महान योद्धा जस्सा सिंह रामगढ़िया जी
महान योद्धा जस्सा सिंह रामगढ़िया जी को शत शत नमन
मुगलों के सिंहासन को उखाड़ने वाले ओर सनातन धर्म की रक्षा करने वाले वीर महान योद्धा जस्सा सिंह रामगड़िया को शत शत नमन ।। 11 मार्च 1783 को महाराजा जस्सासिह रामगढिया जी ने अपनी तथा अन्य सिख जत्थों की तीस हजार सेना के साथ दिल्ली पर धावा बोल दिया था तथा तत्कालीन मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने दो लाख रुपये नजराना दिया था ।जस्सासिह जी ने लाल किले पर कब्जा कर लिया था तथा जिस ऐतिहासिक पत्थर पर मुगल बादशाहों की ताजपोशी की जाती थी उसे उखाड़ कर ले आये थे तथा वह आज भी स्वर्ण मंदिर अमृतसर में रामगढिया बुगंआ मे रखा हुआ है ।
इस महान योद्धा का जन्म 5 मई 1723 में अमृतसर के पास इच्छोगिल गाँव में हुआ था । इनके पिताजी का नाम भगवान सिंह था । यह मूल रूप से तरखन (बढ़ई, काष्ठकार) जाति के थे जो विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण के अंतर्गत आती है।
जब मुगल शासकों को अपने अधिकार के लिए एक बड़ा खतरा महसूस हुआ, इसलिए उन्होंने रामगढ़ के किले पर अपनी भारी सेना के साथ हमला करना शुरू कर किया। इस रामगढ़ किले पर भी कई बार मुगल सेना ने हमला किया और इसे नष्ट कर दिया लेकिन हर बार एस जस्सा सिंह जी द्वारा इसका पुनर्निर्माण किया गया। सिख पंथ के लिए इस तरह के समर्पण और सेवा के साथ, उन्हें रामगढ़िया अर्थात रामगढ़ किले के निर्माता के रूप में सम्मानित किया गया, जो पूरे सिख पंथ का प्रतीक और सम्मान है। इसलिए वे रामगढ़िया मिसल के संस्थापक जत्थेदार बने और बाद में महाराजा जस्सा सिंह रामगढ़िया कहलाए।
1739 में इन्होंने नादिर शाह को लूट लिया था तथा उसके कब्जे से हजारों बन्धक हिन्दू लडकियों को छुडाया था ।
1748 में उन्होंने राम रोणी नाम से किला बनाया था ।
इन्होंने 1761में पानीपत की तीसरी लडाई जो मराठों तथा अब्दाली के बीच हुई थी मे अब्दाली की सेना को लूट लिया था तथा अब्दाली से करीब 22000 हिन्दू बन्धक लडकियों को छुडाया था । इसके पश्चात उन्होंने अपना क्षेत्र बढाते हुए हिमाचल प्रदेश में कागडा नूरपुर चम्बा दिपालपुर आदि क्षेत्रों को जीत लिया था ।1818में इन्होंने लाहौर पर भी कब्जा कर लिया था ।इनकी रियासत की लम्बाई लगभग दो सौ मील तथा चौडाई लगभग सवा सौ मील थी ।इनकी सेना में लगभग 30000 सैनिक तथा 2000 घुड़सवार थे।
इन्होंने सिखों के छठे गुरू के जन्म स्थान हरगोविन्द पुर को अपनी राजधानी बनायी ।
आज मोरीगेट तथा पुलमिठाई जैसे न ई दिल्ली में नामकरण भी उनके कारण किये गये ।जहाँ तीसहजार सेना रूकी थी उसका नाम तीसहजारी कोर्ट है ।जहां से मोरी बनाकर लालकिले पर हमला किया था उसका नाम मोरी गेट है जहाँ विजय की मिठाई बाँटी थी उसका नाम पुल मिठाई है ।
रामगढ़ का किला बनाने के कारण इनका नाम जस्सासिह रामगढिया पड़ा तथा आगे इनके वंशजो ने यही सरनेम अपनाया ।
20 अप्रैल 1803 को इस महान योद्धा ने अंतिम सांस ली ।
दिल्ली सिख गुरूद्वारा कमेटी ने इनकी सत्तर फुट ऊँची मूर्ति दिल्ली में लगवाने का निर्णय लिया था जो शायद लग चुकी होगी ।
हमे इस अनूठे महान अद्वितीय योद्धा पर गर्व होना चाहिए तथा ग्यारह मार्च को शौर्य दिवस के रूप में मनाना चाहिए । बीस अप्रैल को उनकी पुण्यतिथि मनानी चाहिए और 5 मई को उस वीर महान योद्धा की जन्म जयंती मनानी चाहिये।
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