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Showing posts from October, 2020

विश्वकमीॅय वैदिक अग्नि प्रकट अरणि यंत्र और अग्नि परिचय

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विश्वकमीॅय वैदिक अग्नि प्रकट अरणि यंत्र और अग्नि परिचय यज्ञ वेदी में माचिस या कंडी आदि से अग्नि प्रदीप्त ज्वलित नहीं की जाती।  यज्ञ के इतिहास विज्ञान पर हम आंशिक चर्चा करे। महावैज्ञानिक यज्ञ चर्चा का प्रारंभ "अरणि मंथन" से ही करते हैं। अरणि नामकरण अरणि के नामकरण की कथा रोचक है। किंतु उससे भी अधिक प्रिय कथा है उस युगल "उर्वशी और चक्रवर्ती पुरुरवा" के प्रणयन की जिनके पुत्र आयु के नाम से अरणि नाम प़डा ।  भारतीय संस्कृति में माचिस से लेकर लाइटर तक मॉडर्न इक्विपमेंट्स उपलब्ध होने के बावजूद आज भी विश्वकमीॅय वैदिक यज्ञ में अग्नि जलाने के लिए सदियों पुराना तरीका ही अपनाया जाता है। महायज्ञ में विश्वकमीॅय वैदिक ब्राह्मणों ने लकड़ी के बने यंत्र से आग उत्पन्न की जिसका यज्ञ में इस्तेमाल किया गया। इस यंत्र को अरणी कहा जाता है।  अरणी परिचय शमी (खेजड़ी) के वृक्ष में जब पीपल उग आता है। शमी को शास्त्रों में अग्नि का स्वरूप कहा गया है जबकि पीपल को भगवान का स्वरूप माना गया। यज्ञ के द्वारा भगवान की स्तुति करते हैं अग्नि का स्वरूप है शमी और नारायण का स्वरूप पीपल,

देवी महा शक्ति के लिए विश्वकर्मा जी द्वारा रचना निर्माण

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देवी महा शक्ति के लिए विश्वकर्मा जी द्वारा रचना निर्माण भारतीय वैदिक संस्कृति एक हाथ में शस्त्र तथा दूसरे हाथ में शास्त्र का संदेश देती है। वैदिक काल मे तत्कालिन भगवान विश्वकर्मा और ऋषि मुनियों ने दुष्टों के दमन हेतु आयुध निर्माण पद्धति को विकसित किया था। भारतीय संस्कृति में सदैव ‘बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय’ का सिद्धान्त विद्यमान रहा है। विश्वकर्मा साहित्य भारत द्वारा अनेक विषय पर लेख आप सभी पढ़ चुके हैं हमारा उद्देश्य मात्र एक ही है कि विश्वकर्मा वंशी के जन-जन तक यह साहित्य द्वारा प्रगतिशील जागरुकता आए और उल्लेखनीय जानकारी प्राप्त हो सके। प्रभु विश्वकर्मा जी द्वारा और उनके वंशागत द्वारा अनेक रचनाएं निर्माण कार्य हुए हैं। विश्वकर्मा जी द्वारा समस्त देवी शक्ति के अनेक रूपों अवतारों के लिए भी आयुध और शस्त्रो की रचना हुयी है। जब जब सृष्टि पर आपत्ति के समय देवी शक्ति द्वारा असुरों और दुष्टों का संहार हुआ था। सभी युद्धो मे शस्त्र - आयुध की जरूरत के समय प्रभु विश्वकर्मा द्वारा निर्माण किए गए थे और देवी शक्तियों को प्रदान किए गए थे। साथ ही देवी शक्तियों के आभूषणों अलंकारों और उनक

बेल मेटल शिल्पकला

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प्राचीन शिल्पकला बेल मेटल शिल्पकला विश्वकर्मा समाज पहले से ही हस्तघडित उद्योग से जुड़ा हुआ है प्राचीन काल में उपयोग होने वाले हस्त से बनाए कला कृति शिल्प और बेजोड़ बेनमून शिल्प कुछ कुछ जगह आज भी कार्यरत देखने को मिल रही है  विश्वकर्मा समाज एक कार्यशील समाज हे उनके जीवन निर्वाह का साधन ही किसी न किसी तरह की कला से जुड़ा हुआ है आज बात करते हैं ऐसे ही एक अनमोल कला की जो अद्भुत और प्राचीन काल से चली आ रही है  छत्तीसगढ़ के अनेक क्षेत्रों में बेल मेटल शिल्प का कार्य होता आया है बेल मेटल शिल्प आदिकाल से हड़प्पा मोहनजोदड़ो सभ्यता के समय भी इस प्रकार के शिल्पों का प्रमाण मिला है इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह शिल्प अत्यधिक प्राचीनतम है। इस शिल्प में कासा एवं पीतल को मिलाकर बेलमेटल की मूर्तियां बनाई जाती है बेल मेटल शिल्प बनाने में भूसा मिट्टी का मॉडल बनाते हैं। मॉडल में चिकनी मिट्टी का लेप करते हैं उसके पश्चात रेत माल पेपर से साफ करते हैं पुनः चिकनी मिट्टी से लेप करते हैं उसके पश्चात मोम के धागे से मॉडल पर डिजाइन बनाई जाती है तथा मॉडल में प्लेन मोम लगाया जाता है मोम के ऊपर चिकनी

मय विश्वकर्मा

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मय विश्वकर्मा मय या मयासुर, कश्यप और दुन का पुत्र, नमुचि का भाई, एक प्रसिद्ध दानव है। यह ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र का आचार्य था। मय विश्वकर्मा (मय दानव) को मयासुर भी कहते हैं। यह बहुत ही शक्तिशाली और मायावी शक्तियों से संपन्न था। मत्स्यपुराण में अठारह वास्तुशिल्पियों के नाम दिए गए हैं, जिनमें देवशिल्पी विश्वकर्मा और मय दानव का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कहते हैं कि यह आज भी जीवित है।  यह भी कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर भी मय दानव ने बनाया और बसाया था। मय दानव के संबंध में बहुत सी ऐसी रोचक बातें जिन्हें जानकर आप दंग रह जाएंगे। अद्भुत वास्तुकार : विश्‍वकर्मा देवताओं के तो मय दानव असुरों के वास्तुकार थे। मय दानव हर तरह की रचना करना जानता था। मय विषयों का परम गुरु है। कहते हैं कि उस काल की आधी दुनिया को मय ने ही निर्मित किया था। ऐसा माना जाता है कि वह इतना प्रभावी और चमत्कारी वास्तुकार भी थे कि अपने निर्माण के लिए वह पत्थर तक को पिघला सकता थे । महत्वपूर्ण निर्माता :  मयासुर ने दैत्यराज वृषपर्वन् के यज्ञ के अवसर पर बिंदुसरोवर के निकट एक विलक्षण सभागृह