पांचाल ब्राम्हणों की मान प्रतिष्ठा

पांचाल ब्राम्हणों की मान प्रतिष्ठा

वेदों पुराणों और अनेक ग्रंथो मे उल्लेखनीय पांचाल ब्राम्हणों की प्रतिष्ठा आदि काल से रही है थोड़ा संक्षिप्त मे बताने का प्रयास किया गया है।

पांचाल ब्राह्मणेति हासः कथं ।।
तत्र सुवर्णालंकार वाणिज्यों प जीविनः पांचाल ब्राह्मणा ।।
शैवागम के अनुसार 

पंचालाना च सर्वेषामा चारोSप्य़थ गीयते ।
षट् कर्म विनिर्मित्यनी पचांलाना स्मुतानिच ।।

रूद्रयामल वास्तु तन्त्र में शिवाजी महाराज ने कहा कि

शिवा मनुमंय स्त्वष्टा तक्षा शिल्पी च पंचमः ।।
विश्वकर्मसुता नेतान् विद्धि प्रवर्तकान् ।।
एतेषां पुत्र पौत्राणामप्येते शिल्पिनो भूवि ।।
पंचालानां च सर्वेषां शाखास्याच्छौन कायनो ।।
पंचालास्ते सदा पूज्याः प्रतिमा विश्वकर्मणः ।।
रूद्रवामल वास्तु तन्त्र व्रत्यादि ।।

उपरोक्त प्रमाणों में पाचांल शब्द का प्रयोग विश्वकर्मा जी के स्थान में किया गया है। अर्थात् रथकार और पांचाल दोनों शब्द विश्वकर्मा ब्राह्मण बोधक ही है।

यज्ञ कर्म और देव कर्म संबंधी कर्म में कहीं कहीं विश्वकर्मा पाचांल ब्राह्मण की सज्ञां स्थापत्य भी कही गई है। जैसे भागवत स्कन्द 3 में स्थापत्य विश्वकर्म शास्त्र लिखा है, इसका यही अर्थ है कि यज्ञ सम्बधी और देव संबधी पवित्र शिल्प कर्म करने वाले विश्वकर्मा सन्तान ब्राह्मण है। इसकी पुष्टि अमर कोष के प्रमाण से भी होती है।

पंचमिः शिल्पैः अलन्ति भूषयन्ति जगत इति पांचालाः।।

अर्थात - पांच प्रकार की धातुओं से शिल्पकला, कौशल द्वारा जो जगत का श्रींगार सृजन करते उन सभी को पांचाल कहा जाता है। लौह, काष्ठ, ताम्र, पाषाण, और स्वर्ण यह पांच धातु कर्म आधारित है।

यः पूजयेद्वास्तु अनेन युक्तंनतस्य दुख भवति हकिचिन्त ।
जीवत्य सौ वर्ष शतं सुखेन स्वगेॅन सतिष्टाति कल्यमेकम् ।।
(वास्तुशास्त्र अध्याय 22)

जो मनुष्य पांचाल शिल्पियों का विधि विधान से पूजन करता है वह कभी दुख नहीं पाता है और एक कल्प भर स्वर्ग में स्थान निवास मिलता है। 

रचयंति विचित्राणी रुपाणि विविधानिये ।
पांचालास्ते सदा पूज्याः प्रतिमा विश्वकर्मणः ।। 

नाना प्रकार के विमानादि बनाने के कारण पांचाल ब्राम्हणों का सत्कार विश्वकर्मा का स्वरुप मानकर पूजा जाता रहा है। 

इसी प्रकार पद्मपुराण भूखण्ड स्कंद पुराण विश्वकर्मा महात्म मे अध्याय 25 श्लोक 7 से 16 तक में विश्वकर्मा की षोडशोपचार पूजा करने की विधि विधान श्री कृष्ण ने स्वयं बताई हे। ब्रह्मवैवर्तपुराण कृष्ण जन्मखण्ड राधा कृष्ण संवाद अध्याय 47 श्लोक 1,37,38,39 मे श्री कृष्ण भगवान ने पांचाल ब्राम्हणों की अनेक प्रकार के रत्नों से पूजा सत्कार करने की शिक्षा दी है। इसी प्रकार पद्म पुराण भूखण्ड अध्याय 28 के श्लोक 73 से 81 तक मे और स्कन्द पुराण प्रभास खण्ड सोमनाथ महात्म अध्याय 1 श्लोक 16 से 26 मे वर्णित किया गया है। पांचाल ब्राम्हणों की प्रतिष्ठा और मान सम्मान मिलता है।
संकलनकर्ता - मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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