देवशिल्पी विश्वकर्मा और महाबली भीम की प्रतियोगिता

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जांजगीर एक ऐतिहासिक व पुरातत्विक नगरी है| जिसे जाजल्य देव कि नगरी भी कहा जाता है जाजल्य देव ने अपने नाम पर इस जाजल्यपुर नामक नगर बसाया था| जो कि वर्तमान में जांजगीर के नाम से प्रसिद्ध है| जिसे समृद्धि कि नगरी कि संज्ञा दि गयी है| उस समय दक्षिण कोशल,छत्तीसगढ़ का नाम देश में बड़े आदर सम्मान से लिया जाता था,जाजल्यदेव एक पराक्रमी योद्धा था उसने युद्ध के दौरान अनेक राज्य पर विजय पाई मगर उसे हड़पा नहीं बल्कि वार्षिक कर पटाने कि ,व आधीनता के शर्त पर राज्य को वापिश कर देता था वह एक कुशल शाषक था

*सप्त शैली में निर्मित है यह विष्णु मंदिर*

साथ ही वैष्णव धर्म का उपासक था जिस कारण उसने अनेक मंदिर का निर्माण करवाया उसमे से एक छत्तीसगढ़ के ह्रदय स्थल में स्थित जांजगीर जिले में 11 वी सदी में विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था यह मंदिर स्थापत्य कला का अनुपम उदहारण है|
छत्तीसगढ़ के इस दक्षिण कोशल क्षेत्र में कल्चुरी नरेश जाज्वल्य देव प्रथम ने भीमा तालाब के किनारे ११ वीं शताब्दी में एक मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है। मंदिर पूर्वाभिमुखी है, तथा सप्तरथ योजना से बना हुआ है। मंदिर में शिखर हीन विमान मात्र है। गर्भगृह के दोनो ओर दो कलात्मक स्तंभ है जिन्हे देखकर यह आभास होता है कि पुराने समय में मंदिर के सामने महामंडप निर्मित था। परन्तु कालांतर में नहीं रहा। मंदिर का निर्माण एक ऊँची जगती पर हुआ है।

इस मंदिर में वैष्णव परिवार कि प्रतिमाये के साथ-साथ शैव परिवार कि प्रतिमाये देखने को मिलती है जिससे मालूम होता है कि वह शैव परिवार को भी बड़े आदर के साथ पूजता था यह मंदिर श्री हरी विष्णु को समर्पित है,मंदिर का गर्भ गृह पंचरथ प्रकार का है| व चारो ओर बाह्यभित्तियों में अत्यंत उत्कृष्टकोटि कि मूर्तियो का अंकन किया गया है| ये सभी प्रतिमाये वैष्णव धर्म से सम्बंधित है| मंदिर का प्रवेश द्वार काफी भव्य बनाया गया है| जिसमे गंगा जमुना व द्वार पाल का मनमोहक प्रतिमा अंकन किया गया है| मंदिर कि जगती व सोपान भित्तियों में रामायण एवं कृष्ण लीला से सम्बंधित कथाओ का अंकन किया गया है| मुख्य मंदिर सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर कि भाती उची जगती पर बनी हुई है जिसकी लम्बाई लगभग 34 मीटर,चौड़ाई 23 मीटर व उचाई 2.77 मीटर है| मंदिर पुर्वाभूमुखी में स्थित है| मंदिर का निर्माण लाल बलुवा पत्थर से किया गया है| मंदिर के पिछले हिस्से पर सूर्य कि प्रतिमा बनी हुई है व मंदिर कि दीवारों पर ना-ना प्रकार के देवी देवताओं अप्सराओ पशु पक्षी यक्ष गन्धर्व किन्नर कि प्रतिमा अंकित है| पूर्ण मंदिर बनाने के लिए इसे दो भागो में निर्माण किया गया था लेकिन दोनों भाग को मिलाने का कार्य समय से पूर्ण नहीं हुवा था जिस कारण दोनों भाग आज भी अलग –अलग जमीन पर रखा है| व अभी तक मंदिर पूर्ण नहीं हुवा है| सड़क के दुसरे पार्श्व में लघु विष्णु मंदिर है| मूल सवरूप तो नवीनीकरण के चलते लुप्तप्राय है| किन्तु इसकी प्रवेश द्वार अभी भी सुरक्षित है| इसमें नंदी व चतुर्भुज शिव गणेश ,नटराज कि प्रतिमा स्थित है| ये सभी मंदिर अपने समय में काफी भव्य रहा होगा जिसमे बाहरी आक्रमण हुवा होगा जिस कारण मंदिर श्री विहीन हो गया व, मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया मगर भारतीय शिल्पकारी कि अनूठी तकनीक के कारण यह मंदिर अब भी बचा हुवा है|

*दन्त कथा और लोक वाचा*

विष्णु मंदिर के निर्माण से सम्बंधित एक दन्त कथा बतायी जाती है,कि शिवरीनारायण मंदिर व जांजगीर के विष्णु मंदिर के बीच प्रतियोगिता कि दन्त कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने एक घोषणा किया कि जो मंदिर पहले बनकर तैयार होगा उसमे मै प्रविष्ट होऊंगा,इस प्रतियोगिता में शिवरीनारायण मंदिर पहले बनकर तैयार हो गया और जांजगीर का विष्णु मंदिर अधुरा रह गया जिस कारण मंदिर आज भी अधुरा है|

महाबली_भीम_और_देवशिल्पी_विश्वकर्मा_कि_प्रतियोगिता

दूसरी कथाओ के अनुसार पांडवो का वनवास काल के दौरान, यहाँ कुछ समय व्यतीत किये थे जब भीम को जोड़ो से प्यास लगी तब पांच बार फावड़ा के प्रहार से विशाल तालाब का निर्माण कर दिया जिसे भीमा तालाब (भीम तालाब )कहा जाता है| उन्ही दिनों देवशिल्पी विश्वकर्मा व भीम के बीच मंदिर बनाने कि प्रतियोगिता हुई जिसमे यह शर्त रखी गयी कि मंदिर का निर्माण केवल एक रात में  किया जाये, भीम को इस मंदिर का मुख्य वास्तुकार कहा जाता है| मंदिर निर्माण के समय जब भीम का छिनी हतौडा गिरता था तो भीम का हाथी उसको लाकर देता था एक बार तीव्र प्रहार के चलते हथौड़ा सरोवर में जा गीरा जिसे हाथी वापस नही ला पाया, मंदिर निर्माण अधुरा था व भोर हो गया जिस कारण महाबली भीम प्रतियोगिता हार गया और प्रभु विश्वकर्मा की जीत हुयी। तब क्रोध वस उस हाथी को भीम ने उसी सरोवर में फेक दिया वर्तमान में हाथी व भीम कि खण्डित प्रतिमा विद्यमान है|

*लोक मान्यता
कुछ लोगो का मत है कि इस मंदिर पर वज्र प्रहार के कारण यह मंदिर खण्डित हो गया ,कुछ इसे छ:मासी रात में बना मंदिर मानते है
यह मंदिर का निर्माण प्रभु विश्वकर्मा जी ने किया है एसा यहा सन्दर्भ के लेख और लोक कथाओं के आधारित प्रचार प्रसार करने हेतु से विश्वकर्मा साहित्य भारत द्वारा अर्पण किया है। 

संकलनकर्ता 
मयूर मिस्त्री 
विश्वकर्मा साहित्य भारत

सन्दर्भ सूची
श्री भृगु नंदन शर्मा द्वारा लिखित लेख के आधारित
और लोक दंतकथा व किंवदन्ती

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