श्रीमद्भागवत महापुराण मे विश्वकर्मा संतति के प्रमाण

श्रीमद्भागवत महापुराण मे विश्वकर्मा संतति के प्रमाण 

श्रीमद्भागवत महापुराण
अथ षष्ठो अध्याय:
प्रथम खण्ड (छ:स्कन्द)
श्लोक:
वसोराङ्गिरसीपुत्रो१ विश्वकर्माकृतीपति: । 
ततो मनुश्चाक्षुषोअभूद् विश्वे साध्यामनो: सुता: ॥१५ ॥ 
विभावसोरसूतोषा व्युष्टं रोचिषमातपम्। 
पञ्चयामोअथ भूतानि मने जाग्रति कर्मसु॥१६॥ 
सरुपासुत २ भूतस्य भार्या रुद्रांश्च कोटिशः। 
रैवतोअजो भयो भी मोदी वाम उग्रो वृषाकपि:॥१७॥ 
अजैकपादहिर्बुध्न्यो बहुरुपो महानिति। 
रुद्रस्य पार्षदाश्चन्यो घोरा३ भूतविनायका:॥१८॥ 
प्रजापतेरङ्गिरस स्वधा पत्नी पितॄनथ। 
अथर्वाङ्गिरस वेद४ पुत्रत्वे चाकरोत् सती ॥१९॥ 
कशाश्वोअर्चिषि भार्यायां धूम्रकेशमजीजनत्। 
धिषणायां वेदशिरो देशों वसुंधरा मनुष्य ॥२०॥ 
ताक्षर्यस्य विनता कद्रू: पतङ्गी यामिनीति च। 
पतङ्गयसूत पतगान् यामिनी शलभानथ ॥२१॥

भावार्थ
अष्टम वसु की पत्नी आंगिरासी से शिल्प कला के अधिपति श्री विश्वकर्मा जी हुए। विश्वकर्मा के उनकी भार्या कृती के गर्भ से चाक्षुष मनु हुए और उनके पुत्र विश्वेदेव एवं साध्यगण हुए॥१५॥

विभा वसु की पत्नी उषा से 3 पुत्र हुए- त्वष्टा, रोचिष और आतप। उनमें से आता के पंचयाम (दिवस) नामक पुत्र हुआ, उसी के कारण सब जीव अपने-अपने कार्यों में लगे रहते हैं॥१६॥

भूत की पत्नी दक्ष नंदिनी सरूपा ने कोटि-कोटि रुद्र गण उत्पन्न किए। इनमें रैवत, अज, भव, भीम, वाम, उग्र, वृषाकपि, अजैकपाद, अहिर्बुध्नय, बहुरुप और महान ये ग्यारहवें प्रधान रुद्र महान के पार्षद हुए॥१७-१८॥

अंगिरा प्रजापति की प्रथम पत्नी स्वधाने पितृगणको उत्पन्न किया और दूसरी पत्नी सती ने अथर्वाङ्गिरस नामक वेद को ही पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया॥१९॥

कृशाश्व की पत्नी अर्चिसे धूम्रकेशका जन्म हुआ और धिषणासे चार पुत्र हुए- वेदशिरा, देवल, वयुन और मनु ॥२०॥

ताक्षर्यनामधारी कश्यप की चार स्त्रियाँ थी- विनता, कद्रु, पतंगी और यामिनी। पतंगी से पक्षियों का और यामिनी शलभों (परिंदो) का जन्म हुआ॥२१॥
(सन्दर्भ भावार्थ मे मिले भाषांतर मे कुछ कमी भी है जिसे योग्य होना चाहिए ज्ञानीजन मार्गदर्शन करे ) 
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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