विश्वकर्मिय ध्वज आरोहण पूजा विधान

विश्वकर्मिय ध्वज आरोहण पूजा विधान
हिंदू धर्म और अपने विश्वकर्मा समाज में घर और मंदिर की छत या शिखर पर ध्वज लगाने को शुभ और असरदायक माना जाता है। यह ध्वज कई कारणों से लगाया जाता है। हालांकि वास्तु - ज्योतिष के अनुसार ध्वज लगाने के कारण और उनके लाभ अलग-अलग हैं। भारत की सनातन संस्कृति की धरोहर का सांस्कृतिक दूत है। आदि काल से वैदिक संस्कृति, सनातन संस्कृति, हिंदू संस्कृति, आर्य संस्कृति, भारतीय संस्कृति एक दूसरे के पर्याय हैं जिसमें समस्त मांगलिक कार्यों के प्रारंभ करते समय उत्सवों में, पर्वों में, घरों-मंदिरों-देवालयों-वृक्षों, रथों-वाहनों पर विश्वकर्मा ध्वज की पताकाएं फहराई जाती रही हैं।

परंपरागत रूप से, विश्वकर्मा ध्वज पांच रंगों में वर्णित आते हैं। पांच रंग पांच तत्वों और पांच शुद्ध रोशनी का प्रतिनिधित्व करते हैं । ध्वज का माप 72 इंच चौड़ाई और 33 इंच लंबाई का शास्त्रोक्त माप है।  विशिष्ट परंपराओं, उद्देश्यों और साधना के लिए विभिन्न तत्व अलग-अलग रंगों से जुड़े होते हैं ।  सफेद रंग शांति और शुद्ध हवा का प्रतीक है जो विश्वकर्मा प्रथम पुत्र मनु उनका कर्म लोहकमॅ का प्रतीक है, साथ में ध्वज मे अंकित है कि त्रिकोणकार चिह्न ये मनु के लिए यज्ञ कुंड का प्रतीक है। 
नीला आकाश और अंतरिक्ष का प्रतीक है, जो विश्वकर्मा द्वितीय पुत्र मय उनका कर्म काष्ठकमॅ का प्रतीक है, साथ में ध्वज मे अंकित है कि चोरसाकार चिह्न ये मय के लिए यज्ञ कुंड का प्रतीक है। लाल आग और पवित्रता का प्रतीक है, जो विश्वकर्मा तृतिय पुत्र त्वष्टा उनका कर्म  ताम्रकमॅ का प्रतीक है, साथ में ध्वज मे अंकित है कि गोलाकार चिह्न ये त्वष्टा के लिए यज्ञ कुंड का प्रतीक है। साथ ही इस लाल रंग के पट्टे पर मध्य भाग में ॐ वर्णित किया गया है जो परब्रह्म विराट विश्वकर्मा का स्वरुप है।  हरा रंग पानी, धान्य, और धरती का प्रतीक है, जो विश्वकर्मा चतुर्थ पुत्र शिल्पी उनका कर्म शिल्पकमॅ का प्रतीक है, साथ में ध्वज मे अंकित है कि षट्कोणाकार चिह्न ये शिल्पी के लिए यज्ञ कुंड का प्रतीक है। और अंतिम रंग पीला जो पृथ्वी, पीताम्बर वस्त्र और सुवर्ण का प्रतीक है। जो विश्वकर्मा पंचम पुत्र दैवज्ञ उनका कर्म सुवर्णकमॅ का प्रतीक है, साथ में ध्वज मे अंकित है कि अष्टकोणाकार चिह्न ये दैवज्ञ के लिए यज्ञ कुंड का प्रतीक है। 
यही पांच तत्वों के संतुलन से समाज और वंश मे स्वास्थ्य और सद्भाव उत्पन्न होता है। ऊँचे पवित्र स्थानों पर ध्वजा को लहराने से ध्वजा पर दर्शाए गए चिन्हित ॐकार के आशीर्वाद को सभी जीव - प्राणियों तक पहुँचेगा । जैसे ही हवा ध्वजा की सतह से गुजरती है, जो हवा की थोड़ी सी भी गति के प्रति संवेदनशील होती है, मंत्रों द्वारा हवा को शुद्ध और पवित्र किया जाता है।

ध्वजारोहण करने वाले व्यक्ति के लिए मंत्रों के अलावा सौभाग्य की लंबी आयु की प्रार्थना अक्सर शामिल की जाती है।
ध्वज की प्रार्थना ब्रह्मांड का एक स्थायी हिस्सा बन जाती है। पारंपरिक मान्यता के अनुसार, क्योंकि विश्वकर्मा प्रभु के ध्वज पर प्रतीक और मंत्र पवित्र हैं, उन्हें सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। उन्हें जमीन पर नहीं रखना चाहिए या आम कपड़ों की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।ध्वजा को विजय और सकारात्मकता ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
वास्तु के अनुसार भी ध्वजा को शुभता का प्रतीक माना गया है। माना जाता है कि घर पर ध्वजा लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश तो होता ही है साथ ही घर को बुरी नजर भी नहीं लगती है।
ज्योतिष के अनुसार राहु को रोग, शोक व दोष का कारक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि घर के उत्तर पश्चिम में ध्वजा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर की सुख व समृद्धि बढ़ती है।

ध्वजारोहण के लिए पहले सुंदर ऊपर वर्णित ध्वजा का निर्माण कराए। फिर शुभ मुहुर्त मे सुबह के समय ध्वजा को मंदिर पर चढ़नी चाहिए। मंदिर में स्थापित भगवान विश्वकर्मा जी को ध्वजा सर्व प्रथम अर्पित करे। विश्वकर्मा प्रभु का पूजन करें। ध्वजा मे विश्वकर्मा ब्राम्हण द्वारा स्वस्तिवाचन या ॐकार की पूजा कराए। बाद में वाद्य आदि बजाकर सम्मान के साथ मंदिर के शिखर पर आरोहण करे। हो सके तो विश्वकर्मा प्रभु के यज्ञ में उस समय 108 आहुति द्वारा विश्वकर्मा जी का बीज मंत्र का आह्वान कर आहुतियां देनी चाहिए। विश्वकर्मा ब्राम्हण को वस्त्र दक्षिणा देकर स्वरुचि भोजन कराए। 
इसके बाद ध्वजा का पंचोपचार रोली चावल धूप दिप नैवेद्य पुष्प से पूजन करे।

*अधो दिशा में पंचवर्णी ध्वजा लगाये* 
विजया पंचवर्णाभा, पंचवर्णमिदं ध्वजम्। धृत्वा जयाय श्रीवेद्या-मूध्र्वायां दिशि तिष्ठतु।

*ध्वजा का मंत्र*
॥ ओम् नमोस्तुते ध्वजाय सकल भुवन जनहिताय विभव सहित विमल चरित बोधकाय मंगलाय ते
सततम् ॥

*श्री विश्वकर्मा प्रभुजी का बीज मंत्र*
।। ॐ ऐं ॐ नमो भगवते विश्वकर्मणे मेधां मे देहि स्वाहा  ૐ ।।

*श्री विश्वकर्मा प्रभुजी का गायत्री मंत्र*
।। ॐ सर्वरूपाय विद्महे विश्वकर्मणे धीमहि तन्नो परब्रह्म प्रचोदयात ।।

*महर्षि मनु का बीज मंत्र*
।। ॐ ह्रीं ॐ नमो भगवते मनवे मेधां मे देहि स्वाहा ॐ ।।

*महर्षि मय का बीज मंत्र*
।। ॐ श्रीं ॐ नमो भगवते मयाय मेधां मे देहि स्वाहा ॐ ।।

*महर्षि त्वष्टा का बीज मंत्र*
।। ॐ क्ली ॐ नमो भगवते त्वष्ट्रे मेधां मे देहि स्वाहा ॐ ।।

*महर्षि शिल्पी का बीज मंत्र*
।। ॐ क्रों ॐ नमो भगवते शिल्पीने मेधां मे देहि स्वाहा ॐ ।।

*महर्षि देवज्ञ का बीज मंत्र*
।।ॐ आं ॐ नमो भगवते तक्ष्णे मेधां मे देहि स्वाहा ॐ ।।

विश्वकर्मा प्रभु के 108 नामों का जाप और यज्ञ आहुति अर्पण करे।

*ध्वजादंड आरोहण की पूजन विधि*
*ध्वजारोहण विधि*
अथ पंचमः परिच्छेदः अथातो ध्वजारोहणविधानम् ।। 
अब ध्वजारोहण विधि कहते हैं -

*अनुष्टुपछंदः- अथांकुराच्चतुर्थेन्हि, ध्वजारोहणसिद्धये । विदध्याद्विधिवच्छक्रो, बृहच्छान्तिकसंविधिम् ।। 1 ।।*
*ध्वजप्रतिष्ठां निष्ठाप्य, भूत्या पुरि विहार्य च । ध्वजमारोपयेद्दंडे, सुलग्ने विधिवत्सुधीः ।। 2।।*
*बृहच्छांतिविधेः सर्वं, लक्षणं ध्वजदंडयोः । तत्प्रतिष्ठाक्रमश्चूर्णौ, प्रयोगे वर्णयिष्यते ।। 3 ।।*
*प्रायशोऽत्र मया तत्तल्लक्षणं विध्यनुक्रमः । प्रयोगे वर्णयिष्येते, काले तत्स्मृतये स्फुटम् ।। 4।।*

ध्वजारोहण विधि करने के लिए इन्द्र-प्रतिष्ठाचार्य विधिवत् बृहत् शांतिक विधि करे। ध्वज की प्रतिष्ठा करके वैभव के साथ उसकी नगर में शोभायात्रा निकालें, पुनः अच्छे लग्न मुहूर्त में विधिपूर्वक वह विद्वान् ध्वजदण्ड पर ध्वजा को चढ़ावें। बृहत् शांतिविधि का लक्षण, ध्वज और दण्ड की प्रतिष्ठा का प्रयोग विधि में वर्णित करे । 

*कन्याभिः कारयेद्वेदी-लेपनं गव्यगोमयैः । क्षीरद्रुमत्वक्कषाय-कलितैर्भूम्यपातिभिः ।। 5 ।।*

क्षीरवृक्ष आदि की छाल का काढ़ा, भूमि में न गिरे ऐसा गोबर या पीली मिट्टी आदि द्रव्य से कुमारिकाओं द्वारा वेदी का लेपन करावें।  

अब क्षेत्रपाल अर्चना और वास्तुदेव अर्चना करें, अनंतर वायुकुमार, मेघकुमार, अग्निकुमार की अर्चना पूर्वक भूमिशोधन करें, पुनः नागतर्पण, दर्भन्यास और भूमि अर्चन विधि करे। 

सप्त ऋषि, बारह आदित्य, पांच महाभूत, आठ वसु, विद्यादेवी, यक्षिणी, इन्द्र और दिशाओं में दिक्पालों की वज्र के अग्रभाग में यक्ष और सोम नवग्रह और ग्रहमंडल सभी देवी देवताओ का आह्वान करे ।सबको मंत्ररूप से स्थापित करके सर्वविघ्न दूर करने के लिए शांति मंत्र से आराधना करें। 

*ॐ परब्रह्मणे नमो नमः स्वस्ति स्वस्ति जीव जीव नंद नंद वद्र्धस्व वद्र्धस्व विजयस्व विजयस्व अनुशाधि अनुशाधि पुनीहि पुनीहि पुण्याहं पुण्याहं मांगल्यं मांगल्यं पुष्पांजलिः* पुष्प अर्पित करे ।

*शब्दब्रह्मावर्जनं, परब्रह्माधिवासनं, पंचपरमेष्ठिपूजनं, मंगललोकोत्तमशरणाघ्र्यप्रदानं, धर्मपूजां च अनादिसिद्धमंत्रेण पुष्पजपं विदध्यात् ।।* 
अनन्तर शब्द ब्रह्म पूजा, परब्रह्म की अधिवासना, पंचपरमेष्ठी पूजा, मंगल, लोकोत्तम और शरण को अघ्र्य देना, धर्मपूजा और अनादिसिद्धमंत्र से पुष्पों द्वारा जाप करें।

*अथ ध्वजारोहणविधिः*

*ॐ* 
ध्वजा के सन्मुख नव कलश स्थापित करें। उन कलशों में सर्वोषधि डालें, अमृतमंत्र से अभिमंत्रित जलयात्रा विधि से लाये गये तीर्थ के जल को भरें।

गंध, अक्षत, पुष्प, फल और मंगलद्रव्य, उपकरण आदि पास में रखकर महाध्वज के सामने अर्पित करें और पूजा करें। इस महाध्वज को सजाकर शहर में बड़े वैभव के साथ जुलूस निकालें। 

*श्रीमद्विमानाभिमुखं ध्वजस्थं। यक्षं प्रसूनांजलिभिः समंत्रम्।*
*आहूय संस्थाप्य च संनिधाप्य। प्रसादये दिक्पतिदिक्कुमारीः।।2।।*
*ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्षसहिताः सर्वध्वजदेवताः! आगच्छत आगच्छत संवौषट् ।*
*ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्षसहिताः सर्वध्वजदेवताः! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः ।*
*ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्षसहिताः सर्वध्वजदेवताः! अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट् ।।*

 *नवकलश स्थापना विधि* 
जयकारा बोलकर कलश स्थापित करें। इन कलश के पास मंगल-द्रव्य आदि स्थापित करें पुनः आगे लिखित ‘ॐ हां ह्रीं हूं ’ आदि मंत्र पढ़ते हुए उन कलश में जल डालें। ‘ॐ ह्रीं स्वस्तये’ मंत्र बोलकर कलश को स्थापित करने हेतु उन पर पुष्पांजलि छोड़ें। प्रभु विश्वकर्मा के बीज मंत्र बोलकर कलश को अघ्र्य चढ़ावें।

*ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र: कलश को स्थापित करें।* 

महाध्वज का मंगल जुलूस
महाध्वज को शहर में घुमाने के लिए पालखी या पवित्र वस्तु के द्वारा सम्मान सहित उठाए । जुलूस से शहर में घुमाकर जहां ध्वज स्थापना करना है वहां लाकर ध्वज दण्ड का पंचामृत अभिषेक करना है।

*ध्वजदंडशुद्धि एवं दर्भमाला*
आगे का श्लोक व मंत्र बोलकर जल से ध्वजदंड की शुद्धि करके उसमें दर्भ की माला पहनाए ।

*समंततः श्रीध्वजदंडमग्य्रं, प्रक्षाल्य सर्वौषधिमिश्रवार्भिः।*
*अश्वत्थकंकेलिदलौघभाजा, दर्भस्रजैनं परिवेष्टयामि।।11।।*

*ॐ नमोः विश्वकर्मण्ये श्रीमत्पवित्रजलेन ध्वजदंडशुद्धिं करोमि स्वाहा ।।* संप्रोक्षणं।। 
ध्वजदंड पर जल डालें 
*ॐ ह्रीं दर्पमथनाय नमः स्वाहा ।* *दर्भमालावेष्टनम् ।।* 
डाभ की माला पहनाएं । 

*ध्वजदंड का पंचामृत अभिषेक*
आगे का श्लोक पढ़कर अनादिसिद्धमंत्र द्वारा ध्वजदंड का पंचामृत अभिषेक करें।
*ज्ञानशक्तिमयीं मत्वा, ध्वजदंडाग्रचूलिकां। अनादिसिद्धमंत्रेण, पंचभिः स्नापयेऽमृतैः ।। 13 ।।*
*ॐ ह्रीं शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।*

*ध्वजारोहण मंत्र*
आगे श्लोक बोलकर व मंत्र बोलकर बाजे बजाते हुए शुभ मुहूर्त में ध्वजारोहण करें। यहां ध्वजदण्ड मे ध्वज विशेष प्रतीक और संकल्प है।

*रत्नत्रयात्मकतयाभिमतेऽत्र दंडे, लोकत्रयप्रकृतकेवलबोधरूपम्।*
*संकल्प्य पूजितमिदं ध्वजमच्र्य लग्ने, स्वारोपयामि सति मंगलवाद्यघोषे।।*
*ॐ नमोः विश्वकर्मणे स्वस्ति भवतु। सर्वलोकशांतिर्भवतु स्वाहा ।*


इति ध्वजारोहणविधानम्।। यह ध्वजारोहण विधि पूर्ण हुई।

इस ध्वजारोहण विधि को करके इसके बाद स्नान करके जो वस्त्र-अलंकार आदि से सुसज्जित हैं, ऐसी कुमारी कन्याओं द्वारा मूलवेदी और उत्तरवेदी को सम्मार्जित कराके मंत्रों द्वारा प्रोक्षणविधि करके पवित्र मिट्टी, गोमय से क्षीरवृक्ष के चूर्ण या क्वाथ से वेदी का लेपन करावें, पुनः द्वार पर तोरण बांधें, मंगलघट तथा चंदोवा आदि से उन-उन कार्यों में कुशल व्यक्तियों द्वारा मंडप को सजावें।
ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः। प्रोक्षणजलाभिमंत्रणम्
इस मंत्र से वेदी पर जल छिड़कें
इति वेदीलेपविधानम्।।

संकलनकर्ता लेखक -
मयुरकुमार मिस्त्री (मोड़ासा)
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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