वसुगण और वसु यज्ञ विधान
ब्रह्मा के पुत्र मारीची हुए। मरीचि के पुत्र कश्यप हुई कश्यप से हिरण्यकशिपु और उससे प्रहलाद नामक पुत्र हुआ प्रह्लाद का पुत्र विरेचन नाम से प्रसिद्ध हुआ, और विरेचन की बहन जननी कहीं गई इस प्रकार दीती के पुत्र हिरण्यकशिपु की पौत्री हुई वही कन्या जननी विश्वकर्मा की पत्नी और प्रहलादी भी कहीं जाती है। इसके बाद महर्षि मारीचि की सुंदरी कन्या जिनका नाम सुरुपा था। महर्षि अंगिरा की पत्नी हुई और वृहस्पति की मां बनी। बृहस्पति की बहन ब्रह्मवादिनी भुवना था और वह वसुओं में से आठवें अर्थात प्रभास की पत्नी हुई। उसी ने समस्त शिल्पी ओके अगुआ विश्वकर्मा को पैदा किया और वही विश्वकर्मा देवताओं के बढ़ई नाम के त्वष्टा हुए।
सन्दर्भ -
(१) साम्ब पुराण अध्याय १०
(२) भविष्य पुराण १.७६.१०-२२ अ. इस अध्याय के ४ब- १७ श्लोकों तथा १८ - २० श्लोको को स्कंद पुराण (प्रभास खंड) ७.६२-७५ तथा ७७-८८ अ.
अष्टम वसु "प्रभास" ( विश्वकर्मा के पिता ) तथा अन्य वसुओं के भी अंश तथा गंगा जी के गर्भ से देवव्रत (भीष्म पितामह) उत्पन्न हुए।
इस प्रकार भीष्म पितामह प्रजापति विश्वकर्मा के छोटे भाई हुए। ये महापराक्रमी तथा अत्यन्त यशस्वी थे।
( महाभारत १/८३/९१)
पाण्डु एवं कुन्ती -पुत्र युधिष्ठिर भी धर्म (धर्मराज) के अंश से उत्पन्न हुए। ये भी विश्वकर्मा के दौहित्र पुत्र थे।
( महाभारत १/६३/११६)
यज्ञ कर्म का अनुष्ठान होते समय प्रज्वलित अग्नि (अनल) से धृष्टद्युम्न का जन्म हुआ। अग्नि वसु विश्वकर्मा के चाचा है।
अत: धृष्टद्युम्न भी चचेरे भाई यज्ञ की वेदी से हुए।
( महाभारत १/६३/१०९ )
(वाल्मीकि रामायण २/१००/१४)
अष्टम वसु अनिल (वायु) के अंश से भीम उत्पन्न हुए। अनिल विश्वकर्मा जी के सगे चाचा हे। भीम और हनुमान आपस में विश्वकर्मा जी के चचेरे भाई भी हुए।
स्कंदपुराण मे वसुगण
धर= धरती के देव।
अनल= अग्नि के देव।
अनिल= वायु के देव।
आप= अंतरिक्ष के देव।
प्रभास= आकाश के देव।
सोम = चन्द्रमास के देव।
ध्रुव= नक्षत्रो के देव।
प्रत्युष= आदित्य( सूर्य) के देव।
स्कंद पुराण में एक उल्लेख है की श्री दुर्गा की उत्पति देवों के तेज से हुई। श्री दुर्गा के अंगो, अलंकार और आयुधो की सृष्टि ( रचना) देवों के तेज से हुई स्कंद पुराण के अनुसार श्री दुर्गा के हाथों की उंगलिया की सृष्टि (रचना) अष्ट वसुओं से हुई।
(महाभारत १/६३/११६)
भारद्वाज के पिता देवगुरु बृहस्पति और माता ममता थीं। ऋषि भारद्वाज के प्रमुख पुत्रों के नाम हैं- ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र। उनकी 2 पुत्रियां थी रात्रि और कशिपा। इस प्रकार ऋषि भारद्वाज की 12 संतानें थीं। सभी के नाम से अलग-अलग वंश चले। बहुत से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं दलित समाज के लोग भारद्वाज कुल के हैं।
वसु पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देवताओं का एक गण है, जिसके अंतर्गत आठ देवता माने गये हैं। 'श्रीमद्भागवत' के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री तथा धर्म की पत्नी 'वसु' के गर्भ से ही सब वसु उत्पन्न हुए थे। महाभारत के प्रसिद्ध चरित्रों में से एक और महाराज शांतनु के पुत्र भीष्म भी आठ वसुओं में से एक थे।
हिन्दू धर्म के महान् ग्रंथ 'बृहदारण्यकोपनिषद' में तैंतीस देवताओं का विस्तार से परिचय मिलता है। इनमें से जो पृथ्वी लोक के देवता कहे गए हैं, उनमें आठ वसु का ही स्मरण किया जाता है। इन्हें ही धरती का देवता भी माना जाता है। महाभारत के अनुसार आठ वसु ये हैं-
धर, ध्रुव, सोम, विष्णु, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास
श्रीमद्भागवत के अनुसार 'द्रोण', 'प्राण', 'ध्रुव', 'अर्क', 'अग्नि', 'दोष', 'वसु' और 'विभावसु' आठ नाम हैं।
वसुओं का निवास
वसुधार लिङ्ग 1.50.5 (वसुधार पर्वत पर वसुओं का वास), वराह 77, 81.3(वसुधार पर्वत पर पुष्पवान वसुओं आदि के निवास आदि का कथन), स्कन्द 2.3.6.60(बदरिकाश्रम क्षेत्र में वसुधार तीर्थ का माहात्म्य )
आठ वसुओं के तप का स्थान
वसुधारा पद्म ३.२४.२६(वसुधारा तीर्थ का माहात्म्य), भविष्य ४.१४१(वसुधारा होम विधि), स्कन्द २.३.६, ४.१.२९.१२६(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ६.९०.७२(शिबि द्वारा वसुधारा से अग्नि को तृप्त करना), हरिवंश ३.३५.१३(वराह द्वारा प्राची में सृष्ट वसुधारा नदी का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.२०७.७३(बदरिकाश्रम में वसुधारा तीर्थ का माहात्म्य : ८ वसुओं के तप का स्थान आदि )
दस्तक केदारघाटी
केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर बासवाड़ा से 12 किमी की दूरी पर है प्रचीन बसुकेदार मंदिर समूह। शंकराचार्यकालीन यह मंदिर कत्यूरी शिल्प में निर्मित 18 छोटे बड़े मंदिरो का समूह है। मुख्य मंदिर शिव के केदार स्वरूप को समर्पित है, जिसके अंदर गर्भगृह के पहले द्वार पर गणेश और विष्णु भगवान की पाषाण प्रतिमाऐ हैं। मुख्य मंदिर से लगते अन्य मंदिरो में भी शिव रूप स्थापित है। मान्यता है कि यहां अष्ट वसुओं ने भगवान आदिकेदार की तपस्या की थी। इसलिऐ यह स्थान बसुकेदार नाम से प्रसिद्ध हुआ।
‘वसु’ शब्द का अर्थ ‘बसने वाला’ या ‘वासी’ है। धरती को वसुंधरा भी कहते हैं। 8 पदार्थों की तरह ही 8 वसु हैं। इन्हें ‘अष्ट वसु’ भी कहते हैं। इन आठों देवभाइयों को इन्द्र और विष्णु का रक्षक देव माना जाता है। सभी का जन्म दक्ष कन्या और धर्म की पत्नी वसु से हुआ है। दक्ष कन्याओं में से एक सती भी थी, जो शिव की पत्नी थीं। सती ने दूसरा जन्म पार्वती के रूप में लिया था। स्कंद पुराण के अनुसार महिषासुर मर्दिनी दुर्गा के हाथों की अंगुलियों की सृष्टि अष्ट वसुओं के ही तेज से हुई थी। रामायण में वसुओं को अदिति पुत्र कहा गया है। हालांकि यह शोध का विषय भी है।
आठ वसुओं के नाम :
वेद और पुराणों में इनके अलग-अलग नाम मिलते हैं। स्कंद, विष्णु तथा हरिवंश पुराणों में 8 वसुओं के नाम इस प्रकार हैं:-
आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष, प्रभाष।
वसुओं का पौराणिक इतिहास :
जालंधर दैत्य के अनुचर शुंभ को वसुओं ने ही मारा था। पद्मपुराण के अनुसार वसुगण दक्ष के यज्ञ में उपस्थित थे और हिरण्याक्ष के विरुद्ध युद्ध में इन्द्र की ओर से लड़े थे। भागवत में कालकेयों से इनके युद्ध का वर्णन है। एक कथा के अनुसार पितृशाप के कारण एक बार वसुओं को गर्भवास भुगतना पड़ा, फलस्वरूप उन्होंने नर्मदातीर जाकर 12 वर्षों तक घोर तपस्या की। तपस्या के बाद भगवान शंकर ने इन्हें वरदान दिया। तदनंतर वसुओं ने वही शिवलिंग स्थापित करके स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।
वसुओं की उत्पत्ति की कथा :
8 वसुओं में सबसे छोटे वसु ‘द्यो’ ने एक दिन वशिष्ठ की गाय नंदिनी को लालचवश चुरा लिया था। वशिष्ठ को जब पता चला तो उन्होंने आठों वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। वसुओं के क्षमा मांगने पर वशिष्ट ने 7 वसुओं के शाप की अवधि केवल 1 वर्ष कर दी।
‘द्यो’ नाम के वसु ने अपनी पत्नी के बहकावे में आकर उनकी धेनु का अपहरण किया था अत: उन्हें दीर्घकाल तक मनुष्य योनि में रहने तथा संतान उत्पन्न न करने, महान विद्वान और वीर होने तथा स्त्री-भोग परित्यागी होने को कहा। इसी शाप के अनुसार इनका जन्म शांतनु की पत्नी गंगा के गर्भ से हुआ। 7 को गंगा ने जल में फेंक दिया, 8वें भीष्म थे जिन्हें बचा लिया गया था। लेकिन इससे इतर भी उनकी मनुष्य योनि में जन्म से पूर्व की कथा प्राचीन है।
संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गईं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित हैं।
कलाओं में पारंगत हैं आठ वसु
आठ वसु क्रमशः धर, द्रव्य, सोम, अह, अनल, अनिल, प्रत्यूष और प्रभास हैं. इनमें से प्रभास अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गए. ये सभी वसु किसी न किसी कला में पारंगत हैं. जैसे अग्नि कला, वाहन कला, भवन अलंकरण कला इत्यादि इत्यादि. आग्नेयास्त्र जैसी कलाएं वसुओं से जुड़ी हुई है. विमान निर्माण, विभिन्न भांति के अस्त्र, युद्ध यंत्र, रथ इत्यादि का कौशल विश्वकर्मा के पुत्रों में देखने को मिलता है।
पुराणों के अनुसार
वसुगण प्राय: 'अष्टवसु' कहलाते हैं क्योंकि इनकी संख्या आठ है। यद्यपि इनके नामों में भेद पाया जाता है, तथापि आठों का जन्म दक्षकन्या और धर्म की पत्नी वसु में हुआ था। यह 'अष्टवसु' एक देवकुल था। स्कंद, विष्णु तथा हरिवंश पुराणों में इनके नाम घर, ध्रुव, सोम, अप्, अनल, अनिल, प्रत्यूष तथा प्रभास हैं। भागवत में इनके नाम क्रमश: द्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अग्नि, दोष, वसु और विभावसु हैं। महाभारत में अप् के स्थान में अह: और शिवपुराण में अयज नाम दिया है। अष्टवसुओं के नायक अग्नि हैं। ऋग्वेद के अनुसार ये पृथ्वीवासी देवता है। तैत्तिरीय संहिता और ब्राह्मण ग्रंथों में इनकी संख्या क्रमश: ३३३ और १२ है। पद्मपुराण के अनुसार वसुगण दक्ष के यज्ञ में उपस्थित थे और हिरण्याक्ष के विरुद्ध युद्ध में इंद्र की ओर से लड़े थे।
जालंधर दैत्य के अनुचर शुंभ को वसुओं ने ही मारा था। भागवत में कालकेयों से इनके युद्ध का वर्णन है। स्कंदपुराण के अनुसार महिषासुरमर्दिनी दुर्गा के हाथों की उँगलियों की सृष्टि अष्टवसुओं के ही तेज से हुई थी।
पितृशाप के कारण एक बार वसु लोगों को गर्भवास भुगतना पड़ा। फलस्वरूप उन्होंने नर्मदातीथॅ जाकर १२ वर्षों तक घोर तपस्या की। पश्चात् भगवान शंकर ने इन्हें वरदान दिया। तदनंतर वसुओं ने वही शिवलिंग स्थापित करके स्वर्गगमन किया।
वसु नाम के अनेक वैदिक एवं पौराणिक व्यक्तियों का उल्लेख आया है। उत्तानपाद, नृग, सुमति, वसुदेव, कृष्ण, ईलिन्, भूतज्योति, हिरण्यरेतस्, पुरूरवस्, वत्सर, कुश आदि राजाओं के पुत्रों के नाम भी यही थे। इनके अतिरिक्त सावर्णि मनु, स्वायंभुव मनु, इन्द्र, वसिष्ठ ऋषि, मुर दैत्य, भृगवारुणि ऋषि के पुत्र भी वसु नामधारी थे।
तदेष त्रिदशाचार्यः सर्वसिद्धिप्रवर्तकः।
सुतः प्रभासस्य विभोः स्वस्रीयश्च बृहस्पतेः ॥१९
(राजा भोज रचित समरांगण सूत्रधार - 1/19)
अर्थात - त्वष्टा प्रजापति विश्वकर्मा जी देवताओं के आचार्य हैं औऱ सभी सिद्धियों के प्रतिष्ठाता हैं। ये अष्टम वसु प्रभाष के पुत्र औऱ देवगुरू बृहस्पति के भांजे हैं।
सन्दर्भ प्रमाण
२.३.३.२६(अनिल संज्ञक वसु व शिवा – पुत्र),
मत्स्य ५.२५(अनल संज्ञक वसु व शिवा के २ पुत्रों में से एक),
२०३.७(पुरोजव : अनिल वसु – पुत्र), वायु ६६.२५/२.५.२५ (अनिल वसु व शिवा के २ पुत्रों में से एक), १००.८९/२.३८.८९(हरित संज्ञक गण के १० देवों में से एक),
विष्णु १.१५.११४(अनिल वसु व शिवा के २ पुत्रों में से एक),
महत्वपूर्ण जानकारी
अष्टम वसु थे आप, ध्रुव, सोम, धारा, अनिल, अनल, प्रत्यूषा और प्रभास। आप के चार बेटे थे। शांता, वैतंडा, सांबा और मुनि बभरू और ये 'यज्ञ रक्षक अधिकारी' या यज्ञों के सुरक्षा अधिकारी हैं। ध्रुव के पुत्र का नाम काल और सोम के पुत्र का नाम वर्च था; धरा के पुत्र थे द्रविण और हव्यवाह; अनिल के पुत्र प्राण, रमण और शरीरा थे। अनल के कई पुत्र थे और वे अग्नि के समान थे; वे समुद्र तट की घास से पैदा हुए थे; इनमें से महत्वपूर्ण शाखाएं, उपशाखा और नैगमेय थीं। चूंकि स्कंददेव के जन्म में 'कृतिका' और अग्नि थे, इसलिए उन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है। प्रत्युष के पुत्र देवल मुनि थे और विश्वकर्मा प्रजापति प्रभास के पुत्र और देवों के वास्तुकार और निर्माता थे। एकादश रुद्र अर्थात। अजैक, अहिर्भुधन्य, विरुपाक्ष, रैवत, हारा, बहुरूपा, थ्रैम्बक, सावित्र, जयंत, पिनाकी और अपराजिता रुद्र गणों के प्रमुख हैं, जिनकी संख्या चौरासी करोड़ गण हैं, प्रत्येक त्रिशूल धारक हैं। कश्यप की पत्नियों अदिति, दिति, दानु, अरिष्ट, सुरसा, सुरभि, विनता, तमना, क्रोधवाश, इरा, कद्रू, खास और मुनि से कई संतानें थीं। वर्तमान वैवस्वत मन्वंतर के दौरान, बारह आदित्य हैं। इंद्र, धात, भग, त्वष्टा, मित्र, वरुण, आर्यमा, विवश्वान, सविता, पूष, अम्शुमान और विष्णु। ये आदित्य कश्यप और अदिति से पैदा हुए थे।
पूर्व जन्म में भीष्म एक वसु थे
भीष्म के नाम से प्रसिद्ध देवव्रत पूर्व जन्म में एक वसु थे | एक बार कुछ वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण करने गए | उस पर्वत पर महर्षि वशिष्ठ जी का आश्रम था | उस समय महर्षि वशिष्ठ जी आपने आश्रम में नहीं थे लेकिन वहां उनकी प्रिय गायें कामधेनु की बछड़ी नंदिनी गायें बंधी थी | उस गायें को देखकर द्यौ नाम के एक वसु की पत्नी उस गायें को लेने की जिद करने लगी | अपनी पत्नी की बात मानकर द्यौ वसु ने महर्षि वशिष्ठ जी के आश्रम से उस गायें को चुरा लिया | जब महर्षि वशिष्ठ जी वापिस आए तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से पूरी घटना को देख लिया |
महर्षि वशिष्ठ जी वसुओं के इस कार्य को देखकर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने वसुओं को श्राप दे दिया कि उन्हें मनुष्य रूप में पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ेगा | इसके बाद सभी वसु वशिष्ठ जी से माफ़ी मांगने लगे | इस पर महर्षि वशिष्ठ जी ने बाकी वसुओं को माफ़ कर दिया और कहा की उन्हें जल्दी ही मनुष्य जन्म से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन द्यौ नाम के वसु को लम्बे समय संसार में रहना होगा और दुःख भोगने पड़ेंगे |
वसुओ का अर्जुन को शाप
महाभारत में भीष्म पितामह की धोखे से किए गए वध के कारण ''वसु'' बहुत नाराज व क्रोधित हो गए थे। जिसके कारण उन्होंने अर्जुन को श्राप देने का संकल्प ले लिया था। जब यह बात मुझे पता चली तो मैंने यह बात अपने पिता को बताई। उन्होंने वसुओं के पास जाकर सब विधि का विधान बता प्रार्थना की। तब वसुओं ने कहा कि मणिपुर का राजा बभ्रुवाहन अर्जुन का पुत्र है यदि वह बाणों से अपने पिता का वध कर देगा तो अर्जुन को अपने पाप से छुटकारा मिल जाएगा। इसीलिए वसुओं के श्राप से बचाने के लिए ही मुझे अपनी यह मोहिनी माया रचनी पड़ी। तत्पश्चात अर्जुन बभ्रुवाहन को अश्वमेध यज्ञ में आने का निमंत्रण दे पुन: अपनी यात्रा पर आगे चल दिए।
प्रकृति से संबंध
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः ।।
(ऋ० मं० १०। सू० १९०)
धाता परमात्माने जिस प्रकार के सूर्य, चन्द्र, द्यौ, भूमि, अन्तरिक्ष और तत्रस्थ सुख विशेष पदार्थ पूर्वकल्प में रचे थे वैसे ही इस कल्प अर्थात् इस सृष्टि में रचे हैं तथा सब लोक लोकान्तरों में भी बनाये गये हैं। भेद किञ्चित्मात्र नहीं होता।
धर धरती के देव हैं, अनल अग्नि के देव है, अनिल वायु के देव हैं, आप अंतरिक्ष के देव हैं, द्यौस या प्रभाष आकाश के देव हैं, सोम चंद्रमास के देव हैं, ध्रुव नक्षत्रों के देव हैं, प्रत्यूष या आदित्य सूर्य के देव हैं।
अग्निश्च जातवेदाश्च सहौजा अजिरा प्रभुः।
वैश्वानरो नर्यपाश्च पङ्किराधश्च सप्तमः।
विसर्पो सृमोऽग्निनामैतेऽष्टौ वसवः क्षितौ ॥
(तैत्तिरीयारण्यक १।९।१)
अग्नि, जातवेदः, सहौजा, अजिरा, वैश्वानरः, नर्यपाः, पंक्तिराधः, विसर्पो-ये आठ वसु भूमि पर ही हैं, अर्थात् यह आठ नाम अग्नि के ही हैं। यही आठ प्रकार की अग्नि आठ वसु माने जाते हैं।
महाभारत के अनुसार
धरो ध्रुवश्च सोमश्च सावित्रोऽथानिलोऽनलः।
प्रत्युषश्च प्रभासश्च वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः॥
महाभारत अनुशासन पर्व अ० १५० श्लोक १६ ।
धर, ध्रुव, सोम, सावित्र, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास ये आठ वसु हैं।
शतपथ ब्राह्मण में लिखा है
कतमे वसवः इति अग्निश्च पृथिवी च, वायुश्चान्तरिक्षं च, आदित्यश्च द्यौश्च, चन्द्रमाश्च नक्षत्राणि चैते वसवः, एतेषु हीदं सर्वं वसु हितमेते हीदं सर्वं वासयन्ते, तद्यदिदं सर्वं वासयन्ते तस्माद् वसवः। (शतपथ १४।५।७।४)
अग्नि, पृथिवी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, द्यौ, चन्द्रमा, नक्षत्र-यही आठ वसु हैं। इनमें ही ये सब वसते हैं, सबको वासस्थान देते हैं, इसलिए इनका नाम वसु है। इस प्रकार वसु के अर्थ वास स्थान देनेवाला मानकर वसु संज्ञा हुई है।
एतेषु हीदँ्सर्वं वसुहितमेते हीदँ्सर्वं वासयन्ते तद्यदिदँ्सर्वं वासयन्ते तस्माद्वसव इति।।
(शतपथ० १४।६।७।४)
तैत्तिरीयारण्यक में केवल अग्नि के आठ भेदों को वसु माना गया है। उस का भाव यही है कि देवता शब्द के अनेक अर्थ हैं, उन अर्थों में प्रकाशक अर्थ को मुख्य मानकर अग्नि के आठों भेदों को वसु मान लिया है।
पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चन्द्र, नक्षत्र और सूर्य इन का वसु नाम इसलिये है कि इन्हीं में सब पदार्थ और प्रजा वसती हैं और ये ही सब को वसाते हैं। जिस लिये वास के निवास करने के घर हैं इसलिये इन का नाम वसु है। जब पृथिवी के समान सूर्य चन्द्र और नक्षत्र वसु हैं पश्चात् उन में इसी प्रकार प्रजा के होने में क्या सन्देह? और जैसे परमेश्वर का यह छोटा सा लोक मनुष्यादि सृष्टि से भरा हुआ है तो क्या ये सब लोक शून्य होंगे? परमेश्वर का कोई भी काम निष्प्रयोजन नहीं होता तो क्या इतने असंख्य लोकों में मनुष्यादि सृष्टि न हो तो सफल कभी हो सकता है? इसलिये सर्वत्र मनुष्यादि सृष्टि है।
बृहदारण्यक उपनिषद के मतानुसार
बृहदारण्यक उपनिषद के मतानुसार तैतीस देवता ही मुख्य है। (एवैषामैते त्रयस्त्रिंशत्वेव देवाः ।।) यथा आठ वसु ग्यारह रूद्र, बारह आदित्य इंद्र और यज्ञ।
आठ वसुदेवता परोक्षतः यथाक्रम से पृथिवी, जल, अग्नि, वायु। आकाश, भू, भूवॅ और स्वः है। किन्तु बृहदारण्यकोपनिषद के अनुसार वे सब यथाक्रम से पृथिवी, वायु, अन्तरिक्ष, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, और स्वर्ग हे। पांच कमेन्द्रीया ( मुख, हस्त, पाद, उपस्थ और वायु) पांच ज्ञानेन्द्रिया ( मुख, हस्त, पाद, उपस्थ और वायु) पांच ज्ञानेन्द्रिया (श्रोत्र, नेत्र, नासिका, जिह्वा, त्वक्) और वागिन्द्रिय (मन) ही एकादश रुद्र देवता हैं। किंतु बृहदारण्यक के कथनानुसार दस प्राण (प्राण, अपान, सदान, उदान, व्यान, नाम, कमॅ, कृकल, देवदत्त, धनंजय और आत्मा ही रुद्र देवता हैं। द्वादश आदित्य यथाक्रम से वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्र, आश्र्विन, कातिॅक, मागॅशीषॅ पौष, माध, फाल्गुन, एवं चैत्र हे। इंद्र देवता मेघ हे और यज्ञ देवता प्रजापति हे ।
बृहदारण्यक उपनिषद के 3/9 के और छन्दोग्य 3/16 के खण्डों और ब्राह्मणों में अष्टवसु रूप ब्रह्मा,द्वादश आदित्य रूप विष्णु और प्रधान प्राण सहित दशप्राण अथवा मन सहित ग्यारह इन्द्रियाँ रूद्र अथवा शिव हैं।
अग्नि,पृथिवी,वायु,अन्तरिक्ष,आदित्य,द्युलोक,चन्द्रमा और नक्षत्र ये आठ वसु हैं जिनमें सभी का वास है।
उपरोक्त देवताओ की पूजा को ही नैमित्तिक कमॅ कहते हैं। इन्हीं कर्तव्य कर्मों द्वारा देवऋण परिशोध होता है। वसु और रुद्र देवताओं की पूजा को नित्य क्रम तथा आदित्य इन्द्र और यज्ञ देवताओं की पूजा को नैमित्तिक कर्म कहते हैं।
पृथ्वी को पवित्र रखने का प्रयत्न करते रहना अर्थात मकान, आंगन, हाट, बाट, घाट तथा गांव के समस्त स्थानों को स्वच्छ एवं निर्मल रखना पृथ्वी देवता की पूजा है। इसी प्रकार को तालाब ,नदी नाले, जलाशय, कूप आदि को स्वच्छ एवं निर्मल रखना जिससे जल सदा सर्वदा सर्वत्र ही पवित्र अवस्था में मिल सके यही जल देवता की पूजा है। शुष्क काष्ठ के ईंधन स्वच्छ दीप एवं जलाने के लिए स्वच्छता तेल का व्यवहार करना जिससे कि हानिकारक धूम्र की अधिक उत्पत्ति ना हो सके अग्नि देव की पूजा है। वायु को स्वच्छ रखने के लिए अष्ट सुगंधी कपूर एवं धृत जलाना वायु देव की पूजा है। आकाश को जोकि विचार तरंगों और ध्वनि आदित्य विद्युत जैसी सूक्ष्म शक्तियों को वाहन करने के लिए माध्यम का काम करता हे। सुंदर विचारों और तरंगों से गुंजित करना, सुमधुर गीत, नृत्य, संगीत आदि करना आकाश देवता की पूजा हे। मकान, घर, महल, दुर्ग, किले, नगर, नहर, मंदिर, सुविधा सभर भवन, चित्र, आदि के निर्माण भू (विश्वकर्मा) देवता की पूजा हे। मृत शरीर का अग्नि संस्कार करना भूवः देवता की पूजा हे। प्रातः काल में स्नान करने के उपरांत एवं संध्या काल में भक्तिपूर्ण परमात्मोपासना करना स्व देवता की पूजा हे।
वसु से जुड़े अन्य मह्त्वपूर्ण सन्दर्भ
वसुगण व उनके पुत्रों के नाम;
चन्द्रमा की नक्षत्र रूपी पत्नियों के पुत्र
वसु अग्नि १८.३४
(अग्निपुराणम्/अध्यायः १८)
वसु का पति मारीचकश्यप को त्याग कर सोम की सेवा में जाना),
(अग्निपुराणम्/अध्यायः २७४.५)
आपः आदि ८ वसुओं के नाम व पुत्र
गरुड १.६.२९
(गरुडपुराणम्/आचारकाण्डः/अध्यायः ६)
द्रोण आदि ८ सत्य वसुओं के नाम
३.५.२९
(गरुडपुराणम्/ब्रह्मकाण्डः (मोक्षकाण्डः)/अध्यायः ५)
नन्द के द्रोण वसु का अंश होने का उल्लेख
गर्ग १.३.४०
(गर्गसंहिता/खण्डः १ गोलोकखण्डः/अध्यायः ०३)
उद्धव के वसु का अंश होने का उल्लेख
१.५.२४
(गर्गसंहिता/खण्डः १ गोलोकखण्डः/अध्यायः ०५)
वसिष्ठ के शाप से वसुओं का शन्तनु व गङ्गा - पुत्रों के रूप में जन्म, अष्टम वसु द्यौ का भीष्म रूप में जन्म
देवीभागवत २.३.३५
(देवीभागवतपुराणम्/स्कन्धः ०२/अध्यायः ०३)
भीष्म के वसु का अंश होने का उल्लेख, कश्यप के अंश वसुदेव व अदिति-अंश देवकी के ८ पुत्रों का वृत्तान्त
४.२२.३६
(देवीभागवतपुराणम्/स्कन्धः ०४/अध्यायः २२)
वसुओं के तेज से देवी की अङ्गुलियों की उत्पत्ति का उल्लेख
५.८.७०
(देवीभागवतपुराणम्/स्कन्धः ०५/अध्यायः ०८)
वसु गण का शङ्खचूड - सेनानी वर्चस्वी गण से युद्ध
९.२२.७ कालीशङ्खचूडयुद्धवर्णनम्
(देवीभागवतपुराणम्/स्कन्धः ०९/अध्यायः २२)
रुक्माङ्गद - पुरोहित, मोहिनी को भस्म करना, मोहिनी के पुनर्जीवित होने पर कल्याण हेतु गङ्गा माहात्म्य आदि वर्णन करना
नारद २.३५
(नारदपुराणम्- उत्तरार्धः/अध्यायः ३५)
वसु ब्राह्मण द्वारा ब्रह्मा से वृन्दावन वास वर की प्राप्ति
२.३७.३३, २.८१.९
(नारदपुराणम्- उत्तरार्धः/अध्यायः ३७)
(नारदपुराणम्- उत्तरार्धः/अध्यायः ८१)
आपः आदि ८ वसुओं की वसु से उत्पत्ति, वसुओं के ज्योतिष्मन्त व सर्वदिशाओं में व्याप्त होने का उल्लेख
पद्म १.६.२१
(पद्मपुराणम्/खण्डः १ सृष्टिखण्डम्/अध्यायः ०६)
भ्राता के वसुलोक का स्वामी होने का उल्लेख
१.१५.३१७
(पद्मपुराणम्/खण्डः १ सृष्टिखण्डम्/अध्यायः १५)
धर आदि आठ वसुओं के नाम
१.४०.८९
(पद्मपुराणम्/खण्डः १ सृष्टिखण्डम्/अध्यायः ४०)
विश्वेदेवों के नामों में से एक
१.४०.९४
(पद्मपुराणम्/खण्डः १ (सृष्टिखण्डम्)/अध्यायः ४०)
अव्यक्तानन्द सलिल वाले समुद्र में ८ वसुओं की ८ पर्वतों से उपमा, आदित्यों व रुद्रों की भी उपमाएं
१.४०.१४६
(पद्मपुराणम्/खण्डः १ सृष्टिखण्डम्/अध्यायः ४०)
वसुओं का जालन्धर - सेनानी शुम्भ से युद्ध
६.५.९१
(पद्मपुराणम्/खण्डः ६ उत्तरखण्डः/अध्यायः ००५)
केरल वासी ब्राह्मण वसु द्वारा प्रेतत्व प्राप्ति, कार्पटिक द्वारा गङ्गा जल दान से मुक्ति
६.१२९.७२
(पद्मपुराणम्/खण्डः ६ उत्तरखण्डः/अध्यायः १२९)
इन्द्र व ऋषियों का वसु से यज्ञ में हिंसा सम्बन्धी संवाद
ब्रह्माण्ड १.२.३०.२३
(ब्रह्माण्डपुराणम्/पूर्वभागः/अध्यायः ३०)
उत्तानपाद व सूनृता की ४ सन्तानों में से एक
१.२.३६.८९
(ब्रह्माण्डपुराणम्/पूर्वभागः/अध्यायः ३६)
वसुओं व उनके पुत्रों के नाम
२.३.३.२१
(ब्रह्माण्डपुराणम्/मध्यभागः/अध्यायः ३)
वसुओं हेतु मांसौदन बलि का उल्लेख
(भविष्य पुराण १.५७.४)
अष्ट वसुओं का कुबेर, वरुण आदि रूपों में रूपान्तरण व कलियुग में वसुओं का अवतरण
३.४.१५.६४
(भविष्यपुराणम् /पर्व ३ / प्रतिसर्गपर्व/खण्डः ४/अध्यायः १५)
द्वितीय वसु वरुण का वृत्तान्त
३.४.१६.४९
(भविष्यपुराणम् /पर्व ३ /प्रतिसर्गपर्व/खण्डः ४/अध्यायः १६)
सोम, रुद्र व विष्णु का षष्ठम,सप्तम व अष्टम वसु रूप में कथन
३.४.१७.८१
(भविष्यपुराणम् /पर्व ३/ प्रतिसर्गपर्व/खण्डः ४/अध्यायः १७)
वसुकामी द्वारा वसुओं-रुद्रों की अर्चना का निर्देश
भागवत २.३.३
(श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः २/अध्यायः ३)
द्रोण आदि आठ वसुओं का कथन
६.६.११
(श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः ६/अध्यायः ६)
वसुओं का कालेयों से युद्ध
८.१०.३४
(श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः ८/अध्यायः १०)
भूतज्योति-पुत्र, प्रतीक-पिता, नृग वंश
९.२.१८
(श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः ९/अध्यायः २)
कृष्ण के वसुओं में हव्यवाट् होने का उल्लेख
११.१६.१३
(श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः ११/अध्यायः १६)
आपः, ध्रुव आदि वसु गण की पत्नियों व पुत्रों का वर्णन
मत्स्य ५.२१
(मत्स्यपुराणम्/अध्यायः ५)
वसु गण : पितरों का रूप, रुद्र पितामह, आदित्य प्रपितामह
१४, १९.३
(मत्स्यपुराणम्/अध्यायः १९)
उपरिचर वसु : कृमि - पुत्र, गिरिका - पति, बृहद्रथ आदि के पिता
५०.२५
(मत्स्यपुराणम्/अध्यायः ५०)
धर्म व सुदेवी - पुत्र अष्ट वसुओं के नाम - वर आदि, निर्ऋति अष्टम
१४१, १७१.४६
(मत्स्यपुराणम्/अध्यायः १४१-१७१)
नारायण सागर में पर्वत रूप
१७२.३४
(मत्स्यपुराणम्/अध्यायः १७२)
वसु गण का सुमेध पर्वत पर वास
लिङ्ग १.५०.७
(लिङ्गपुराणम् - पूर्वभागः/अध्यायः ५०)
काश्मीर का राजा, नारायणी - पति, विवस्वान् - पिता, हरि स्तोत्र पाठ से हरि में लय
(वराहपुराणम्/अध्याय : ००४ - ००६)
वसुओं का अञ्जन, नीलकुक्षि, मेघवर्ण, बलाहक, उदाराक्ष, ललाटाक्ष, सुभीम व स्वर्भानु नामक ८ महिषासुर - सेनानियों से युद्ध
(वराहपुराणम्/अध्यायः ०९३ - ९४.६)
वसु ब्राह्मण, पाञ्चाल पुत्र व तिलोत्तमा कन्या का वृत्तान्त
(वराहपुराणम्/अध्यायः १७५. ११)
वसुओं के कुञ्जर वाहन होने का उल्लेख
(वामनपुराणम्/नवमोऽध्यायः ९.२१)
वसुओं का सरभ आदि ८ अन्धक - सेनानियों से युद्ध
(वामनपुराणम्/नवषष्टितमोऽध्यायः ६९.५५)
८ वसुओं व उनके पुत्रों के नाम
वायु ३९, ५७, ६६.२०/२.५.२०
(वायुपुराणम्/उत्तरार्धम्/अध्यायः ५)
वसुओं पर पावक का आधिपत्य
(वायुपुराणम्/उत्तरार्धम्/अध्यायः ७०.५)
बृहस्पति-भगिनी के अष्टम वसु की भार्या होने का कथन
(वायुपुराणम्/उत्तरार्धम्/अध्याय २.२२.१५)
धर आदि वसुगण की सन्तति का कथन
(विष्णुपुराणम्/प्रथमांशः/अध्यायः १५
/१.१५.१०९)
धनिष्ठा नक्षत्र के संदर्भ में वसुओं का आवाहन
४.१५, ५.१, विष्णुधर्मोत्तर १.९५.९०
(विष्णुधर्मोत्तरपुराणम्/ खण्डः १/अध्यायः ०९५)
वसुओं की मूर्ति का रूप : धर प्राजापत्य रूप, ध्रुव वैष्णव, सोम चान्द्र, अनिल वायव्य, अनल आग्नेय, प्रभास वारुण
(विष्णुधर्मोत्तरपुराणम्/खण्डः ३/अध्यायाः ०७१-०७५)
वसु प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि
(विष्णुधर्मोत्तरपुराणम्/खण्डः ३/अध्यायाः ३०१-३०५)
राजा उपरिचर वसु द्वारा यज्ञ में हिंसा के पक्ष में निर्णय देने के कारण भूमि विवर में स्थित होना, बृहस्पति द्वारा राजा को दानवों से रक्षा हेतु वैष्णवी रक्षा की शिक्षा देना
(विष्णुधर्मोत्तरपुराणम्/खण्डः ३/अध्यायाः ३४१-३४५ - ३.३४५ )
गरुड द्वारा वसु को विष्णु के पास ले जाना, वसु द्वारा विष्णु की स्तुति, विष्णु द्वारा निर्देश
(विष्णुधर्मोत्तरपुराणम्/खण्डः ३/अध्यायाः ३४६-३५० - ३.३४६)
वसुओं द्वारा रौप्य अथवा आरकूटमय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख
(शिवपुराणम्/संहिता २ रुद्रसंहिता/खण्डः १ सृष्टिखण्डः/अध्यायः १२/२.१.१२.३२)
पावक को वसुओं का अधिपति नियुक्त करने का उल्लेख
(शिवपुराणम्/संहिता ५ (उमासंहिता)/अध्यायः ३३ /५.३३.२१)
भकार से षकार तक वर्णों की ८ वसु संज्ञा
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः १ माहेश्वरखण्डः/कौमारिकाखण्डः/अध्यायः ०५ / १.२.५.८१)
शतरुद्रिय प्रसंग में वसुओं द्वारा काशज लिङ्ग की पूजा का उल्लेख
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः १ माहेश्वरखण्डः/कौमारिकाखण्डः/अध्यायः १३/१.२.१३.१५२)
निषाद, चित्रवती - पति, वीर पुत्र, पुत्र हनन को उद्धत
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः १ माहेश्वरखण्डः/कौमारिकाखण्डः/अध्याय :२.१.९)
वसु द्वारा वराह का पीछा, तोण्डमान नृप से वराह के आदेश का कथन
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः १ माहेश्वरखण्डः/कौमारिकाखण्डः/अध्याय :२.१.१०)
बदरी क्षेत्र में तीर्थ
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः १ माहेश्वरखण्डः/कौमारिकाखण्डः/अध्याय : २.३.६)
विधूम वसु
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः १ माहेश्वरखण्डः/कौमारिकाखण्डः/अध्याय : ३.१.५)
यज्ञ में अष्टम वसु के अच्छावाक् ऋत्विज बनने का उल्लेख
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ३ ब्रह्मखण्डः/सेतुखण्डः/अध्यायः २३ /३.१.२३.२५)
वसुओं द्वारा रामेश्वर की स्तुति
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ३ (ब्रह्मखण्डः)/सेतुखण्डः/अध्यायः ४९ /३.१.४९.८१)
महाभिष वसु राजर्षि की आसक्ति के कारण गङ्गा को पति समुद्र से शाप प्राप्ति
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ५ अवन्तीखण्डः/अवन्तीस्थचतुरशीतिलिङ्गमाहात्म्यम्/अध्यायः ४२ /५.२.४२.२३)
दक्ष यज्ञ में वसुओं के जर्जरमस्तक होने का उल्लेख
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ५ अवन्तीखण्डः/अवन्तीस्थचतुरशीतिलिङ्गमाहात्म्यम्/अध्यायः ८२ /५.२.८२.३९)
राजा वसु के वीर्य के पतन, मत्स्य द्वारा निगरण और उससे कैवर्त्तकन्या के जन्म का वृत्तान्त
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ५ अवन्तीखण्डः/रेवा खण्डम्/अध्यायः ०९७ /५.३.९७.२९)
वासवेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, वसुओं द्वारा पितृ शाप से मुक्ति हेतु लिङ्ग की अर्चना
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ५ अवन्तीखण्डः/रेवा खण्डम्/अध्यायः २२३ /५.३.१५६.१३, ५.३.२२३.१)
धुर आदि ८ वसुओं के नाम
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ६ नागरखण्डः/अध्यायः १४६ /६.१४६.४)
वा.सं. (शुक्लयजुर्वेदः/अध्यायः ११ /११.५८ ) के मन्त्र वसवस्त्वा कृण्वन्तु इति का विनियोग
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ६ नागरखण्डः/अध्यायः १५५ /६.१५५.६)
चातुर्मास में वसुओं की प्रियाल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ६ नागरखण्डः/अध्यायः २५२ /६.२५२.३४)
८ वसुओं व उनके पुत्रों के नाम
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ७ /प्रभासखण्डः/प्रभासक्षेत्र माहात्म्यम्/अध्यायः ०२१ /७.१.२१.११)
विश्वा व धर्म - पुत्र, स्वनामों से लिङ्गों की स्थापना
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ७ प्रभासखण्डः/प्रभासक्षेत्र माहात्म्यम्/अध्यायः १०८/ ७.१.१०८)
महिष वध के पश्चात् वसुओं द्वारा चण्डिका को वर
(स्कन्दपुराणम्/खण्डः ७ प्रभासखण्डः/अर्बुदखण्डम्/अध्यायः ३६ /७.३.३६.१८०)
आपः आदि आठ वसुओं व उनके पुत्रों का कथन
(हरिवंशपुराणम्/पर्व १ हरिवंशपर्व/अध्यायः ०३ /१.३.३७)
अच्छोदा की अमावसु पितर पर आसक्ति, मृत्युलोक में अच्छोदा का वसु-कन्या बनना
(हरिवंशपुराणम्/पर्व १ हरिवंशपर्व/अध्यायः ०३ /१.१८.२९)
चेदिपति उपरिचर वसु द्वारा इन्द्र से दिव्य रथ की प्राप्ति का कथन
(हरिवंशपुराणम्/पर्व १ (हरिवंशपर्व)/अध्यायः ३० /१.३०.१४)
धर आदि व निर्ऋति अन्तिम अष्ट वसुओं की धर्म व सुरभि से उत्पत्ति
(हरिवंशपुराणम्/पर्व ३ (भविष्यपर्व)/अध्यायः ०१४ /१.३५, ३.१४.४७)
वामन/विराट विष्णु के पृष्ठ पर वसुओं की स्थिति का उल्लेख
(हरिवंशपुराणम्/पर्व ३ (भविष्यपर्व)/अध्यायः ०७१ /३.७१.५१)
कुश - पुत्र, गिरिव्रज नगरी की स्थापना
(रामायणम्/बालकाण्डम्/सर्गः ३२)
(वा.रामायण १.३२.७)
परशुराम पर विजय हेतु वसुओं द्वारा भीष्म को प्रस्वापनास्त्र प्रदान करना
(महाभारतम्-०५-उद्योगपर्व-१८३)
जङ्घाओं से प्राणों के उत्क्रमण पर वसुओं के लोक की प्राप्ति का उल्लेख
(महाभारतम्-१२-शांतिपर्व-३२२)
अर्जुन द्वारा युद्ध में भीष्म को निष्कारण मारे जाने के कारण वसुओं द्वारा अर्जुन को पराजय का शाप व शाप से निष्कृति
(महाभारतम्-१४-आश्वमेधिकपर्व-०८२/८१. १२)
उपरिचर वसु के पतन की कथा
(लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः १ कृतयुगसन्तानः/अध्यायः ०५२ /१.५२.७०)
वसुओं के असाध्य होने का उल्लेख
(लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः १ कृतयुगसन्तानः/अध्यायः ०८१ /१.८१.१८)
वसुओं का शङ्खचूड सेनानियों वर्चसगणों से युद्ध
(लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः १ कृतयुगसन्तानः/अध्यायः ३३७ /१.३३७.४२)
विधूम वसु की अलम्बुषा पर आसक्ति, सहस्रानीक राजा रूप में जन्म लेकर उदयन पुत्र को जन्म देना
लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः १ कृतयुगसन्तानः/अध्यायः ४३४ /१.४३४.१८)
वृक्ष रूप धारी कृष्ण के दर्शन हेतु वसुओं के प्रियाल बनने का उल्लेख
(लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः १ कृतयुगसन्तानः/अध्यायः ४४१ /१.४४१.८८)
काश्मीर देश के नृप वसु द्वारा मृग रूप धारी मुनि की हत्या से पाप की प्राप्ति, श्रीहरि की भक्ति से पाप के व्याध रूप में बाहर निकलने का वृत्तान्त
(लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः १ (कृतयुगसन्तानः)/अध्यायः ५२६ /१.५२६)
दक्ष - कन्या विश्वा व धर्म से उत्पन्न ८ वसुओं तथा उनके पुत्रों के नाम
(लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः १ (कृतयुगसन्तानः)/अध्यायः ५३८ /१.५३८.९१)
३.४५.२६
द्रव्य दान से वसु लोक प्राप्ति का उल्लेख
गौरी गौ दान से वसुलोक प्राप्ति का उल्लेख
(लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः ३ द्वापरयुगसन्तानः/अध्यायः ०४५ /३.१०१.७०)
तिल धेनु दान से वसु लोक प्राप्ति का उल्लेख
(लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्डः ३ द्वापरयुगसन्तानः/अध्यायः १०९ /३.१०९.५६)
विधूम वसु की अलम्बुषा पर आसक्ति, शाप प्राप्ति की कथा
(कथासरित्सागरः/लम्बकः २/तरङ्गः १ /२.१.२३)
प्रभास वसु – कन्या कीर्तिमती का सुनीथ – पत्नी बनना
(कथासरित्सागरः/लम्बकः ८/तरङ्गः २ /८.२.१७८)
मन्दरमाला नामक वसुओं की कन्या का उल्लेख
(कथासरित्सागरः/लम्बकः ८/तरङ्गः २/८.२.३५३)
स्थिरबुद्धि के आठ वसुओं से युद्ध का उल्लेख
द्र.अमावसु, अर्वावसु, उपरिचरवसु, परावसु, पुनर्वसु, बृहद्वसु, मित्रावसु, विभावसु, विश्वावसु, शरद्वसु
(कथासरित्सागरः/लम्बकः ८/तरङ्गः ७ /८.५.७९, ८.७.३२)
अष्टम वसु महायज्ञ
अष्टम वसु महायज्ञ अग्नि में आठ वसुओं को आमंत्रित करने के उद्देश्य से किया जाता है। अष्टम वसु आठ मौलिक देवता / देवता हैं जो ब्रह्मांड में प्राकृतिक घटना को दर्शाते हैं।
हम आप सभी को प्राकृतिक देवताओं के आठ पहलुओं से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अष्ट वसु महायज्ञ के इस विशेष अनुष्ठान की जानकारी देने लेख में प्रयास किया गया है।
ततः अष्टदलं विलिख्य तदुपरि अष्टावसुमावाहयेत् । तद्यथा – अब अष्टदल पद्म निर्माणकर उसपर आवाहनपूर्वक अष्टवसु की पूजा करें।
प्रार्थना , गणेश पूजा, धूपम, दीपम, नैवेधम, कर्पूर आरती, दीपार्थ, श्री गणेश के लिए मंत्र पुष्पम, यजमानों और प्रायोजकों के लिए संकल्प, यधस्थानम, अवाहन देवताओ के लिए अर्चना, धूप, दीप, नेवेत्यं, दीपराथाना, श्री सुकमॅ , सूक्तम, शांति पंचकमॅ, पावन सूक्तम, आयुष सूक्तम, अष्ट वसु पूजा और जप, अग्नि आह्वान, गणेश होमम, परिवार देवदा होमम, अष्ट वासु महा यज्ञ, धूपम दीपं नेयवेत्यं दीपार्थना, नमस्कारम, दीपराथन / महासकारम, पुष्पम, यजस्थानम, पुरोचनम / पवित्र जल, महा प्रसादम, अंतिम नमस्कार प्रक्रिया /विश्व ब्राह्मणों का आशीर्वाद।
पृथ्वी वसु को पृथ्वी की दिव्य माता माना जाता है और उन्हें हमेशा देवता द्यौ के साथ देखा जाता है जो आकाश से संबंधित हैं। पृथ्वी के देवता-देवी पृथ्वी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पवित्र अग्नि वेदी को तैयार करना पृथ्वी वसु होम के रूप में जाना जाता है। पृथ्वी साधन संपन्न और ब्रह्मांड की संपूर्ण परिवर्तनकारी ऊर्जा/शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
लाभ:
- पृथ्वी वसु होम करने से वास्तु संबंधी दोष दूर होते हैं।
- वास्तु शास्त्र के आधार पर घर का निर्माण न करने के कारण हुए बुरे प्रभावों से उबरने में मदद करता है।
- देवी पृथ्वी का आशीर्वाद आपकी संपत्ति में सुरक्षित रहने में मदद करता है।
अग्नि वसु होम
अग्नि वसु अग्नि के देवता हैं। माना जाता है कि अग्नि को दिया गया त्याग सीधे देवताओं को जाता है क्योंकि अग्नि को अन्य देवताओं के दूत माना जाता है।
लाभ:
- अग्नि वसु होम बुराई को अच्छाई में और संयमित दया को आशीर्वाद में बदल देता है।
वायु वासु होम
वायु "हवा का स्वामी है। और वह वायु का नियंत्रक है। भगवान वायु को दिशाओं का रक्षक माना जाता है।
लाभ:
- भगवान वायु होम आपके रहने की जगह को अत्यधिक सकारात्मक ऊर्जा बल के साथ घेरने के लिए निश्चित है जो एक खुशहाल और संघर्षपूर्ण जीवन जीने के लिए आपके जीवन को पूरी तरह से फिर से बढ़ा सकता है।
अन्तरिक्ष वसु होम
अन्तरिक्ष वसु होमम न केवल आपके नए घर / भूमि में दिव्य उपस्थिति का एहसास कराता है, बल्कि सभी बुरी ऊर्जा और नकारात्मक ऊर्जा को भी नकारता है। मन की शांति, आनंद और समृद्धि इस दिव्य होम के परिणाम होंगे।
आदित्य वसु होम
आदित्य वसु प्रकाश के दाता सूर्य देव हैं। वह न केवल मानव जीवन में प्रकाश-दाता है, बल्कि वह नेतृत्व, राजा निर्माण, प्राथमिक ध्यान और जीवन में इस तरह की सत्तारूढ़ चीजों जैसे प्रमुख पहलुओं के साथ भी आगे बढ़ता है।
लाभ:
- एक उज्जवल कैरियर, स्टार्ट-अप व्यवसाय, एक नई स्वामित्व वाली अचल संपत्ति और आपके समग्र जीवन के लिए यह होमम करना चाहिए।
द्यौ वसु होम
द्यौ वसु आकाश के स्वामी / पिता और देवी पृथ्वी (पृथ्वी की माता) के पति हैं। उन दोनों ने मिलकर दयावपृथ्वी कहा। वह वर्षा के स्वामी राजा इंद्र के पिता हैं।
लाभ:
- द्यौ वसु होम एक रखने से संबंधित है जीवन भर सकारात्मक वाइब्स के साथ गूंजता हुआ घर।
चंद्रमा वसु होम
चंद्रमा वसु चंद्रमा के भगवान (सोम) और सभी प्रकार की भावनाओं के नियंत्रक।
लाभ:
चंद्रमा वसु होम भावनाओं पर आपकी नियंत्रण शक्ति पर एक अद्भुत काम करेगा और आपको एक पूर्ण मानव के रूप में फिर से बनाएगा चंद्रा के आशीर्वाद से पूरी दुनिया में किसे प्यार और पसंद किया जाता है।
नक्षत्राणी वसु होम
हिंदू ज्योतिष में नक्षत्रनी / तारा आपके चरित्र, आप जिस व्यक्ति हैं, आपके व्यक्तिगत पक्ष और विपक्ष और लक्षण निर्धारित करते हैं। जिस तरह से आप अपने जीवन में चमकते हैं या अपने स्वास्थ्य या खराब स्वास्थ्य को खराब करते हैं और आपका व्यक्तिगत आत्म आपके द्वारा शासित नक्षत्र के लक्षणों के लिए समर्पित है।
लाभ:
नक्षत्राणी वसु होम आपकी जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति में सुधार करने में मदद करता है और आपको स्टार के सभी शक्तिशाली और सकारात्मक लक्षणों से आशीर्वाद देता है जो आप पर शासन करते हैं और आपके जीवन को बेहतर और सर्वश्रेष्ठ के लिए बदल देंगे।
विश्वकर्मा साहित्य भारत द्वारा मे मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा प्रभु संबंधित लेख संकलित कर समाज में साहित्यिक जानकारी सभर प्रचार प्रसार अभियान चला रहे हैं जिससे समाज में साहित्य क्रांति आने वाले समय में युवा पीढ़ी के लिए विश्वकर्मा प्रभु और उनके साहित्य को समृद्ध और जिवंत रख सके।
संकलनकर्ता -
मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत
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