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Showing posts from July, 2020

विश्वकर्मा ने खुद किया था इस मंदिर का निर्माण,

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विश्वकर्मा ने खुद किया था इस मंदिर का निर्माण,  कमल के पराग पर विराजे हैं विष्णु, प्रभु विश्वकर्मा जी द्वारा हम अनेक सन्दर्भ में पढ़ते आए हैं कि उनके निर्माण और रचनाएं अद्भुत श्रेणी की और शिल्प वास्तु शैली से युक्त होती है एसी ही एक रचना के विषय की जानकारी प्राप्त हुयी है जो आपके लिए विश्वकर्मा साहित्य भारत प्रचार प्रसार के उद्देश के साथ प्रस्तुत है भगवान विश्वकर्मा जी ने खुद किया था इस मंदिर का निर्माण, कमल के पराग पर विराजे हैं विष्णु  छत्तीसगढ़ के राजिम में स्थित राजीम लोचन मंदिर ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण धाम है। इस मंदिर में राजीव लोचन के रूप में स्वयं भगवान विष्णु विराजे हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं प्रभु विश्वकर्मा जी ने किया था। निर्माण के देवता श्री विश्वकर्मा की यह अद्भुत रचना हे।  कमल के पराग पर बनाया गया है यह मंदिर कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने प्रभु विश्वकर्मा से कहा कि धरती पर वे उनके लिए एक ऐसे स्थान पर मंदिर का निर्माण करें जहां पांच कोस तक कोई शव न जलाया गया हो। विष्णु का आदेश पाकर विश्वकर्मा जी धरती पर आए, उन्होंने

प्रभु विश्वकर्माजी के 108 नाम अर्थ सहित

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प्रभु विश्वकर्माजी के 108 नाम अर्थ सहित विश्वकर्मा साहित्य भारत के द्वारा हमेशा समाज मे विश्वकर्मा साहित्य का प्रचार प्रसार किया है आज एक और जानकारी समाज को साहित्य के रूप में प्रसारित कर रहे हैं *(1)* *अधिकर्मिक*- अन्य द्वारा किए गए कार्यो का निरीक्षण करनेवाले *(2)* *अतुल* - जिसकी कोई तुलना नहीं हो सकती *(3)* *अज* - जन्म मृत्यु से रहित हे वह  *(4)* *आनन्त्य* - जो अनंत और असीम हे  *(5)* *अचॅनीय* - जो सबके लिए पूजनीय है और संन्मानीय है  *(6)* *अभिक्षक* - जो सुरक्षा के लिए तत्पर है  *(7)* *अधिष्ठाता* - निरीक्षक, स्वामी और दूसरे को वश में रखने वाले  *(8)* *अधिनायक* - जो सर्व को आधीन रखने के लिए समर्थ  *(9)* *अभिनंध* - जो प्रशंसा और वन्दना करने योग्य  *(10)* *आदिकर* - सृष्टि का प्रारंभ करने वाले, सृष्टि के सर्जक  *(11)* *अधिश्र्वर* - नेता, स्वामी, प्रभावशाली विशिष्ट पुरुष  *(12)* *अभिधेय* - सर्वसार, निष्कर्ष और अविकल अर्थ वाले  *(13)* *अभ्युध्यकारी* - समृद्धि और वैभव को संपन्न करनेवाले  *(14)* *आढयंकर* - अतिशय सम्पति प्राप्त करनेवाले  *(15)* *अमन्द* - जो अपने कार्यो में ढील न

विश्वकर्मा द्वारा बनाया एक ही शिला से निर्मित शिवमंदिर

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प्रभु विश्वकर्माजी ने बनाया शिवमंदिर एक ही शिला से निर्मित मंदिर देवतालाब रिवा मध्यप्रदेश देवतालाब मे एक ही शिला (पत्थर) से निर्मित हुआ विशाल शिव मंदिर है. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण रातो-रात हुआ और इसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था। भारत में कई ऐसे मन्दिर हैं, जो दिव्य हैं एवं अनोखे हैं. देवतालाब मंदिर की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात मे हुआ। ऐसा कहा जाता है कि सुबह जब लोगों ने देखा तो यहां पर विशाल मंदिर बना हुआ मिला था लेकिन किसी ने यह नही देखा कि मंदिर का निर्माण कैसे हुआ। पूर्वजो के बताये अनुसार मंदिर के साथ ही यहां पर अलौकिक शिवलिंग का भी उत्पत्ति हुई थी। यह शिवलिग रहस्यमयी है दिन मे चार बार रंग बदली है। एक किदवंती है कि शिव के परम भक्त महर्षि मार्कण्डेय देवतालाब मे शिव के दर्शन के हठ में अराधना मे लीन थे और स्वयंभू ने महर्षि को दर्शन देने के लिए भगवान यहां पर मंदिर बनाने के लिए विश्वकर्मा भगवान को आदेशित किया। उसके बाद रातों रात यहां विशाल मंदिर का निर्माण हुआ और शिव लिग की स्थापना हुई। एक ही पत्थर पर बना हुआ अदभुत मंदिर है। इस मंद

देवशिल्पी विश्वकर्मा और महाबली भीम की प्रतियोगिता

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देवशिल्पी_विश्वकर्मा_और_महाबली_भीम_मे_प्रतियोगिता जांजगीर एक ऐतिहासिक व पुरातत्विक नगरी है| जिसे जाजल्य देव कि नगरी भी कहा जाता है जाजल्य देव ने अपने नाम पर इस जाजल्यपुर नामक नगर बसाया था| जो कि वर्तमान में जांजगीर के नाम से प्रसिद्ध है| जिसे समृद्धि कि नगरी कि संज्ञा दि गयी है| उस समय दक्षिण कोशल,छत्तीसगढ़ का नाम देश में बड़े आदर सम्मान से लिया जाता था,जाजल्यदेव एक पराक्रमी योद्धा था उसने युद्ध के दौरान अनेक राज्य पर विजय पाई मगर उसे हड़पा नहीं बल्कि वार्षिक कर पटाने कि ,व आधीनता के शर्त पर राज्य को वापिश कर देता था वह एक कुशल शाषक था * सप्त शैली में निर्मित है यह विष्णु मंदिर* साथ ही वैष्णव धर्म का उपासक था जिस कारण उसने अनेक मंदिर का निर्माण करवाया उसमे से एक छत्तीसगढ़ के ह्रदय स्थल में स्थित जांजगीर जिले में 11 वी सदी में विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था यह मंदिर स्थापत्य कला का अनुपम उदहारण है| छत्तीसगढ़ के इस दक्षिण कोशल क्षेत्र में कल्चुरी नरेश जाज्वल्य देव प्रथम ने भीमा तालाब के किनारे ११ वीं शताब्दी में एक मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य का अन

वृंदावन की रचना के लिए विश्वकर्मा जी का आगमन

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वृंदावन की रचना में विश्वकर्मा जी का आगमन वर्णन वृंदावन नगर जो श्री कृष्ण के जीवन में बहुत प्रिय भी और महत्वपूर्ण भी था। श्री कृष्ण के लिए नगर के निर्माण के लिए देवशिल्पी विश्वकर्मा जी सर्वश्रेष्ठ थे और उनके अलावा ब्रम्हांड मे कोई यह नगर रचना भी नहीं कर सकता है। श्री कृष्ण द्वारा विश्वकर्मा का आगमन, उनके द्वारा पाँच योजन विस्तृत नूतन नगर का निर्माण, वृषभानु गोप के लिये पृथक भवन, कलावती और वृषभानु के पूर्वजन्म का चरित्र, राजा सुचन्द्र की तपस्या, ब्रह्मा द्वारा वरदान, भनन्दन के यहाँ कलावती का जन्म और वृषभानु के साथ उसका विवाह, विश्वकर्मा द्वारा नन्द-भवन का, वृन्दावन के भीतर रासमण्डल का तथा मधुवन के पास रत्नमण्डप का निर्माण, ‘वृन्दावन’ नाम का कारण, राजा केदार का इतिहास, तुलसी से वृन्दावन नाम का सम्बन्ध तथा राधा के सोलह नामों में ‘वृन्दा’ नाम, नींद टूटने पर नूतन नगर देख व्रजवासियों का आश्चर्य तथा उन सबका उन भवनों में प्रवेश यह सब इस से जुड़ी हुई कथा है।  श्री कृष्ण कहते हैं– हे नारद! रात में वृन्दावन के भीतर सब व्रजवासी और नन्दराय जी सो गये। निद्रा के स्वामी श्रीकृष्ण भी माता य

भगवान जगन्नाथ के रथ बनाने मे विश्वकर्मा वंशीयो की महत्वपूर्ण भूमिका

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भगवान जगन्नाथ के रथ बनाने मे विश्वकर्मा वंशीयो की महत्वपूर्ण भूमिका  भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों का निर्माण शुरू हुए रथों को पूरा करने के लिए 150 विश्वकर्मा सेवक दिन में 15 से 16 घंटे काम करेंगे। रथखला में (जहां रथ बनाए जा रहे हैं।)सुबह 8 से रात 10 तक लगातार काम जारी रहेगा। इस दौरान ना तो ये किसी से मिलेंगे, ना ही अपने घर जाएंगे। जिस रथखला में रथ निर्माण का काम चल रहा है, वहां बाहरी लोगों का प्रवेश भी बंद कर दिया गया है। मंदिर समिति और रथ निर्माण से जुड़े लोगों के मुताबिक, रथ निर्माण के लिए सभी विश्वकर्मा सेवकों के काम निश्चित हैं, वे अपनी जिम्मेदारियों के हिसाब से काम में जुटे हुए हैं। रथ निर्माण शास्त्रोक्त तरीकों से किया जाता है।  रथ निर्माण की विधि विश्वकर्मिया रथ निर्माण पद्धति, गृह कर्णिका और शिल्प सार संग्रह जैसे ग्रंथों में है, लेकिन विश्वकर्मा सेवक अपने पारंपरिक ज्ञान से ही इनका निर्माण करते हैं। ये परंपरा बरसों से चली आ रही है। श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति के मुख्य प्रशासक डॉ. किशन कुमार के मुताबिक, सभी विश्वकर्मा सेवकों को मंदिर के रेस्टहाउस आदि

साहित्य रत्न श्री कवि सुंदरम्

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* त्रिभुवनदास परसोत्तमदास लुहार*  *कवि सुंदरम्* विश्वकर्मा समाज की एक ऐसी महान विभूति जो भारत देश में कविता और प्रेरित साहित्य के युग को वेग दिया।  जिन्हें उनके उपनाम सुंदरम से सारा साहित्य जगत जानता है, वह गुजराती भाषा के कवि और लेखक थे। उनका जन्म 22 मार्च, 1908 को गुजरात के भरूच जिले के मिया मातर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही पूरी की और पाँचवीं कक्षा तक की शिक्षा आमोद में अंग्रेज़ी माध्यम से पूरी की। फिर उन्होंने भरूच में छोटूभाई पुरानी नेशनल न्यू इंग्लिश स्कूल में पढ़ाई की। 1929 में , उन्होंने गुजरात विद्यापीठ से भाषाविषारद में स्नातक किया और सोनगढ़ में गुरुकुल में पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और जेल में कुछ समय बिताया। वह अहमदाबाद में 1935 से 1945 तक महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था ज्योति संघ से जुड़े हुए थे । 1945 मे वह श्री अरविंद के संपर्क में आए और पांडिचेरी में स्थायी हो गए। 1990 में गुजराती साहित्य परिषद के अध्यक्ष थे। 13 जनवरी 1991 को उनका निधन हो गया। उन्होंने अपने लेखन करियर की शुरुआत कवि

विश्वकर्मा भगवान द्वारा रचित सिमरिया शिवालय

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* विश्वकर्मा भगवान द्वारा रचित सिमरिया शिवालय* प्रभु विश्वकर्मा द्वारा भारतवर्ष में अनेक मन्दिरों की रचना का उल्लेख ग्रंथो और कुछ लोक कथाओं या किंवदन्ती स्वरुप जानने मिल रहा है उन्हीं मे से एक सिमरिया का शिवमंदिर जो प्रभु विश्वकर्मा ने एक रात में रचित किया है जानते हैं किंवदन्ती कथा अनुसार...!  सिकन्दरा-जमुई मुख्यमार्ग पर अवस्थित बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर आज भी लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है। जहा लोग सच्चे मन से जो भी कामना करते हैं उसकी कामना की पूर्ति बाबा धनेश्वरनाथ की कृपा से अवश्य पूरी हो जाती है। प्राचीन मान्यता के अनुसार यह शिवमंदिर 400 दशक से भी अधिक पुराना है। जहा बिहार ही नहीं वरन दूसरे राच्य जैसे झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि से श्रद्धालु नर-नारी पहुंचते हैं। पूरे वर्ष इस मंदिर में पूजन दर्शन, उपनयन, मुंडन आदि अनुष्ठान करने के लिए श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है। झारखंड के देवघर स्थित भगवान महादेव के शिव मंदिर का दूसरा रूप माना जाता है जमुई के महादेव सिमरिया में स्थित भगवान शिव का मंदिर। यहां सावन के प्रत्येक सोमवारी को श्रद्धालु कांवर में जल भरकर पैदल चलकर मंदि