विश्वकर्मा ने खुद किया था इस मंदिर का निर्माण,

विश्वकर्मा ने खुद किया था इस मंदिर का निर्माण, 
कमल के पराग पर विराजे हैं विष्णु,
प्रभु विश्वकर्मा जी द्वारा हम अनेक सन्दर्भ में पढ़ते आए हैं कि उनके निर्माण और रचनाएं अद्भुत श्रेणी की और शिल्प वास्तु शैली से युक्त होती है एसी ही एक रचना के विषय की जानकारी प्राप्त हुयी है जो आपके लिए विश्वकर्मा साहित्य भारत प्रचार प्रसार के उद्देश के साथ प्रस्तुत है भगवान विश्वकर्मा जी ने खुद किया था इस मंदिर का निर्माण, कमल के पराग पर विराजे हैं विष्णु
 छत्तीसगढ़ के राजिम में स्थित राजीम लोचन मंदिर ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण धाम है। इस मंदिर में राजीव लोचन के रूप में स्वयं भगवान विष्णु विराजे हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं प्रभु विश्वकर्मा जी ने किया था। निर्माण के देवता श्री विश्वकर्मा की यह अद्भुत रचना हे। 
कमल के पराग पर बनाया गया है यह मंदिर कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने प्रभु विश्वकर्मा से कहा कि धरती पर वे उनके लिए एक ऐसे स्थान पर मंदिर का निर्माण करें जहां पांच कोस तक कोई शव न जलाया गया हो। विष्णु का आदेश पाकर विश्वकर्मा जी धरती पर आए, उन्होंने बहुत खोजा पर उन्हें ऐसा कोई स्थान नहीं मिला जहां पांच कोस तक कोई शव न जला हो। वे निराश होकर विष्णु के पास वापस गए, इस पर विष्णु ने धरती पर एक कमल का फूल छोड़ा और देव शिल्पी विश्वकर्मा जी से कहा कि जिस जगह पर यह फूल गिरे वहीं पर मंदिर का निर्माण करना।
कमल का फूल राजिम क्षेत्र में गिरा, इस प्रकार कमल फूल के पराग पर राजीव लोचन का मंदिर बनाया गया और उसकी पांच पंखुडिय़ों पर पंचकोसी धाम बसाए गए हैं। पंचकोसी धाम इस प्रकार हैं: कुलेश्वर नाथ (राजिम), चंपेश्वर नाथ (चंपारण्य), ब्राह्मकेश्वर (ब्रह्मणी), पाणेश्वर नाथ (फिंगेश्वर) और कोपेश्वर नाथ (कोपरा)। राजिम में पंचकोसी यात्रा भी की जाती है।
राजिम आए बिना पूरी नहीं होती जगन्नाथ पुरी की यात्रा
स्थानीय मान्यता है कि जब तक भक्त राजिम की यात्रा नहीं करता तब तक उसकी जगन्नाथ पुरी की यात्रा अधूरी रहती है। मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ राजिम आते हैं। उस दिन पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के पट बंद रहते हैं। उस दिन भगवान राजीव लोचन में ही पुरी के जगन्नाथ के दर्शन होते हैं।
लगता है कुम्भ का मेला
राजिम में हर साल छत्तीसगढ शासन द्वारा राजिम कुम्भ का आयोजन किया जाता है जिसमें शामिल होने देशभर से साधु सन्यासी राजिम पहुंचते हैं। इसे पांचवा कुम्भ भी कहा जाता है। राजिम तीन नदियों के संगम खारुन,महानदी और पैरी के संगम पर स्थित है। छत्तीसगढ के लोगों के लिए इस मंदिर का महत्व वैसा ही है जैसे पूरे देश के लिए प्रयाग का।
प्रभु विश्वकर्मा जी की यह रचना आज भी हमारे जीवन का हिस्सा है।
विश्वकर्मा साहित्य भारत 

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