देवताओं के पुरोहित आचार्य विश्वरूप

देवताओं के पुरोहित आचार्य विश्वरूप
भृगुकुल उत्पन्न त्वष्टा विश्वकर्मा के पुत्र देवताओं के पुरोहित विश्वरूप के प्रकट दिवस (वैशाख मास शुक्ल पक्ष द्वितीया) पर सभी सनातनियों को शुभकामनाएँ। 
मित्रों एवं महानुभावों, भृगुकुल उत्पन्न त्वष्टा विश्वकर्मा के पुत्र देवताओं के पुरोहित विश्वरूप जी थे जिनका एक नाम त्रिशिरा विश्वरूप भी था। वह तीन सिरों वाले थे जिस कारण उनका नाम त्रिशिरा भी पड़ा। एक समय देवताओं के गुरु बृहस्पति जी देवताओं से रुष्ट होकर आचार्य पुरोहित का पद त्यागकर जब स्वर्गलोक से चले गये थे तब सब देवताओं ने परम तेजस्वी परम तपस्वी विद्वान भृगुकुल में उत्पन्न त्वष्टा विश्वकर्मा के पुत्र विश्वरूप जी को पुरोहित आचार्य बनाया। एक समय विश्वरूप एवं देवताओं के राजा इंद्र से विवाद होने पर देवराज इंद्र ने छल से विश्वरूप जी की हत्या कर दी जिस कारण देवराज इंद्र को ब्रह्महत्या लगी और इंद्र ने उसका प्रायश्चित भी किया। निम्न सभी प्रमाणों से हम यह सिद्ध करेंगे कि भृगुकुल उत्पन्न त्वष्टा विश्वकर्मा के पुत्र विश्वरूप जी देवताओं के आचार्य पुरोहित थे।  

काश्यपस्य ततो जज्ञे दित्यां दनुरिति स्मृतः ।
कन्या रूपवती नाम धात्रे तां प्रददौ पिता ॥ ३,९.३ ॥
तस्याः पुत्रस्ततो जातो विश्वरूपो महाद्युतिः ।
नारायणपरो नित्यं वेदवेदाङ्गपारगः ॥ ३,९.४ ॥
    - (ब्रह्माण्डपुराणम्/उत्तरभागः/अध्यायः ९ श्लोक - ३-४)
अर्थात - बृहस्पतिजी ने कहा-काश्यप मुनि की पत्नी दिति में दनु नाम वाली कन्या ने जन्म ग्रहण किया था। वह कन्या रूपवती थी पिता ने उसको धाता को दो थी । उसका पुत्र फिर महती यति वाला विश्व रूप उत्पन्न हुआ था वह भगवान नारायण में ही परायण था तथा वेद बेदाङ्गों का पारगामी विद्वान था।
पुरीं पुरोधसा हीनां वीक्ष्य चिन्ताकुलात्मना ।
भवता सह देवैस्तु पौरोहित्यार्थमादरात् ॥ ३,९.११ ॥
प्रार्थितो विश्वरूपस्तु बभूव तपतां वरः ।
स्वस्रीयो दानवानां तु देवानां च पुरोहितः ॥ ३,९.१२ ॥
  - (ब्रह्माण्डपुराणम्/उत्तरभागः/अध्यायः ९, श्लोक-११-१२)
अर्थात - चिन्ता से विकल पुरोहितजी ने हीन पुरी का अवलोकन करके आपके द्वारा देवों के सहित बड़े ही आदर से पोरोहित्य कर्म के लिए विश्वरूप जी से प्रार्थना की गयी थी ।तापसों में श्रेष्ठ विश्वरूप से जब प्रार्थना की गयी थी तो वह दानवों के तो बहन के पुत्र थे और देवों के पुरोहित थे |

जयन्त्यां देवयानी तु शुक्रस्य दुहिताभवत् ।
त्रिशिरा विश्वरूपस्तु त्वष्टुः पुत्रोऽभवन्महान् ॥ २,१.८६ ॥
यशोधरायामुत्पन्नो वैरोचन्यां महायशाः ।
विश्वरूपानुजश्चैव विश्वकर्मा च यः स्मृतः ॥ २,१.८७
    (ब्रह्माण्डपुराणम्/मध्यभागः/अध्यायः १ /२,१.८६-२,१.८७)

एवं वरूत्रिणः पुत्रा इन्द्रेण निहताः पुरा।
यजन्यां देवयानी च शुक्रस्य दुहिताऽभवत् ।। ४.८४ ।।
त्रिशिरा विश्वरूपस्तु त्वष्टुः पुत्रोऽभवन्महान्।
विश्वरूपानुजश्चापि विश्वकर्मा यमः स्मृतः ।। ४.८५
 - (वायुपुराणम्/उत्तरार्धम्/अध्यायः ४/८४-८५)

विश्वरूपो वै त्वाष्ट्रः पुरोहितो देवानामासीत्स्वस्रीयोऽसुराणाम्
स प्रत्यक्षं देवेभ्यो भागमददत्परोक्षमसुरेभ्यः ॥१७॥
   - (महाभारतम्-१२-शांतिपर्व-३५१ श्लोक - १७) 

वाशिष्ठेषु काश्यपेषु तथा भग्वंगिरोऽत्रिषु ।
पञ्चस्वेतेषु जायन्ते गोत्रेषु ब्रह्मवादिनः ।।२४।।
क्रतोः पुत्रा वालखिल्या भृगोः शुक्रः सुतोऽभवत् ।
त्वष्टा वरूत्री शण्डश्चाऽमर्कश्चेति कवेः सुताः ।।२५।।
यजन्यां देवयानी च शुक्रस्य दुहिताऽ भवत्। ।
त्रिशिरा विश्वरूपस्तु त्वष्टुः पुत्रोऽभवन्महान् ।। २६।।
यशोधरायामुत्पन्नो विश्वकर्माऽनुजः सुतः ।
प्रचेतसश्च्यवनोऽभूत् च्यावनेयास्ततो मताः ।। २७।।
    - (लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः १ (कृतयुगसन्तानः)/अध्यायः २१३/श्लोक - २४ से २७)

उपर्युक्त ,सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि भृगुकुल उत्पन्न त्वष्टा विश्वकर्मा के पुत्र विश्वरूप जी देवताओं के आचार्य पुरोहित थे और इंद्र ने उनकी छल से हत्या की और उनके ब्राह्मण कुल होने के कारण इंद्र को ब्रह्महत्या भी लगी और उन्होंने प्रायश्चित भी किया। 

     - पं.संतोष आचार्य

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