वारा भगवान विश्वकर्मा जी की स्तुति

विश्वकर्मा_साहित्य_भारत
श्री कृष्ण द्वारा भगवान विश्वकर्मा जी की स्तुति 

कालयवन से बचने एवं यादवो को बचाने के लिऐ इस स्तुति से श्रीकृष्ण भगवान ने विश्वकर्मा भगवान का आवाह्न किया था, इस स्तुति का नित्य पठन करने से आपके ऊपर आने वाले संकट टल जाते है।
॥कृष्ण उवाच॥

वशंतन्तुमय शिकयं, शिकये बह्मांडम् द्रतम।
निहितं चोमेयं येन, विश्वकर्मा स पातु नः॥

यः कालं दक्षिणां चैव, यजमानं हवीषि च।
धार चन्यः पर शिवो, विश्वकर्मा स पातु नः॥

नमत्यनेक करसतां, मधुरैकर संजलम।
यस्त तद्बबीज योगे न, महाशिल्पी स पातुन॥

भौमान्यनेकरुपाणी यस्य, शिल्पानि मानवाः।
उपजिवन्ति तं विश्वं, विश्वकर्मा स पातु नः॥

दिशा कालौ सूर्य चंद्राभ्यां, गोविप्राभ्यां हविमंनून।
निर्माय निर्मये यज्ञं, तस्मै यज्ञात्मने नमः॥

दिवि भुव्य अंतरिक्षे च, पाताले वापि सवॅसः।
यत् किचिंत् शिल्पीनां, शिलपं तत् प्रवॅतक ने नमः॥

दिवि भुव्यूदरे काष्ट, पाषाणादि च यौ विभु।
चतुधाॅ व्यभजयोति च चतुॅविध, फलात्ये येन विश्वकर्मा पातुनः॥

भगवान विश्वकर्मा जी की यह स्तुति से हमे तत्काल फल मिलता है, यह प्रार्थना से ही प्रसन्न होकर भगवान विश्वकर्मा जी ने सुवर्ण नगरी द्वारका की रचना की थी और कृष्ण और यादवो की रक्षा की थी।  इस मंत्रो के उच्चारण से हमे तत्काल विश्वकर्मा भगवान की कृपा प्राप्ती होती है !

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