विश्वकर्मा श्लोक 1
*दाक्षिण्यं स्वजने, दया परजने, शाट्यं सदा दुर्जने*
*प्रीतिः साधुजने, नयो नृपजने, विद्वज्जनेऽप्यार्जवम् ।*
*शौर्यं शत्रुजने, क्षमा गुरुजने, नारीजने धूर्तता*
*ये चैवं पुरुषाः कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः ॥ [22]*
(भर्तृहरि नीति शतक श्लोक २२ )
अपनों के प्रति कर्त्तव्य परायणता और दायित्व का निर्वाह करना, अपरिचितों के प्रति दयालुता का भाव रखना, दुष्टों से सदा सावधानी बरतना, अच्छे लोगों के साथ अच्छाई से पेश आना, राजाओं से व्यव्हार कुशलता से पेश आना, विद्वानों के साथ सच्चाई से पेश आना, शत्रुओं से बहादुरी से पेश आना, गुरुजनों से नम्रता से पेश आना, महिलाओं के साथ के साथ समझदारी से पेश आना ; इन गुणों या ऐसे गुणों में माहिर लोगों पर ही सामाजिक प्रतिष्ठा निर्भर करती है।
*विश्वकर्मा साहित्य भारत*
Comments
Post a Comment