विश्वकर्मा हस्त शोभित गज और उसकी महिमा

विश्वकर्मा हस्त शोभित गज और उसकी महिमा
विश्वकर्मा जी की कृपा से हम सभी सनातन धर्म के लोग घर, दुकान, महल, मंदिर, गढ, या कोई भी वस्तु बनाते हैं तो उन्हें नापने का कोई उत्तम और एकम होता है उसी एकम को गज का नाम दिया हुआ है जो वैदिक काल से अनेक वास्तु ग्रंथो मे दर्शाया गया है 

कला से जुड़े सभी कारीगर वर्ग इस गज यंत्र की पूजा अवश्य करते आए हैं तो आज विश्वकर्मा साहित्य भारत के माध्यम से जानते हैं कि गज और उनकी महिमा का वर्णन और कार्य। 
विश्वकमाॅ भगवान की सभी कला और साधनों में  काम आते विशेष हथियारों में सवॅश्रेष्ठ और प्रभु का स्वरूप गज को माना जाता है जो सारे ब्रह्मांड के अणु - परमाणु से लेकर योजन पयॅन्त और सुक्ष्मादी सुक्ष्मसाकार विराट वैभव गज में  सम्मिलित हें। जिनके द्वारा ही यह विश्व का संचालन चलता हे. यह गज ये विश्वकमाॅ का सुक्ष्म स्वरूप हे. गज सुक्ष्म और साकार यह दोनों प्रकार के हे, जो किसी ने किसी रीते विश्व के सृजन में काम आता हें. जिसके बिना जगत का संचालन और आंकलन शक्य नही, जिन्हें हम सप्तसुत्र के नाम से पहचाने हें. इसे धारण करने वाला " सुत्रधार " के नाम से जाना जाता है। 

सप्त सुत्र के नाम 
(1) द्रष्टि सूत्र 
(2) गज 
(3) सूत्र की दोरी 
(4) सहीकोण (काष्ठ काटकोण) 
(5) सांधणी (लेवल मापक) 
(6) मुंज की दोरी 
(7) विलेख्य (प्ररिकर) 
(8) अवलंब
   
इसी आठ सुत्र को आठ प्रकार का गज कहने में आते हैं, उसमें लकड़ा अथवा लोहा को गज को अनुक्रम 24 इंच और 36 इंच का गज मुख्य हें उसमे हरएक इंच पर एक-एक देव का स्थान नक्की करने में आया हें। 

रुद्रो वायुविॅरुपश्र्व वह्रिब्रॅम्हा यमस्तथा।
वरुणो धनदो विष्णुः पुष्पेपु नव देवताः ।।

रुद्र, वायु, विश्वकर्मा, अग्नि, ब्रम्हा, काल, वरुण, कुबेर और विष्णु यह नव देवतागण पुष्प मे रहते हैं अर्थात पवॅ के देवता हैं।

रुद्र वायु विश्वकमाॅहुताशो, ब्रह्म, काल स्तोययः सामे विष्णु: ।
पुष्ये देवा मूलतोस्मियमध्यात् पंचाष्टंत्यंद्रंयं अग्नि दैवी भज्यः ॥१॥

इशो मारुत विश्ववाहि विधयः सूर्यो च इन्द्रो यमः ।
वैरुयो वसवो अष्टद् दंति वरुणोष चक्र इच्छा क्रिया ॥२॥

ज्ञान वितयतिनिशाय तिज्यो श्री तासुदेवो हली ।
कामों विश्नुंरिति कमॅेण मरुतो हस्ते त्रये विशंति ॥३॥

गज के देव -
(1) महादेव (2) वायु (3) विश्वदेव (4) अग्नि (5) ब्रह्मा (6) सूयॅ (7) इन्द्र (8) यम (9) विश्वकमाॅ  (10) अष्टम वसु (11) गणपति (12) वरुण (13) कार्तिक (14) इच्छादेवी (15) क्रियादेवी (16) ज्ञान (17) कुबेर (18) चंद्र (19) जय (20) कृष्ण (21) बलभद्र (22) कामदेव (23) विष्णु 

गज को विश्वकर्मा जी ने अपने हाथो पर धारण किया हुआ है इसीलिये विश्वकर्मा जी को गजधारी भी कहा गया है।

एकैकाड्गुलभागेषु त्रयोविंशतिरेग्वकाः ।
ईशो वायुश्र्वं विश्वेशो बह्रिब्रॅम्हा च भास्करः ।।
रुद्रकालविरुपाश्र्व वसवोऽष्ठौ गजाननः ।
वरुणः कातिॅकेयश्र्व इच्छादेवी क्रिया तथा ।।
ज्ञानश्र्व धनदश्र्चंद्रो जयः श्रीवासुदेवकः ।
बलरामञ्च कामाख्यो विष्णू रेखासु देवताः ।।

हस्त (गज) मे एक एक उंगली के अन्तर पर तेईस रेखाएं अलंकृत करे । उसमे नीचे दिए क्रमानुसार देवता को स्थापित करे।

गज वास्तुशास्त्र का पुराना अंग है प्राचीन वास्तुकार और तजज्ञो द्वारा सभी हिसाब "गज" और "तसु" के नाप अनुसार किए गए थे। इसीलिए गज के द्वारा लिए गए नाप के क्षेत्रफल योग्य और शुभ फल देने वाला साबित होते हैं। वास्तुशास्त्र के नियमो को सम्भालने और उल्लेखनीय रखने के लिए विश्वकर्मा जी ने काष्ठ से गज निर्माण किया था। गज यंत्र को जगत के लिए विश्वकर्मा जी ने बनाया है।

एक समान आकार के आठ दाने जौ के आड़े रखिए और सभी दाने एक दूसरे को छूते हुए रखिए उस दौरान जितना लंबाई का नाप होता है उसी को एक तसु की लंबाई कहते हैं ऐसे चौबीस तसु से एक गज बनता है और बारह तसु की लंबाई बराबर एक ताल होता है इस माप को "ज्येष्ठ गज" कहते हैं, सात आड़े जौ के दाने बराबर एक तसु ऐसे चौबीस तसु के माप को "मध्यम गज" कहते हैं, आड़े जौ बराबर एक तसु ऐसे चौबीस तसु के गज को "कनिष्ठ गज"  कहते हैं।

नगरग्रामखेटादीन् क्रोशादियोजनादिकम् ।
वनोपवनमागाॅदीन् ज्येष्ठहस्तेन मापयेत् ।।

नया गाव बसाना, नगर, योजन का नाप ज्येष्ठ गज द्वारा लिया जाता है। मकान, महल, हवेली, मंदिर, मूर्ति बनाने के लिए मध्यम गज से मापा जाता है। और पालखी, खाट, सिंहासन, ख़ुरशी, बैल गाड़ी, रथ का माप कनिष्ठ गज द्वारा लिया जाता है। गज की पट्टी पर गज मे नव देवताओ का स्थापन किया गया है।
एक गज मे चौबीस तसु के कुल तेइस आंके (रेखा) करने मे आई है। उस आंके पर भी एक एक देवताओं का स्थान है लेख में आगे पूर्ण तेईस देवताओ के नाम आगे दिए गए हैं।

विश्वकर्मा जी ने इसी तरह गज मे देवताओं के स्थापन कर गज की महिमा अति शक्तिशाली और आलौकिक की है।

कहा जाता है कि विश्वकर्मा जी ने गज के द्वारा चारो युगों मे महत्वपूर्ण निर्माण किए हैं। सत्ययुग मे सोने के गज से अमरावती नगरी का निर्माण किया था। त्रेतायुग मे चांदी के गज से लंका नगरी का निर्माण हुआ था। द्रापरयुग मे चंदन और बांस के गज के द्वारा द्वारिकापुरी का निर्माण किया था। और कलियुग में काष्ठ और लौह से बने गज द्वारा चौसठ कलाओं का निर्माण किया था।

कुंद्दालं करणि वास्यमियंत्रं गजं कमंडलु।
बिभ्राणं दक्षिणैहॅस्तै स्वरोह क्रमांत्प्रभुं ।।

मेरुंटंकं स्वनं भूषां विहिनं चदधतं करै ।
अवरोह क्रमेणेव वामै शुॅभ विलोचनं ।। 

कुदाल, करनी, वास्य यंत्र, अमियंत्र, कमंडल, गज आदि आयुधो को बाये हाथ में धारण किया है और मेरु, टांचना, भूषा, धंटा, अग्नि को दाये हाथ में धारण किया है ऐसे शुभ नेत्रोंवाले कृपालु परमात्मा विराट विश्वकर्मा का ध्यान करना चाहिए।

पवेरेग्वास्त्रिमात्राभिस्ताश्र्व पुष्पेरलड्कृताः ।
अग्रे रुद्रो विधिमॅध्ये विष्णुरन्ते प्रतिष्ठितः ।।

हस्त (गज) मे तीन तीन मात्राओ (उँगलियों) के अन्तर पर पर्व की रेखाएं करे और उनको फ़ूलों (चौकड़ी) के द्वारा अलंकृत करे । हस्त के पहले छेड़े पर रुद्र, मध्य भाग में ब्रम्हा और अंत भाग पर विष्णु की प्रतिष्ठा करे।

गज के लिए बहुत महत्वपूर्ण नियम होते हैं जैसे कि उसे पकडने के तरीके होते हैं उसे पकडते वक़्त गज मे दिए गए आंके जो इंच मे होते हैं उन्हें कोई भी उंगली छुए नहीं इस तरीके से पकडा जाता है। सर्व कार्य आरंभ में भौवन देव, इस्ठ देव, और कर्म देव श्री विश्वकर्मा जी की पूजा विधिगत पूजन और मंत्र विधान से करनी चाहिए। गज की पूजा पूर्ण निष्ठा के साथ करने से योग्य फल प्राप्त होता है। हरएक 6 इंच पर शास्त्र का निवास स्थान है छंद शास्त्र, कल्प शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, व्याकरण शास्त्र, शिक्षा शास्त्र, निरूक्त शास्त्र जैसे छह वेदांत की कल्पना की गई है। 36 इंच के गज मे 36 प्रकार के हथियार का सूचक है निर्माण और सृजन मे उसी हथियार को मुख्य माना जाता है।

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संकलन कर्ता -
मयूर मिस्त्री
विश्वकर्मा साहित्य भारत

सन्दर्भ -
विश्वकर्मा प्रकाश
विश्वकर्मा पुराण
समरांगण सूत्रधार
मयमतम्
शिल्प रत्नाकरः

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