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Showing posts from April, 2021

विश्वकर्मा और हनुमान

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विश्वकर्मा और हनुमान  प्रभु श्रीराम की भक्ति की सबसे लोकप्रिय पवित्र छवि और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ती में प्रधान हैं। कुछ ग्रंथो के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" (पवन पुत्र) हैं। जम्बूद्वीप के वर्ष मेरु पर्वत के दक्षिण में पहला भारतवर्ष, दूसरा किम्पुरुषवर्ष तथा तीसरा हरिवर्ष है। इसके दक्षिण में रम्यकवर्ष, हिरण्यमयवर्ष और तीसरा उत्तरकुरुवर्ष है। इसमे जो किम्पुरुषवर्ष हे उनके आधिपत्य स्वामी श्री हनुमान जी हैं। वहाँ पर भगवान श्रीरामचन्द्र जी की पूजा होती है। हनुमानजी का वाहन : 'हनुमत्सहस्त्रनामस्तोत्र' के 72वें श्‍लोक में उन्हें 'वायुवाहन:' कहा गया। मतलब यह कि उनका वाहन वायु है। वे वायु पर सवार

नारद मुनि की वीणा

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नारद मुनि की वीणा मुनियों की सभा में सूत कथा कह रहे थे नए-नए प्रश्नों में नहीं कथा के बारे में कुलपति मुनि शौनक नई नई चर्चाऐ सुनते रहते थे और सभी को सुनने में तल्लीन भी कर रहे थे तभी वहां पर वीणा का मधुर स्वर सुनाई दिया। सभी ने आकाश मठ की तरफ देखा तो देवश्री नारद आ रहे थे। उनकी देवी वीणा पर उनकी उंगलियां फिरते मधुर ध्वनि उत्पन्न हो रही थी और उस ध्वनि ऑन के साथ नारायण नारायण नाम का उच्चार भक्ति मार्ग सहीत नारद जी आ रहे थे। श्रोता वक्ताओं और सभी ने खड़े होकर देवर्षि नारद जी का अभिवादन किया और उनको उचित आसन देकर मुनि शौनक मैं उनका अध्यॅ पाद्य आदि अर्पण कर के पूजन किया। सदा में देवर्षि विराजे और मुनि शौनक ने प्रश्न किया हे देवर्षि आपके जैसे महापुरुष के दर्शन निरथॅक नहीं होते। आज हम सबको आपके दर्शन हुए हैं वही हमारा अहोभाग्य है आपका आगमन का कोई शुभ है तू है वह तो हमें कहिए और साथ ही आपके सत्संग का हमें भी लाभ दीजिए। देवर्षि बोले है - हे मुनिओ आपको धन्य है की आप सभी इस तरह के ज्ञानसत्रो की योजना कर नित्य ज्ञानचर्चा के द्वारा परमात्मा की भक्ति कर रहे हो। मैं आकाश मार्ग पर स्वर्ग ग

सूर्य के सात घोड़ों का रहस्य

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सूर्य और सात घोडो का रहस्य पुराणों में वर्णित  पुराणों में उल्लेख मिलता है कि सूर्य के रथ में जुते हुए घोड़े के नाम हैं 'गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति।' यह सात नाम सात छंद हैं। यानी सात छंत हैं जो अश्व रुप में सूर्य के रथ को खींचते हैं। रोचक तथ्य हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं तथा उनसे जुड़ी कहानियों का इतिहास काफी बड़ा है या यूं कहें कि कभी ना खत्म होने वाला यह इतिहास आज विश्व में अपनी एक अलग ही पहचान बनाए हुए है। विभिन्न देवी-देवताओं का चित्रण, उनकी वेश-भूषा और यहां तक कि वे किस सवारी पर सवार होते थे यह तथ्य भी काफी रोचक हैं l सूर्य रथ हिन्दू धर्म में विघ्नहर्ता गणेश जी की सवारी काफी प्यारी मानी जाती है। गणेश जी एक मूषक यानि कि चूहे पर सवार होते हैं जिसे देख हर कोई अचंभित होता है कि कैसे महज एक चूहा उनका वजन संभालता है। गणेश जी के बाद यदि किसी देवी या देवता की सवारी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है तो वे हैं सूर्य भगवान। सात घोड़े सूर्य भगवान सात घोड़ों द्वारा चलाए जा रहे रथ पर सवार होते हैं। सूर्य भगवान जिन्हें आदित्य, भानु और रवि भी कह

विश्वकर्मा द्वारा सूर्य तक्षण कथा

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विश्वकर्मा द्वारा सूर्य तक्षण कथा हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहीतं मुखं ।  तत्त्वं पूषण अपावृणु सत्य धर्माय दृष्टये । पुराणों में सूर्य को लेकर अत्यन्त ही सुन्दर कथा आती है । आइये सूर्य और उनकी संतति के जन्म की संक्षिप्त कथा को जानने की कोशिश करें । मरीचि मुनि ब्रह्माजी के पुत्र हैं । उन मरीचि मुनि के पुत्र का नाम कश्यप मुनि था । ये प्रजापतियों में सबसे अधिक श्रीसम्पन्न थे क्योंकि ये देवताओं के पिता थे । बारहों आदित्य उन्हीं के पुत्र थे । द्वादश आदित्य में मार्तण्ड महान प्रतापशाली थे । सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य का आविर्भाव हुआ था । वे अण्ड के साथ उत्पन्न हुये और अण्ड में रहते हुये ही उन्होंने वृद्धि प्राप्त की । बहुत दिनों तक अण्ड में रहने के कारण ये मार्तण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुये । जब ये अण्ड में स्थित ते तभी दक्ष प्रजापति विश्वकर्मा ने अपनी रूपवती कन्या रूपा को भार्या के रूप में इन्हें अर्पित किया । अन्य जगह पर इन्हीं रूपा का नाम संज्ञा बताया गया है और इनको देवशिल्पी विश्वकर्मा की पुत्री बताया गया । कल्पान्तर में ऐसा सम्भव हो सकता है । दक्ष की आज्ञा से ही विश्वकर्मा न

पुष्पक विमान और विमानिक विज्ञान

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पुष्पक विमान और विमानिक विज्ञान  विमान निर्माण, उसके प्रकार एवं संचालन का संपूर्ण विवरण महर्षि भारद्वाज विरचित वैमानिक शास्त्र में मिलता है। यह ग्रंथ उनके मूल प्रमुख ग्रंथ यंत्र-सर्वेश्वम् का एक भाग है। वैमानिक-शास्त्र में आठ अध्याय, एक सौ अधिकरण, पांच सौ सूत्र (सिद्धांत) और तीन हजार श्लोक हैं। यह ग्रंथ वैदिक संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस विमान में जो तकनीक प्रयोग हुई है, उसके पीछे आध्यात्मिक विज्ञान ही है। ग्रंथों के अनुसार आज किसी भी पदार्थ को जड़ माना जाता है, किंतु प्राचीन काल में सिद्धिप्राप्त लोगों के पास इन्हीं पदार्थों में चेतना उत्पन्न करने की क्षमता उपलब्ध थी, जिसके प्रयोग से ही वे विमान की भांति परिस्थितियों के अनुरूप ढलने वाले यंत्र का निर्माण कर पाते थे। वर्तमान काल में विज्ञान के पास ऐसे तकनीकी उत्कृष्ट समाधान उपलब्ध नहीं हैं, तभी ये बातें काल्पनिक एवं अतिशयोक्तिपूर्ण लगती हैं। लेकिन प्रमाण युक्त ग्रंथ और अनेक जगह पर उल्लेख किया जाना ये भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।  देव शिल्पी द्वारा विमान रचना प्राचीन हिंदू साहित्य में देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए अन

वैवस्वत मनु

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वैवस्वत मनु भागवत में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। श्वेत वराह कल्प में 14 मनुओं का उल्लेख है। प्रत्येक मनु ने एक मन्वंतर में राज किया।  वैवस्वत मनु धर्म ग्रंथो के अनुसार मानव जाति के प्रणेता व प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु के बाद सातवें मनु थे। हरेक मन्वंतर में एक प्रथम पुरुष होता है, जिसे मनु कहते हैं। वर्तमान काल में ववस्वत मन्वन्तर चल रहा है, जिसके प्रथम पुरुष वैवस्वत मनु थे, जिनके नाम पर ही मन्वन्तर का भी नाम है। भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। विवाह के बाद संज्ञा ने वैवस्वत और यम (यमराज) नामक दो पुत्रों और यमुना (नदी) नामक एक पुत्री को जन्म दिया। यमुना को ही कालिन्दी कहा गया। यही विवस्वान यानि सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु कहलाये। वैवस्वत मनु की शासन व्यवस्था में देवों में पाँच तरह के विभाजन थे: देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई