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Showing posts from September, 2021

महात्मा "अलख" भूरी बाई सुथार

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महात्मा "अलख" भूरी बाई सुथार विश्वकर्मा साहित्य भारत के माध्यम से अनेक विश्वकर्मा प्रतिभा को समाज में उत्तम स्थान प्राप्त मिले और उन्हें हर संभव सभी विश्वकर्मा वंशी बंधुओं समस्त कार्यक्रमों में उनको सम्मान मिले उनके नाम पर सम्मान पत्र, कार्यक्रमों के नाम, उनकी जन्म जयंती, उनके नाम पर पत्रिकाएं, अवार्ड, और बहुत इस तरह के कार्य द्वारा विश्वकर्मा समाज के महात्माओ, प्रतिभाओ को सम्मानित करना चाहिए यही प्रयास के साथ हम विश्वकर्मा साहित्य भारत के द्वारा अनेक सामाजिक विकास के प्रचार प्रसार अभियान कर रहे हैं।  आज आपको हम एक ऐसी प्रतिभा जो समस्त विश्वकर्मा समाज के लिए गौरव और धार्मिक महत्व से जुड़ी हुई है। विश्वकर्मा सुथार वंश के गौरव और महान संत महात्मा भूरी बाई सुथार जिन्हें अलख उपाधि से जाना जाता है। महात्मा श्री भूरी बाई को ‘अलख’ नाम किसी अन्य सन्त महात्मा ने अभिभूत होकर दिया था। “महात्मा भूरी बाई अलख” का जन्म राजसमन्द जिले के लावा सरदारगढ़ गाँव में संवत् 1949 में आषाढ़ शुक्ला 14 को एक सुथार परिवार में हुआ। माता का नाम केसर बाई और पिता का नाम रूपा जी सुथार है। उनके पति

पांचाल ब्राम्हणों की मान प्रतिष्ठा

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पांचाल ब्राम्हणों की मान प्रतिष्ठा वेदों पुराणों और अनेक ग्रंथो मे उल्लेखनीय पांचाल ब्राम्हणों की प्रतिष्ठा आदि काल से रही है थोड़ा संक्षिप्त मे बताने का प्रयास किया गया है। पांचाल ब्राह्मणेति हासः कथं ।। तत्र सुवर्णालंकार वाणिज्यों प जीविनः पांचाल ब्राह्मणा ।। शैवागम के अनुसार  पंचालाना च सर्वेषामा चारोSप्य़थ गीयते । षट् कर्म विनिर्मित्यनी पचांलाना स्मुतानिच ।। रूद्रयामल वास्तु तन्त्र में शिवाजी महाराज ने कहा कि शिवा मनुमंय स्त्वष्टा तक्षा शिल्पी च पंचमः ।। विश्वकर्मसुता नेतान् विद्धि प्रवर्तकान् ।। एतेषां पुत्र पौत्राणामप्येते शिल्पिनो भूवि ।। पंचालानां च सर्वेषां शाखास्याच्छौन कायनो ।। पंचालास्ते सदा पूज्याः प्रतिमा विश्वकर्मणः ।। रूद्रवामल वास्तु तन्त्र व्रत्यादि ।। उपरोक्त प्रमाणों में पाचांल शब्द का प्रयोग विश्वकर्मा जी के स्थान में किया गया है। अर्थात् रथकार और पांचाल दोनों शब्द विश्वकर्मा ब्राह्मण बोधक ही है। यज्ञ कर्म और देव कर्म संबंधी कर्म में कहीं कहीं विश्वकर्मा पाचांल ब्राह्मण की सज्ञां स्थापत्य भी कही गई है। जैसे भागवत स्कन्द 3 में स्थापत्य विश्वकर्म शास्त्र

भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या

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भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या आधुनिक भारत के महान इंजीनियर विश्वकर्मा वंशी कुलभूषण श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या (15 सितंबर 1860 — 14 अप्रैल 1962) भारत के महान अभियन्ता एवं राजनयिक थे। उन्हें सन 1944 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से विभूषित किया गया था।  भारत में उनका जन्मदिन अभियन्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। सभी देश वासियों को महान इंजीनियर विश्वकर्मा कुलभूषण मोक्षगुंडम विश्वेशरय्या के जन्मदिवस पर समस्त विश्वकर्मा समाज को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।  विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर 1860 को एक तेलुगु परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता संस्कृत के विद्वान थे। विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्मस्थान से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। लेकिन यहां उनके पास धन का अभाव था। अत: उन्हें टयूशन करना पड़ा। विश्वेश्वरैया ने 1880 में बीए की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया। इसके बाद मैसूर सरकार क

भगवान विश्वकर्मा और अथर्ववेदी विश्वकर्मिय ब्राम्हण

भगवान विश्वकर्मा और अथर्ववेदी विश्वकर्मिय ब्राम्हण  विश्व को प्राचीनतम ग्रन्थ वेदों से ऋषियों द्वारा रचित ज्ञान मिला। महर्षि अंगिरा ने अथर्ववेद की रचना की, जिसका उपवेद अर्थवेद यानि शिल्प शास्त्र है, जिसमें सारे शिल्प - विज्ञान का वर्णन है। इसमें सुई से लेकर विमान निर्माण तक की विद्या का ज्ञान हैं। इसी वंश में ऋषि विश्वकर्मा हुए, जिन्होंने मानव कल्याण और भूमंडल की रचना को शिल्प विज्ञान के आविष्कार किये। वेदों में विश्वकर्मा जी की महिमा के अनेक मंत्र है। वाल्मीकि रामायण में गुरु वशिष्ठ शिल्प कर्म में लगे शिल्पियों को यज्ञकर्म में व्यस्त बताकर उनकी पूजा का आदेश देते है तथा ऋग्वेद में विश्वकर्मा जी को धरती तथा स्वर्ग का निर्माता कहा है। यजुर्वेद में महर्षि दयानंद सरस्वती के भाष्य में कहा गया है कि विश्व के सभी कर्म, जिनके अपने किये होते है, ये वही विश्वकर्मा है। शतपथ में अग्नि, वायु, आदित्य से वेदोत्पत्ति सिद्ध है और इसे मनु ने भी माना है - अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम्।  दुहोह यज्ञसिद्ध्यर्थमृग्यजुः सामलक्षणम्।।  ऐतरेयब्राह्मण भी अग्नि, वायु से वेदों का प्रादुर्भाव मानता है और

श्रीमद्भागवत महापुराण मे विश्वकर्मा संतति के प्रमाण

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श्रीमद्भागवत महापुराण मे विश्वकर्मा संतति के प्रमाण  श्रीमद्भागवत महापुराण अथ षष्ठो अध्याय: प्रथम खण्ड (छ:स्कन्द) श्लोक: वसोराङ्गिरसीपुत्रो१ विश्वकर्माकृतीपति: ।  ततो मनुश्चाक्षुषोअभूद् विश्वे साध्यामनो: सुता: ॥१५ ॥  विभावसोरसूतोषा व्युष्टं रोचिषमातपम्।  पञ्चयामोअथ भूतानि मने जाग्रति कर्मसु॥१६॥  सरुपासुत २ भूतस्य भार्या रुद्रांश्च कोटिशः।  रैवतोअजो भयो भी मोदी वाम उग्रो वृषाकपि:॥१७॥  अजैकपादहिर्बुध्न्यो बहुरुपो महानिति।  रुद्रस्य पार्षदाश्चन्यो घोरा३ भूतविनायका:॥१८॥  प्रजापतेरङ्गिरस स्वधा पत्नी पितॄनथ।  अथर्वाङ्गिरस वेद४ पुत्रत्वे चाकरोत् सती ॥१९॥  कशाश्वोअर्चिषि भार्यायां धूम्रकेशमजीजनत्।  धिषणायां वेदशिरो देशों वसुंधरा मनुष्य ॥२०॥  ताक्षर्यस्य विनता कद्रू: पतङ्गी यामिनीति च।  पतङ्गयसूत पतगान् यामिनी शलभानथ ॥२१॥ भावार्थ अष्टम वसु की पत्नी आंगिरासी से शिल्प कला के अधिपति श्री विश्वकर्मा जी हुए। विश्वकर्मा के उनकी भार्या कृती के गर्भ से चाक्षुष मनु हुए और उनके पुत्र विश्वेदेव एवं साध्यगण हुए॥१५॥ विभा वसु की पत्नी उषा से 3 पुत्र हुए- त्वष्टा, रोचिष और आतप। उनमें से आता के पंच

अगस्त्य संहिता का विद्युत्-शास्त्र

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अगस्त्य संहिता का विद्युत्-शास्त्र His Place Of Power ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ की बहुत चर्चा होती है। इस ग्रंथ की प्राचीनता पर भी शोध हुए हैं और इसे सही पाया गया। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं।  संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌। छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥ दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥ (अगस्त संहिता) इसका तात्पर्य था, एक मिट्टी का पात्र (Earthen pot) लें, उसमें ताम्र पट्टिका (copper sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगायें, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो, उससे मित्रावरुणशक्ति का उदय होगा। अगस्त्य मुनि एक वैदिक ॠषि थे। ये वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे। इनका जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी (तदनुसार ३००० ई.पू.) को राजस्थान मे हुआ था। वर्तमान में वह स्थान अगस्त्यकुंड के नाम से प्रसिद्ध है। इनकी पत्नी लोपामुद्रा विदर्भ देश की राजक