विश्वकर्मा समाज के गौरव रसायन विध गज्जर त्रिभुवनदास कल्याणदास

विश्वकर्मा समाज के गौरव रसायन विध गज्जर त्रिभुवनदास कल्याणदास
(जन्म 3 अगस्त 1863; मृत्यु 16 जुलाई 1920)
हमारे लिए गौरव की बात है कि हमारा विश्वकर्मा समाज अति गौरवशाली और प्रतिभाओं से भर्रा हुआ है। आज हम बात करते हैं ऐसे महान विभूति की जिन्होंने देश और दुनिया के लिए अपने संशोधनों से नाम किया है। वो गुजरात के शिक्षाविद, प्रसिद्ध रसायनज्ञ, उच्च क्षमता के शिक्षक और भारतीय रासायनिक उद्योग के अग्रणी थे । उनका जन्म सूरत में विश्वकर्मा वैश्य सुथार जाति के प्रभावशाली माने जाने वाले परिवार में हुआ था। माता का नाम फुलकोरबहन था । उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज, मुंबई से रसायन विज्ञान के साथ बीए और एम.ए. की पढ़ाई की थी। उसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए आज के पाकिस्तान के करांची के एक कॉलेज में अपनी सेवा दी और फिर वडोदरा गुजरात में प्रोफेसर के रूप में काम किया। उन्होंने वडोदरा में एक छपाई और रंगाई प्रयोगशाला शुरू की थी । उन्होंने रंग अध्ययन पर 'रंगरहस्य' नाम से एक त्रैमासिक पत्रिका शुरू किया गया था।
वडोदरा के एक शाही महाराजा सयाजीराव गायकवाड ने सन 1890 में श्री गज्जर जी की सलाह पर कला भवन की स्थापना की। श्री गज्जर जी को वहां आचार्य पद से नियुक्त किया गया था। छह साल तक कला भवन में रहकर उन्होंने गुजराती भाषा में 'ज्ञानमंजुषा' और 'लघुमन्जुषा' श्रृंखला में विज्ञान से संबंधित साहित्य तैयार करना शुरू किया। इस कार्य के लिए महाराजा ने उन्हें रु. 50 हजार का अनुदान भी दिया गया। कला भवन को एक औद्योगिक विश्वविद्यालय में बदलने की उनकी इच्छा पूरी नहीं होने के बाद, उन्होंने सन 1896 में वडोदरा छोड़ दिया और विल्सन कॉलेज बॉम्बे (मुंबई) में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में शामिल हो गए। इसी बीच जब मुंबई में मरकी नाम की बीमारी फैली तो उन्होंने अपने संशोधन द्वारा आयोडीन टेरक्लोराइड नाम की दवा की खोज की थी । उन्होंने इस दवा के अधिकारों के लिए विदेशी कंपनियों के बड़े प्रस्तावों को खारिज कर दिया और इस दवा के रहस्य को जनता के सामने प्रकट किया। सन 1900 में, उन्होंने मुंबई के गिरगांव में एक तकनीकी प्रयोगशाला की स्थापना की, जो भारत की राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के अग्रदूत थे। उन्होंने पुराने निस्तेज मोतियों को फिर से चमकाने के लिए एक रासायनिक प्रक्रिया की भी खोज की। उन्होंने इस खोज से बहुत कमाया और यह सारा पैसा रसायन विज्ञान के प्रचार में खर्च किया था । त्रिभुवनदास गज्जर जी ने प्रयोगशाला को फलने-फूलने के लिए हस्तलेख विशेषज्ञ के रूप में अर्जित आय का उपयोग किया।
गोवर्धनराम त्रिपाठी, कांत, बलवंतराय के. ठाकोर जैसे लेखकों साहित्यकारों से उनकी घनिष्ठ मित्रता थी। सर आशुतोष मुखर्जी और पंडित मदनमोहन मालवीय ने गज्जर को गुजरात से बाहर जाने का निमंत्रण भेजा; लेकिन सूरत के अपने नेतृत्व कारोबारों की जवाबदारी को नहीं छोड़ सके ।
उन्होंने इन्फ्लूएंजा और प्लेग के लिए पेटेंट दवाओं का विपणन किया और बाजार में दिया ।
बहुभाषी पारिभाषिक कोश का उनका सपना अधूरा रह गया। इस बीच, सन 1897 में मुंबई में रानी विक्टोरिया के पुतले को दामोदर चाफेकर द्वारा तारकोल (डामर) से विकृत कर दिया गया था और कई रसायनज्ञों ने इसे साफ करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ। प्रो गज्जर ने 1898 में ग्लेशियल एसिटिक एसिड, आयोडीन क्लोराइड, क्लोरोनाइट्रस गैस आदि का उपयोग करके इस पुतले को साफ किया। इससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली। देश विदेश के प्रमुख अखबारो मे उनके यह कार्य की बहुत प्रसंशा की थी। मुंबई प्रांत के औद्योगिक विकास में श्री गज्जर जी का योगदान महत्वपूर्ण था। उनकी प्रेरणा से ही 1902 के आसपास वडोदरा में भारत का पहला रासायनिक कारखाना, एलेम्बिक केमिकल वर्क्स शुरू हुआ, जो आज भी फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्र में जारी है।
इस तरह के कार्यो को देखकर वडोदरा के महाराजा कहते थे कि श्री गज्जर जी मेरे मन में बस्ते हे, सख़्ती परिश्रम, अखूट उत्साह और प्रबल इच्छा शक्ति की प्रेरणा मूर्ति याने श्री गज्जर जी उनकी अजायब शक्तिओ पर मुझे गौरव हे। उनकी सलाह से वडोदरा मे वनाॅकुलर अकादमी की रचना की उसमे महाराजा ने बहुत सहयोग किया था। सन 1880 मे स्थापित यह मातृभाषा द्वारा शिक्षा देनेवाली यह संस्था चित्र शाला, शिल्प, ईजनेरी, यंत्र शाला, रसायन, रंग शाला, कृषि, भाषा और शिक्षण शास्त्र जैसे मुख्य विषयों पर सिखाया जाता था। यह संस्था मे अनेक विद्यार्थि रहकर पढ़ाई कर सके उसके लिए गज्जर होल नाम का होस्टल बनाया था।
पिछली जिंदगी उनकी बहुत आर्थिक भींस से गुजर रही थी। यही अर्से में वडोदरा रेल्वे स्टेशन पर मुलाकात महात्मा गांधी जी से हुयी थी। गांधी जी ने कहा कि आपने देश के लिए बहुत कुछ किया है आप अब अपना जीवन शांति से बिताने का प्रयत्न करे।
ऐसे रसायनज्ञ को बारिश वाली रात को तबियत बिगड़ गई तब उनके पुत्र डॉक्टर को लेकर वापस घर आ रहे थे तब बहुत देरी हो चुकी थी। सन 1920 की 16 जुलाई के दिन मुंबई में देश के महान रसायनज्ञ श्री गज्जर जी ने देह त्याग किया था। वो आज भी रसायन विज्ञान और तकनीकी शिक्षा मे प्रसिद्ध है।
संकलनकर्ता - 
मयुरकुमार मिस्त्री 

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