प्रयास मे छुपी हे सफलता

प्रयास मे छुपी है सफलता
सुमन्तपुर मे राजा लाखवीर का राज्य शासन था। सुमन्तपुर की सरहद के पास सुखदास नाम का एक शिल्पी रहता था। वह शिल्पकला मे अत्यंत निपुण कारीगर था। सुंदर, कलात्मक एवं भव्य मूर्तिओ का सृजन किया करता था। एक दिन राजा लाखवीर वहा से गुजर रहे थे उन्होंने यह मूर्ति और शिल्पकला को देखकर बहुत मुग्ध हो गए। उन्होंने अपना रथ रोककर मूर्तिकार सुखदास को मिलने गए। उन्होंने शिल्पकार से खुद की मूर्ति बनाने का आदेश दिया। शिल्पकार सुखदास ने उनकी मूर्ति बनाने का काम शुरू किया। मूर्ति बनाते वक़्त जो कल्पना थी उस हिसाब से मूर्ति बन नहीं रही थी। उसने अनेक बार प्रयास किया लेकिन राजा लाखवीर की मूर्ति को सुंदरता नहीं दे पाए थे। इसीलिए वो हिम्मत हार के बाजू में निराशा से बैठ गया। इतने में उसकी नजर एक चीटि पर पडी। वो गेहू का दाना लेकर दीवार पर चढ़ने का प्रयास कर रही थी। चीटि ने अपना प्रयास जारी रखा और गेहू का दाना लेकर दीवार पर चढ़ने मे सफल हुयी। शिल्पकार सुखदास ने यह देखकर मन में विचार किया कि बारंबार प्रयास करने से सफलता जरूर मिलती है। निरंतर प्रयास करने से एक छोटी सी चीटि को भी सफलता मिल सकती है तो मुझे क्यु नहीं मिल सकती है। उसने अपना आत्मविश्वास पुनः प्राप्त किया और मूर्ति बनाने मे उसने सफलता प्राप्त की यह मूर्ति देखकर राजा लाखवीर ने राज सभा में उनका भव्य सम्मान किया और राज शिल्पी का पदाधिकारी घोषित किया गया।
मित्रों, हम अपने विश्वकर्मा समाज में अनेक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं और देखते हैं कि हर संस्था का उद्देश्य सामाजिक विकास की दिशा में ले जा रहा है। समाज के कुछ मुख्य कार्य में सफलता प्राप्त नहीं भी हुयी है क्या उस प्रयास को एकजुटता दिखाकर हांसिल कर सकते हैं जैसे कि जाती जनगणना, आपसी विवाह, एकता, राजनीतिक हिस्सेदारी और अन्य अन्य महत्वपूर्ण कार्यो को गति दे सकते हैं।
लेखक - मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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