देवी महा शक्ति के लिए विश्वकर्मा जी द्वारा रचना निर्माण


देवी महा शक्ति के लिए विश्वकर्मा जी द्वारा रचना निर्माण
भारतीय वैदिक संस्कृति एक हाथ में शस्त्र तथा दूसरे हाथ में शास्त्र का संदेश देती है। वैदिक काल मे तत्कालिन भगवान विश्वकर्मा और ऋषि मुनियों ने दुष्टों के दमन हेतु आयुध निर्माण पद्धति को विकसित किया था। भारतीय संस्कृति में सदैव ‘बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय’ का सिद्धान्त विद्यमान रहा है।

विश्वकर्मा साहित्य भारत द्वारा अनेक विषय पर लेख आप सभी पढ़ चुके हैं हमारा उद्देश्य मात्र एक ही है कि विश्वकर्मा वंशी के जन-जन तक यह साहित्य द्वारा प्रगतिशील जागरुकता आए और उल्लेखनीय जानकारी प्राप्त हो सके।

प्रभु विश्वकर्मा जी द्वारा और उनके वंशागत द्वारा अनेक रचनाएं निर्माण कार्य हुए हैं। विश्वकर्मा जी द्वारा समस्त देवी शक्ति के अनेक रूपों अवतारों के लिए भी आयुध और शस्त्रो की रचना हुयी है। जब जब सृष्टि पर आपत्ति के समय देवी शक्ति द्वारा असुरों और दुष्टों का संहार हुआ था। सभी युद्धो मे शस्त्र - आयुध की जरूरत के समय प्रभु विश्वकर्मा द्वारा निर्माण किए गए थे और देवी शक्तियों को प्रदान किए गए थे। साथ ही देवी शक्तियों के आभूषणों अलंकारों और उनकी मूर्ति और सिंहासन के निर्माण भी प्रभु विश्वकर्मा ने ही किए थे।

(1) शिल्पाधिपति भगवान विश्वकर्मा ने अपने जामाता (दामाद) सूर्य (विवस्वान) के महा तेजस्वी पिण्ड का तक्षण कर उनके 1/8 वे भाग तेजाॅश से निम्नांकित महाआयुधो की रचना कर श्रेष्ट देवी देवताओं को प्रदान किए गए थे जिससे देवी देवता अपार शक्तिशाली हुए थे।
(मार्कण्डेय महापुराण अ. 75 और अ. 105)

शातितास्तेज सोमाज ये त्वष्टा दश यज्ञ च ।
त्वष्टैवतेन शवस्वॅकृतं शलं महात्मना ।।

चक्रं विष्णोवॅस नाचं शक बोध सुदारूणाः।
वावकस्य तथा शेक्तिः शिविका धनदस्य च ।।
(मार्कण्डेय महापुराण अ. 75 श्लोक 17-18) 

(2) पार्वती विवाह के समय अनुपम, अद्भुत विस्तृत मंडप की संरचना, जिसमें समस्त पार्वती देवाधि के सजीव प्रतिमूर्ति आदि का सृजन किया गया था। 
(शिव महापुराण /रुद्र संहिता /पार्वती खंड - अध्याय 41 - श्लोक 1-10 और अध्याय 42 - श्लोक 1-50) 

(3) महालक्ष्मी के सिंहासन की अद्भुत रचना 
(ब्रह्मवैवर्तपुराण /प्रकृति खंड /समुद्र मंथन) 

(4) अलंकारिक रत्नजड़ित उतम रथ का निर्माण किया जिस का उपयोग महामाया (पार्वती) देवी ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेश के साथ विराजमान थे। 
(ब्रह्मवैवर्तपुराण - कृष्ण खंड /4)

(5) विश्वकर्मा ने कई अभेद्य कवच और अस्त्र देकर महिषासुर मर्दिनी को सभी प्रकार के बड़े-छोटे अस्त्रों से शोभित किया।
(शिवमहापुराण)

(6) विश्वकर्मा जी द्वारा निर्मित दिव्य दो कुंडलो को सती अनुसूया ने सीताजी को दिया गया था।
(आनंद रामायण सर्ग - 6/श्लोक 125-126 और सम्पूर्ण रामायण )

(7) प्रजापति विश्वकर्मा ने समस्त देवादि के तेज से उत्पन्न भगवती दुर्गा (अंबिका) को अत्यंत निर्मल फरसा, अनेक प्रकार के अस्त्र, अभेद कवच और उनका अलंकारिक मुकुट अदभुत अम्लान मालाऐ प्रदान किया था।
(दुर्गा सरस्वती - अध्याय /2 - श्लोक 27)
(मार्कण्डेय पुराण - 69/27)

(8) शिव शंभू ने शूल से शूल, विष्णु ने चक्र से चक्र, इन्द्र ने वज्र से वज्र, यमराज ने अपने कालदंड से कालदंड, वरुण ने पाश। ब्रम्हा ने कमंडल भगवती दुर्गा को भेट प्रदान किया। ये समस्त अस्त्र - शस्त्र और आयुध शिल्पाधिपति विश्वकर्मा द्वारा सूर्य तेज़ांश से निर्मित करके ईन देवताओं को पूर्व में दिए जा चुके थे, जिनके प्रतिरूप उन देवादि द्वारा दुर्गा देवी को यहा दिए गए।
(दुर्गा सप्तशती - 2/20-24)
(मार्कण्डेय महापुराण अ. 75 - श्लोक - 17-20)
(मार्कण्डेय महापुराण अ. 105 - श्लोक - 1-5)

(9) धन अलंकार की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी तथा विद्या की देवी सरस्वती जी द्वारा विश्वकर्मा जी के पद - प्रक्षालन किया था। 
(पदम पुराण - भूखंड - अ. 29 /श्लोक 23 मे विश्वकर्मा महात्म)

(10) विश्वकर्मा जी की एक तेजस्वी पुत्री जो संज्ञा, द्यौप्रभा, सरण्यु, रांदल भवानी या छाया के नाम से जानी जाती है जिसका विवाह सूर्यनारायण के साथ हुए थे। 
(विश्वकर्मा महा पुराण)
(मार्कण्डेय पुराण) 
(आदित्य भास्कर) 
(स्कंद और विष्णु पुराण) 

(11) भगवान विश्वकर्मा जी की रिद्धि-सिद्धि पुत्रियाँ जिनका विवाह गणेश से हुया था उनका महत्व ही उनके नाम से जुड़ा हुआ है और जाना जाता है। 

विश्वकर्मा जी के संबंध में अनेक उल्लेखनीय प्रसंग देवी शक्ति और उनकी कथा से जुड़े हुए हैं साथ ही अनेक प्रकार से विश्वकर्मा जी द्वारा अद्भुत क्षमता सहित की सहायता कर चुके हैं। 
विश्वकर्मा साहित्य भारत के माध्यम से प्रचार प्रसार द्वारा जागरुकता अभियान लाने के लिए ऐसे ही अनेक प्रसंग पर विस्तृत जानकारी के साथ लेख पोस्ट करते रहेंगे लेख पसंद आए तो ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और विश्वकर्मा साहित्य भारत के ग्रुप मे जुड़े। 
मयूर मिस्त्री (गुजरात)
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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