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Showing posts from September, 2022

विश्वकर्मस्तोत्रम्

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विश्वकर्मस्तोत्रम्   विश्वकर्म ध्यानम् । न भूमिर्न जलञ्चैव न तेजो न च वायवः नाकाशं च न चित्तञ्च न बुद्धीन्द्रियगोचराः न च ब्रह्मा न विष्णुश्च न रुद्रश्च तारकाः सर्वशून्या निरालम्बा स्वयम्भूता विराटसत् सदापरात्मा विश्वात्मा विश्वकर्मा सदाशिवः ॥ श्रितमध्यतमध्यस्तं ब्रह्मादिसुरसेवितम् । लोकाध्यक्षं भजेऽहं त्वां विश्वकर्माणमव्ययम् ॥ प्राकादिदिङ्मुखोत्पन्नो सनकश्च सनातनः । अभुवनस्य प्रत्नस्य सुपर्णस्य नमाम्यहम् ॥ अखिलभुवनबीजकारणम् । प्रणवतत्त्वं प्रणवमयं नमामि ॥ पञ्चवक्त्रं जटाधरं पञ्चदशविलोचनम् । सद्योजाताननं श्वेतं च वामदेवन्तु कृष्णकम् ॥ अघोरं रक्तवर्णं च तत्पुरुषं हरितप्रभम् । ईशानं पीतवर्णं च शरीरं हेमवर्णकम् ॥ दशबाहुं महाकायं कर्णकुण्डलशोभितम् । पीताम्बरं पुष्पमालं नागयज्ञोपवीतिनम् ॥ रुद्राक्षमालासंयुक्तं व्याघ्रचर्मोत्तरीयकम् । पिनाकमक्षमालाञ्च नागशूलवराम्बुजम् ॥ वीणां डमरुकं बाणं शङ्खचक्रधरं तथा । कोटिसूर्यप्रतीकाशं सर्वजीवदयापरम् ॥ विश्वेशं विश्वकर्माणं विश्वनिर्माणकारिणम् । ऋषिभिः सनकाद्यैश्च संयुक्तं प्रणमाम्यहम् ॥ इति विश्वकर्मस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

17 सितंबर विश्वकर्मा पूजा महोत्सव

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17 सितंबर विश्वकर्मा पूजा महोत्सव भगवान विश्वकर्मा जी के बारे में बहुत सी मान्यताएं है. कुछ धर्मशास्त्रियों का मानना है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म अश्विन मास की कृष्णपक्ष को हुआ था जबकि दूसरी तरफ लोग कहते हैं कि इनका जन्म भाद्रपद मास की अंतिम तिथि को हुआ था. और ज्यादातर प्रमाण मे माध शुक्ल त्रयोदशी के दिन भगवान विश्वकर्मा जी का प्रकट दिन हे, वहीं जन्म तिथि से अलग एक ऐसी मान्यता निकली जिसमें विश्वकर्मा पूजा को सूर्य के परागमन के अनुसार तय किया गया. और कुछ कन्या संक्रांति का प्रमाण दे रहे हैं, तो यह दिन बाद में सूर्य संक्रांति के दिन रूप में माना जाने लगा. यह लगभग हर साल 17 सितंबर को ही पड़ता है इसलिए इसी दिन पूजा-पाठ किया जाने लगा। साथ ही एक ओर कहानी भी जुड़ी हुई है हावड़ा ब्रिज के निर्माण मुहूर्त के दिन विश्वकर्मा जी की पूजा हुयी थी वो दिन 17 सितंबर  था, तभी से 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। शुरुआत में वेस्ट बंगाल ही यह उत्सव मनाता था धीरे धीरे उनके साथी राज्य भी मनाने लगे आज यह आवाज पूरे देश में गूंज ले रही है।  मेरे मत अनुसार विश्वकर्मा प्रभु

विश्वाकर्मोपनिषत्

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विश्वाकर्मोपनिषत् अथ विश्वाकर्मोपनिषत् ।  ज्योतिर्मयं शान्तमयं प्रदीप्तं, विश्वात्मकं विश्वजितन्निरीशम् ।  अद्यन्तशून्यं सकलैकनाथं, श्रीविश्वकर्माणमहं नमामि ॥  ॐ विश्वकर्मा दिशां पतिः स नः पशून्पातु सोऽस्मान्पातु तस्मै नमः ।  प्रजापतिकद्रो वरुणोऽग्निर्दिशाम्पतिः स नः पशून्पातु सोऽस्मान्पातु तस्मै नमः ॥  अथ पुरुषो ह वै विश्वकर्मणो कामयत प्रजाः सृजेयेति ।  विश्वकर्मणः प्राणो जायते मनः सर्वेन्द्रियाणि च ।  खं वायुर्ज्योतिरापः पृथिवी विश्वस्य धारिणी ॥  विश्वकर्मणो ब्रह्मा जायते ।  विश्वकर्मणो रुद्रो जायते ।  विश्वकर्मणो नारायणो जायते ।  विश्वकर्मणः प्रजापतयः प्रजायन्ते ।  विश्वकर्मणो द्वादशादित्या रुद्रा वसवः सर्वे देवताः सर्वे ऋषयः सर्वाणि छन्दांसि सर्वाणि भूतानि वा समुत्पद्यन्ते ।  विश्चकर्मणि प्रवर्धन्ते ।  विश्वकर्मणि प्रलीयन्ते ।  ॐ अथ नित्यो देवो एको विश्वकर्मा ।  यो देवानां नामधारी एक एव विश्वकर्मा ।  विराट विश्वकर्मा ।  स्वराड्विश्वकर्मा ।  सम्राड्विश्वकर्मा ।  अथ रुद्रो विश्वकर्मा ।  ब्रह्मा विश्वकर्मा ।  शिवश्च विश्वकर्मा ।  विष्णुश्च विश्वकर्मा ।  शक्रश्च विश्वकर्मा

विश्वकर्मनामाष्टोत्तरशतकम्

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विश्वकर्मनामाष्टोत्तरशतकम्  श्रीगणेशाय नमः । अथ श्रीविश्वकर्मनामाष्टोत्तरशतकं प्रारम्भम् । अस्य श्रीविश्वकर्मनामाष्टोत्तरशतकस्तोत्रमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः । श्रीविश्वकर्मा देवता । अनुष्टुप्छन्दः । सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थं श्रीविश्वकर्मप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥ अथ ध्यानम् । पञ्चाननो दशभुजा घृतवद दीक्षः केयूरहारमणिकुण्डलचण्डतेजाः । भस्माङ्कितो मणिमयासनसंस्थितोऽसौ सर्वेश्वरो वसतु मे हृदि विश्वकर्मा ॥ ॐ विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थाष्ठि च स्थविरो ध्रुवः । विष्णुर्वैश्वानरो योगी शिल्पाचार्यः क्रियापरः ॥ १॥ अमयी निर्भयः शान्तः सत्यव्यामः सतां प्रियः । लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो वरदोऽभयदो वरः ॥ २॥ मयो मन्द्रर्महातेजाः शिवयोगी हरिप्रियः । कायदः कयदः कान्तः कुलीनः कौशलप्रदः ॥ ३॥ दाता सत्यः स्वराड्विभुः गृहस्थाश्रमिणो मतिः ॥ वनवासी महामायो रूपाध्यक्षो ह्यचिन्तितः ॥ ४॥ स्वापनः शाघ्र सोचिन्त्यः कौशलः कर्मठो नरः ॥ जटी मुण्डी शिखी देवः संवृत्ताङ्गः पिशाचराट् ॥ ५॥ शास्त्रविधिर्विधिकरो लोकेशः पावनः परः ॥ हरो बुद्धिप्रदोऽनन्तः सत्यसङ्कल्प ईश्वरः ॥ ६॥ सत्यकामः सत्यरुचिः सत्यार्थः शम्भवः शिवः ॥ नादप

विश्वकर्मा समाज के गौरव रसायन विध गज्जर त्रिभुवनदास कल्याणदास

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विश्वकर्मा समाज के गौरव रसायन विध गज्जर त्रिभुवनदास कल्याणदास (जन्म 3 अगस्त 1863; मृत्यु 16 जुलाई 1920) हमारे लिए गौरव की बात है कि हमारा विश्वकर्मा समाज अति गौरवशाली और प्रतिभाओं से भर्रा हुआ है। आज हम बात करते हैं ऐसे महान विभूति की जिन्होंने देश और दुनिया के लिए अपने संशोधनों से नाम किया है। वो गुजरात के शिक्षाविद, प्रसिद्ध रसायनज्ञ, उच्च क्षमता के शिक्षक और भारतीय रासायनिक उद्योग के अग्रणी थे । उनका जन्म सूरत में विश्वकर्मा वैश्य सुथार जाति के प्रभावशाली माने जाने वाले परिवार में हुआ था। माता का नाम फुलकोरबहन था । उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज, मुंबई से रसायन विज्ञान के साथ बीए और एम.ए. की पढ़ाई की थी। उसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए आज के पाकिस्तान के करांची के एक कॉलेज में अपनी सेवा दी और फिर वडोदरा गुजरात में प्रोफेसर के रूप में काम किया। उन्होंने वडोदरा में एक छपाई और रंगाई प्रयोगशाला शुरू की थी । उन्होंने रंग अध्ययन पर 'रंगरहस्य' नाम से एक त्रैमासिक पत्रिका शुरू किया गया था। वडोदरा के एक शाही महाराजा सयाजीराव गायकवाड ने सन 1890 में श्री गज्जर जी की सलाह पर कला