वैवस्वत मनु

वैवस्वत मनु

भागवत में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है।

श्वेत वराह कल्प में 14 मनुओं का उल्लेख है। प्रत्येक मनु ने एक मन्वंतर में राज किया। 
वैवस्वत मनु धर्म ग्रंथो के अनुसार मानव जाति के प्रणेता व प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु के बाद सातवें मनु थे। हरेक मन्वंतर में एक प्रथम पुरुष होता है, जिसे मनु कहते हैं। वर्तमान काल में ववस्वत मन्वन्तर चल रहा है, जिसके प्रथम पुरुष वैवस्वत मनु थे, जिनके नाम पर ही मन्वन्तर का भी नाम है। भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। विवाह के बाद संज्ञा ने वैवस्वत और यम (यमराज) नामक दो पुत्रों और यमुना (नदी) नामक एक पुत्री को जन्म दिया। यमुना को ही कालिन्दी कहा गया। यही विवस्वान यानि सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु कहलाये।
वैवस्वत मनु की शासन व्यवस्था में देवों में पाँच तरह के विभाजन थे: देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान श्री राम हुए हैं।

श्री भगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।

विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।4.1।।
 
वेद, पुराणों और अन्य धर्मग्रंथों के साथ वैज्ञानिक शोधों व अध्ययनों से ज्ञात होता है कि मनुष्य व अन्य जीव-जंतुओं की वर्तमान आदि सृष्टि हिमालय के आसपास की भूमि पर हुई थी जिसमें तिब्बत का सर्वधिक महत्त्व है। हिमालय के पास होने के कारण पूर्व में भारत वर्ष को हिमवर्ष भी कहा जाता था। वेद-पुराणों में तिब्बत को त्रिविष्टप कहा गया है। महाभारत के महाप्रस्थानिक पर्व में स्वर्गारोहण में स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत हिमालय के उस राज्य को पुकारा जाता था जिसमें नंदनकानन नामक देवराज इंद्र का देश था। इससे सिद्ध होता है कि इंद्र स्वर्ग में नहीं धरती पर ही हिमालय क्षेत्र में रहते थे।
आर्य अनुसार
पूर्व में यह धरती जल प्रलय के कारण जल से ढँक गई थी। कैलाश, गोरी-शंकर की चोटी तक पानी चढ़ गया था। इससे यह सिद्ध होता है कि संपूर्ण धरती ही जलमग्न हो गई थी। कई माह तक वैवस्वत मनु द्वारा नाव में ही गुजारने के बाद उनकी नाव गौरी-शंकर के शिखर से होते हुए नीचे उतरी। गोरी-शंकर जिसे माउंट एवरेस्ट शिखर भी कहा जाता है, विश्व में सबसे ऊँचा, बर्फ से ढँका हुआ और ठोस पहाड़ है। तिब्बत में धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि और वातावरण में तेजी से होते परिवर्तन के कारण वैवस्वत मनु की संतानों ने अलग-अलग भूमि की बढ़ना आरंभ किया। विज्ञान के अनुसार भी पहले पृथ्वी के सभी महाद्वीप इकट्ठे थे। अर्थात अमेरिका द्वीप इधर अफ्रीका और उधर चीन तथा रूस से जुड़ा हुआ था। अफ्रीका भारत से जुड़ा हुआ था। धरती की घूर्णन गति और भू-गर्भीय परिवर्तन के कारण धरती द्वीपों में बँट गई।
इस जुड़ी हुई धरती पर ही हिमालय की निम्न श्रेणियों को पार कर मनु की संतानें कम ऊँचाई वाले पहाड़ी विस्तारों में बसती गईं। फिर जैसे-जैसे समुद्र का जल स्तर घटता गया वे और भी मध्य भाग में आते गए। दक्षिण के इलाके तो जलप्रलय से जलमग्न ही थे। लेकिन बहुत काल के बाद धीरे-धीरे जैसे-जैसे समुद्र का जलस्तर घटा मनु का कुल पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी मैदान और पहाड़ी प्रदेशों में फैल गए। जो हिमालय के इधर फैलते गए उन्होंने ही अखंड भारत की सम्पूर्ण भूमि को ब्रह्मावर्त, ब्रह्मार्षिदेश, मध्यदेश, आर्यावर्त एवं भारतवर्ष आदि नाम दिए। जो इधर आए वे सभी मनुष्य आर्य कहलाने लगे। यही लोग साथ में वेद लेकर आए थे। इसी से यह धारणा प्रचलित हुई कि देवभूमि से वेद धरती पर उतरे। स्वर्ग से गंगा को उतारा गया आदि अनेक धारणाएँ।

इन आर्यों के ही कई समूह अलग-अलग झुंडों में पूरी धरती पर फैल गए और वहाँ बस कर भाँति-भाँति के धर्म और संस्कृति आदि को जन्म दिया। मनु की संतानें ही आर्य-अनार्य में बँटकर धरती पर फैल गईं। पूर्व में यह सभी देव-दानव कहलाती थीं। इस धरती पर आज जो भी मनुष्य हैं वे सभी वैवस्वत मनु की ही संतानें हैं इस विषय में विद्वानों में मतभेद हैं।
अयोध्या के स्थापक वैवस्वत मनु
पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा से जब वैवस्वत मनु ने अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही तो वे उन्हें विष्णुजी के पास ले गए. विष्णुजी ने उन्हें साकेतधाम में एक उपयुक्त स्थान बताया। विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा तथा वैवस्वत मनु के साथ देवशिल्पी विश्वाकर्मा जी को यह महत्वपूर्ण कार्य दिया गया और पूर्ण किया गया। 

इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्ता स्थान ढूंढने के लिए महर्षि वशिष्ठ को भी उनके साथ भेजा गया। मान्यता है कि वशिष्ठो द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया, जहां प्रभु विश्वंकर्मा ने नगर का निर्माण किया. स्कंयदपुराण के अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु  के चक्र पर विराजमान है। 
जैसे प्रतिष्ठानपुर और यहां के चंद्रवंशी शासकों की स्थापना मनु के पुत्र ऐल से जुड़ी है। 

गायत्री पीठ के अनुसार
अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से 5630 वर्ष पूर्व हुआ था। श्रीराम शर्मा आचार्य (गायत्री शक्ति पीठ)

पौराणिक कथा के अनुसार
मत्स्य पुराण में उल्ले‍ख है कि सत्यव्रत नाम के राजा एक दिन कृतमाला नदी में जल से तर्पण कर रहे थे। उस समय उनकी अंजुलि में एक छोटी सी मछली आ गई। सत्यव्रत ने मछली को नदी में डाल दिया तो मछली ने कहा कि इस जल में बड़े जीव जंतु मुझे खा जाएंगे। यह सुनकर राजा ने मछली को फिर जल से निकाल लिया और अपने कमंडल में रख लिया और आश्रम ले आए।

रात भर में वह मछली बढ़ गई। तब राजा ने उसे बड़े मटके में डाल दिया। मटके में भी वह बढ़ गई तो उसे तालाब में डाल दिया अंत में सत्यव्रत ने जान लिया कि यह कोई मामूली मछली नहीं जरूर इसमें कुछ बात है तब उन्होंने ले जाकर समुद्र में डाल दिया। समुद्र में डालते समय मछली ने कहा कि समुद्र में मगर रहते हैं वहां मत छोड़िए, लेकिन राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि आप मुझे कोई मामूली मछली नहीं जान पड़ती है आपका आकार तो अप्रत्याशित तेजी से बढ़ रहा है बताएं कि आप कौन हैं।
तब मछली स्वरुप में भगवान विष्णु ने प्रकट होकर कहा कि आज से सातवें दिन प्रलय वर्षा के कारण पृथ्वी समुद्र में डूब जाएगी। तब मेरी प्रेरणा से तुम एक बहुत बड़ी नौका बनाओ औ जब प्रलय शुरू हो तो तुम सप्त ऋषियों सहित सभी प्राणियों को लेकर उस नौका में बैठ जाना तथा सभी अनाज उसी में रख लेना। अन्य छोटे बड़े बीज भी रख लेना। नाव पर बैठ कर लहराते महासागर में विचरण करना।

प्रचंड आंधी के कारण नौका डगमगा जाएगी। तब मैं इसी रूप में आ जाऊंगा। तब वासुकि नाग द्वारा उस नाव को मेरे सींग में बांध लेना। जब तक ब्रह्मा की रात रहेगी, मैं नाव समुद्र में खींचता रहूंगा। उस समय जो तुम प्रश्न करोगे मैं उत्तर दूंगा। इतना कह मछली गायब हो गई।

राजा तपस्या करने लगे। मछली का बताया हुआ समय आ गया। वर्षा होने लगी। समुद्र उमड़ने लगा। तभी राजा ऋषियों, अन्न, बीजों को लेकर नौका में बैठ गए। और फिर भगवान रूपी वही मछली दिखाई दी। उसके सींग में नाव बांध दी गई और मछली से पृथ्वी और जीवों को बचाने की स्तुति करने लगे। मछली रूपी विष्णु ने उसे आत्मतत्व का उपदेश दिया। मछली रूपी विष्णु ने अंत में नौका को हिमालय की चोटी से बांध दिया। नाव में ही बैठे-बैठे प्रलय का अंत हो गया।

यही सत्यव्रत वर्तमान में महाकल्प में विवस्वान या वैवस्वत (सूर्य) के पुत्रा श्राद्धदेव के नाम से भी विख्यात हुए। वही वैवस्वत मनु के नाम से भी जाने गए। 
वैवस्वत मनु ने स्वयं अयोध्या का निर्माण किया।
मनु के पुत्रों से इन राजवंशों की स्थापना हुई-
इक्ष्वाकु, शर्याति, नाभानेदिष्ट नाभाग, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, पृषध्र और प्रांशु।

इला का विवाह बुध के साथ हुआ जिससे उसे पुरूरवा नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। यही पुरूरवा प्रख्यात ऐल या चंद्र वंश का संस्थापक था। कुछ विद्वान मनु और वैवस्वत मनु को एक ही मानते हैं।

भगवान सूर्य के साथ उनके पुत्र वैवस्वत की पूजा
भविष्य पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण ने अपने पुत्र को बताया था सूर्य पूजा का महत्व। 
आषाढ़ महीने की सप्तमी तिथि पर भगवान सूर्य के साथ उनके पुत्र वैवस्वत मनु की भी पूजा की जाती है।

शतपथ ब्राह्मण
शतपथ ब्राह्मण में उन्हें श्रद्धादेव कहा गया है, *'श्रद्धादेवो वै मनु:' (का॰ 1 प्र॰ 1)* भागवत में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है ।

ततो मनु: श्राद्धदेवः संज्ञायामास
श्रद्धायां जनयामास दश पुत्रान् स आत्मवान् । (9-1-11)

ज्योतिष ग्रंथो के अनुसार
कुछ विद्वानों और ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार अभी वैवस्वत मनवंतर चल रहा है। सूर्यदेव ने देवमाता अदिति के गर्भ से जन्म लिया था और विवस्वान एवं मार्तण्ड कहलाए। इन्हीं की संतान वैवस्वत मनु हुए जिनसे सृष्टि का विकास हुआ है। इन्हीं के नाम पर ये मन्वंतर है। शनि महाराज, यमराज, यमुना और कर्ण भी भगवान सूर्य की ही संतान हैं।

गौतम धर्मसूत्र 
गौतम धर्म सूत्र में ‘त्रीणि प्रथमार्न्यनिर्देश्यार्नि मनु’ कहकर मनु क समर्थन कियार् है।

महाभारत के अनुसार
महाभारत में जिस मनु को पहला राजा बनाने का साक्ष्य उपलब्ध है, वे ही हमारे 154 राजाओं में प्रथम राजा वैवस्वत मनु हैं।

सन्दर्भ -
गायत्री शक्तिपीठ 
मनुस्मृति
शतपथ ब्राम्हण 
श्वेत वराह कल्प 
भागवत पुराण 
विश्वकर्मा पुराण 
महाभारत 
भविष्य पुराण 
वियस्वान वंश
वैवस्वत पुराण 

लेख संकलनकर्ता -
मयूर मिस्त्री
संस्थापक प्रचारक
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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