कब मिलेगा प्रभु विश्वकर्माजी को सम्मान


कब मिलेगा प्रभु विश्वकर्माजी को सम्मान
यहा तो विश्वकर्मा वंशी सम्मान के लिए एक दूसरे के विरोधाभास होते रहते हैं। कभी साहित्यिक, कभी राजनैतिक, कभी लिखित, कभी मंच पर, कभी संस्थाकीय, तो कभी पंथ के आवेश (बातों) में आकर खुद को सही (बात को) ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। खुद के सम्मान के लिए इतना सोचा जा रहा है लेकिन कभी सोचा है जिनके हम वंश से हे और उनकी वंश परंपरागत संस्कृति हमारे रग रग मे हे क्या हमने सही मायने में हमारे आराध्य देव (इस्टदेव) भगवान विश्वकर्मा जी को सम्मान देने के लिए सोचा ही नहीं।
सम्मान विश्वकर्माजी का मंदिर धर्मशालाएं या मेरेज हॉल या शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण से वंश को फायदा और सुविधा उपलब्ध होती है। सही अर्थों में हवन, अनुष्ठान, विश्वकर्मा तिथि पर्व, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्वकर्मा प्रभु ने भारत में जहा जहा निर्माण किए वह सभी जगहो पर  विश्वकर्मा जी का शिलालेख या स्थान परिचय का आधार पहचान होना चाहिए जो कहीं भी नहीं है न इन्द्रप्रस्थ, काशी के विश्वकर्मणेश्वर लिंग स्थान, न वृंदावन। न सुदामापुरी, और न रामसेतु, और न ही द्वारिकापुरी मे कोई भी स्थान पर कोई उल्लेख नहीं मिलता है क्या समाज के वर्गों संस्थानों को यह ध्यान नहीं दिया गया है।

जब हमारे शिलालेखों को अन्य समाज या विदेशी प्रत्यक्ष नहीं होगा तब तक हमारे समाज को पहचान नहीं मिलेगी।  बहुत से कर्मष्ठ समाजसेवी ज्ञानीजन हमारे समाज में मौजूद है। मेरे विचार समाज के उत्तम प्रतिष्ठा और प्रभु विश्वकर्मा जी को सही सम्मान विश्व कक्षा पर प्राप्त हो सके।
धन्यवाद।
लेखक - मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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