त्रिपुर धान के आरंभ में रूद्र के रथ के निर्माण का वर्णन

त्रिपुर धान के आरंभ में रूद्र के रथ के निर्माण का वर्णन

भगवान विश्वकर्मा ने रूद्र भगवान का सवॅलोकमय दिव्य रथ का निर्माण किया। जिसमें दाई ओर का पहिया सूर्य और वायु ओर का पहिया चंद्र था। दक्षिण में बारह तथा उत्तर में(बाई ओर) सोलह अरा थे। अराओं मैं एक तरफ बारह आदित्य तथा दूसरी तरफ सोलह चंद्रमा की कला थी। सब नक्षत्र बाई तरफ भूषण थे तथा छह ऋतु नेमी थी। पुष्कर, अंतरिक्ष, नील, मंदराचल, रथ, धा, अस्ताचल और उदयाचल दोनों उसके जुआ थे। सुमेर उसका अधिष्ठान था। संवत्सर उसका एक स्थान था। उत्तरायण और दक्षिणायन उसके संगम थे। स्वर्गीय तथा ध्वजा दोनों मोक्ष थे। धर्म और विराट दोनों दण्ड थे। यमुना दंड का आश्रय दक्षिण संधि पचास आदमी उसके लोहे के स्थान पर थी।
सभी इंद्रियां उसमें भूषण थी। श्रद्धा गति थी, वेद उस रथ के घोड़ा थे, पद्म भूषण थे, छै उपभूषण थे, पुराण, मीमांस, धर्म, शास्त्र, इत्यादिक उसके वस्त्र थे। दिशाएं पैर थी, वह रथ सभी प्रकार के राहत और स्वर्ण से भूषित था। चारों समुद्र उसके चारों ओर के कम्बल थे। सरस्वती देवी घंण्टा थी। विष्णु भगवान बाण थे।सोम शल्य थे।
इस प्रकार दिव्य रथ और धनुष्य को तैयार करके ब्रह्मा को साथी बनाया। ऐसे दिव्य रथ पर पृथ्वी और आकाश को कंपाते हुए शिव जी विराजमान हुए। भगवान शंकर ने यह देखते हुए पशुओं का आधिपत्य ब्रह्मा को दिया। जो पाशुपत दिव्य योग को धारण करें और १२ वर्ष ६ वर्ष और ३ वर्ष तक नियम से व्रत का पालन करें तो वह निश्चय मोक्ष को प्राप्त करेगा।
इसके बाद विनायक बालक रूप में प्रकट हुए। देवताओं ने उसका पूजन किया। विनायक बोले - इस संसार में भक्ष्य, भोज्य आदि पदार्थों से पूजा नहीं करेगा। वह देव हो या दानव वह सिद्धि को हासिल प्राप्त नहीं करेगा। ऐसा सुनकर इंद्रादिक सभी देवताओंने विनायक का पूजन किया। फिर गणेश तथा नंदी आदिक भगवान शंकर के पीछे चले।
भगवान शंकर आगे-आगे शस्त्र आदिक लेकर चले। वाह जगत के हित के लिए त्रिपुर दहन को नंदी पर सवार हुए। उनके पीछे सभी गण और देवता थे। यम, पवन, गरुड, वायु, ही सब भगवान के पीछे थे।
दुर्गा जी पर चढ़ी हुई अंकुश, शूल, खड़ग, आदि धारण किए हुए साथ साथ चलने लगी। शिवजी पर फूलों की वर्षा होने लगी देवता जय जय कार का नारा गुंजा के चले।
सकल लोग के हित के लिए त्रिपुर दहन के लिए त्रिशूली (शिव जी) इस प्रकार से चले। यदि चाहे तो वह त्रिलोकी को क्षण मात्र में भस्म कर सकते हैं। परंतु लीला हेतु इस त्रिपुर बाण को आयुधो से युक्त देवताओं के साथ इस प्रकार चल रहे थे। कब महादेव के धनुष तानने पर तीनों पुर एकसाथ इकठ्ठे हो गए। देवताओं को बड़ा हर्ष हुआ और जय हो जय हो कि ध्वनि करने लगे तथा भगवान शंकर की स्तुति करने लगे।
तब ब्रह्माजी बोले - इस समय पुष्प योग है। अब आप लीला त्याग दो, आपको विष्णु या मुझसे क्या प्रयोजन है? इस पुष्पा योग में तीनों पुरो को दग्ध करदो। तब भगवान ने हंसते हुए एक ही बाण छोड़ा। वह बाण उसी क्षण त्रिपुर को भस्म कर पुनःदेव देव शंकर जी के पास लौट आया। यह लीला बड़ी विचित्र हुई, इसको देखकर सभी देवता, विष्णु आदि सभी स्तुति करने लगे। ब्रम्हा ने कहा - हे देव देवेश्वर आप प्रसन्न होइए। पांच आपके भयंकर मुख है। आपका कोटि सूर्य के समान तेज है। रूद्र रूप हो आप ही अघोर रूप हो। शिव रुकती आप ही हो आपको नमस्कार है। आप सहस्त्र सिर तथा सहस्त्र पाद वाले हो। हे तत्पुरुष आपको नमस्कार है। देखने मात्र से ही आप तीनों पुरो को दग्ध करने की क्या तीनों लोकों को भी लय कर सकते हो, आपका दिव्य तेज कहां और हमारी लघु स्तुति को भी सामर्थ्य कहां तो भी हमारी भक्ति से पुकारते हुए आप रक्षा करें।
सूत जी कहते हैं कि ब्रह्मा के द्वारा स्तुति की स्त्रोत्र जो भी पड़ता है वह सब प्रकार के बंधन से मुक्त हो जाता है।
शिव जी बोले - हे देव शिल्पी विश्वकर्मा आपके दिव्य रथ और अस्त्र-शस्त्र बाण धनुष के निर्माण से ही यह त्रिपुर युद्ध में मुझे और मेरे सभी देवता गणो को सहायता प्राप्त हुई है आपको बार-बार प्रणाम आपने सदाय निर्माण और शक्ति का संचार होता रहे। 
तब शिवजी ब्रह्मा से प्रसन्न होकर पार्वती जी की ओर देखकर बोले - हे ब्रह्मा मैं आपसे प्रसन्न हू वरदान मांगे। ब्रम्हा बोले - हे त्रिपुरारि, आपने मेरी भक्ति और मेरी भक्ति तथा सारथीपणे से आप प्रसन्न हो। तब भगवान विष्णु भी साम्ब सदाशिव की हाथ जोड़कर वंदना करने लगे बोले कि हे देवेश, आप मे मेरी दृढ भक्ति हो। आपको बारंबार नमस्कार करता हूं।
इस प्रकार ब्रह्मा विष्णु आदि की स्तुति सुनकर त्रिपुरारी पार्वती सहित अंतर्ध्यान हो गए। देवता भी विस्मित हुए प्रणाम कर अपने-अपने लोक चले गए।
इस तरह प्रमाणोयुक्त लिंग पुराण में वर्णित विश्वकर्मा जी द्वारा त्रिपुर दहन के लिए रुद्र रथ का निर्माण और त्रिपुर युद्ध का वर्णन किया गया है।
मयूर मिस्त्री 
विश्वकर्मा साहित्य भारत 

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