श्री देवतणखीजी और लीरलबाई का जीवन चरित्र
श्री देवतणखीजी और लीरलबाई का जीवन चरित्र
प्रस्तावना
हमारे भारत देश में कई संत महात्मा हो गए, भारतीय संस्कृति ऋषि, मुनि, संत, स्वामी, सती, साधु, महात्मा जैसे कई महान विभूतियों की बनी धरोहर है। हमारा गुजरात भी इसी संस्कृति का अहम हिस्सा है। यहा गुजरात के सौराष्ट्र प्रदेश की भूमि संत महात्मा ओ की भूमि से प्रचलित है। हमारे विश्वकर्मा समाज में बहुत सारे संत महात्मा हो चुके हैं, उनमे से आज विश्वकर्मा लोहार समाज के संत शिरोमणि श्री देवतणखी दादा और लिरलबाई के जीवन चरित्र के बारे में यह ग्रंथ लिखा गया है। यह ग्रंथ को संत महात्मा और वरिष्ठ जनों के अनुभव द्वारा तमाम विवरण का अभ्यास कर और बहुत सारी पुरातन पुस्तकों के आधार और मह्त्वपूर्ण प्रमाणो के साथ यह जीवन चरित्र समाज को समर्पित कर रहे हैं। यह ग्रंथ में कोई क्षति भूल या व्याकरण भूल हो गई हो तो क्षमा करे क्यूंकि मनुष्य मात्र भूल के पात्र इसीलिए उन्हें सुधार करने की तक देनी चाहिए। हालाकि यह जीवन चरित्र मे छोटे से छोटी भूल को सुधारने की कोशिश की गई है, हरएक चरित्र और नामकरण को पाने के लिए हमने बहुत ही संघर्ष किया है जिसका पुख्ता प्रमाण मिलने पर ही इतिहास के रूप में प्रगट कर समाज को सप्रेम भेट के स्वरुप में अर्पण करते हैं। यह जीवन चरित्र की विगत को प्राप्त करने के लिए श्री गोकलभाई राघवभाई सोलंकी (मोटी मारडवाले) ने बहुत मेहनत की है हम उनके बहुत बहुत आभार मानते हैं और गुजराती भाषा में लिखावट करने के लिए गोकलभाई के गुरुजी बावालाल करशनदास जी ने बड़े उत्साह से भजन बनाकर अर्पण किए हैं। निस्वार्थ भावना से गुजराती भाषा में इतिहास लिखने के लिए बड़े उत्साह को समाज की सेवा में प्रस्तुत किया है, उनके यह कार्य को हम अन्तर भाव से आभारी हैं उनके अंदर सच्ची साधुता और संत हृदय हे। गिरनार पर्वत की छत्रछाया मे मांडवा गांव में रहते हैं उन्होंने बहुत लगनी द्वारा यह गुजराती भाषा में जीवन चरित्र को लिखने में तन मन से कार्य किया है उनके हम आभारी हैं।
बोखिरा का इतिहास
गुजरात के पोरबंदर शहर में बोखिरा गांव है। वहा पर संत शिरोमणी श्री देवतणखी दादा का बड़ा सुशोभित और भव्य मंदिर है। पोरबंदर और आसपास के समाज बंधुओं के साथ सहयोग द्वारा मंदिर बना हुआ है। वहा की लोक कथाओं से वहा पर समाधि बनाई गई है और बहुत सालो पुरानी समाधि थी उनका पुनरुद्धार किया है एक समय में वीराजी जब बोखिरा गांव से निकलकर गिरनार जाते हैं तब उनके पडोसी भक्त जोधाजी उनको थोड़े दूर तक छोड़ने जाते हैं तब उनसे वचन माँगा था कि हे भक्त वीराजी! कभी हमे दर्शन देने के लिए जरूर पधारे इतना वचन दीजिए तब वीराजी वचन देते हैं कि एक बार जरूर आपसे मिलने आऊंगा। यह आधार पर देवतणखी जी मजेवडी मे समाधि लेते हैं तभी जोधामेरजी को दर्शन देते हैं उनको वहीं मिलते हैं।और खबर अन्तर पूछते हैं और थोड़ा समय उनके साथ बिताकर वीरा जी सत्संग करते हैं साथ ही सत्संग की महिमा बताते हैं। बाद में वह वहा से प्रस्थान करते हैं। तब जोधामेर को दूसरे दिन पता चलता है कि जो वीराजी उनको मिलने आए थे उन्होंने दो दिन पहले ही समाधि ली है। और उन्हें दर्शन दिए थे जोधामेर धन्य धन्य हो जाता है बाद में जोधामेर ने जहा वीराजी मिलने और सत्संग करने आए थे उस पवित्र जगह पर खेत में झोपड़ी थी वो जगह स्मारक बनाकर स्थापना की है। और उनको देव समान पूजते थे। वहीं जगह पर आज मंदिर बंधा हुआ है। यहा कभी जाओ तो जरूर दर्शन का लाभ लेना चाहिए। अपने समाज के उद्धारक संत देवतणखी दादा और योगमाया रुपी लिरलबाई के चरणों में लाख लाख वंदन हो।
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