बेल मेटल शिल्पकला

प्राचीन शिल्पकला
बेल मेटल शिल्पकला
विश्वकर्मा समाज पहले से ही हस्तघडित उद्योग से जुड़ा हुआ है प्राचीन काल में उपयोग होने वाले हस्त से बनाए कला कृति शिल्प और बेजोड़ बेनमून शिल्प कुछ कुछ जगह आज भी कार्यरत देखने को मिल रही है 
विश्वकर्मा समाज एक कार्यशील समाज हे उनके जीवन निर्वाह का साधन ही किसी न किसी तरह की कला से जुड़ा हुआ है आज बात करते हैं ऐसे ही एक अनमोल कला की जो अद्भुत और प्राचीन काल से चली आ रही है 
छत्तीसगढ़ के अनेक क्षेत्रों में बेल मेटल शिल्प का कार्य होता आया है बेल मेटल शिल्प आदिकाल से हड़प्पा मोहनजोदड़ो सभ्यता के समय भी इस प्रकार के शिल्पों का प्रमाण मिला है इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह शिल्प अत्यधिक प्राचीनतम है। इस शिल्प में कासा एवं पीतल को मिलाकर बेलमेटल की मूर्तियां बनाई जाती है बेल मेटल शिल्प बनाने में भूसा मिट्टी का मॉडल बनाते हैं।

मॉडल में चिकनी मिट्टी का लेप करते हैं उसके पश्चात रेत माल पेपर से साफ करते हैं पुनः चिकनी मिट्टी से लेप करते हैं उसके पश्चात मोम के धागे से मॉडल पर डिजाइन बनाई जाती है तथा मॉडल में प्लेन मोम लगाया जाता है मोम के ऊपर चिकनी मिट्टी का लेप करते हैं तत्पश्चात भूसा मिट्टी से छापते हैं, जिसमें पीतल को मॉडल में डालते हैं जिस पर मोम रखी रहती है पीतल अपनी जगह ले लेता है मॉडल ठंडा होने पर मिट्टी को तोड़कर कलाकृति को निकालकर उसे लोहे के ब्रस एवं फाइल से साफ कर बफिंग करते हैं।
बेलमेटल शिल्प की विशेषता है कि बेलमेटल आर्ट के तहत आकृति गढ़ने के लिए पीतल, मोम और मिट्टी की जरूरत होती है।इस शिल्प में मिट्टी और मोम की कला का विशेष महत्व होता है। बिना मिट्टी और मोम के बेलमेटल शिल्पकला की कल्पना नहीं की जा सकती। मिट्टी और मोम के माध्यम से पात्र बनाकर उसे आग में तपाकर पीतल की मूर्ति में परिवर्तित किया जाता है और इन पर बारीक कारीगरी की जाती है।

यह कलाकृतियां पूरी तरह से हाथों से बनी होती है। छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड बेलमेटल शिल्पकारों के उत्थान और संवर्धन के लिए लगातार प्रयासरत है। बेल मेटल की शिल्प 12 विभिन्न प्रक्रियाओं के पश्चात बेलमेटल की कलाकृति बनकर तैयार होती है। इस शिल्प में राज्य के लगभग 2 हजार पांच सौ से अधिक शिल्पी परिवार जुड़े हुए हैं।
विश्वकर्मा समाज ऐसे ही प्रगति की दिशा में अग्रसर होकर अपनी पहचान को देश की धरोहर के रूप प्रचलित करते रहे और आज के आर्टिफिशल ज़माने में सरकार द्वारा अनुमति लेकर बड़े शिल्प मेलों का आयोजन कर आगे की दिशा तय कर सकते हैं।
मयूर मिस्त्री मोड़ासा
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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