विश्वकर्मा ध्वजदंड - विश्वकर्मा साहित्य भारत

विश्वकर्मा ध्वजदंड 
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जिस प्रकार मनुष्य के चेहरे पर नाक प्रमुख है उसी प्रकार मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा का विशेष महत्व है। कोई भी मंदिर की ध्वजा मे मंदिर में बिराजमान देव की पहचान होती है साथ ही शिखर पर ध्वज शोभायमान प्रतीक है ।

  हिंदू धर्म में गेरूआ, भगवा और केसरिया रंग का ध्वज प्रमुख होता है, लेकिन अवसर विशेष पर पीले, काले, सफेद, नीले, हरे और लाल रंग के ध्वज का उपयोग भी किया जाता है। ध्वजों के रंग भिन्न-भिन्न होने के बावजूद सभी का एक प्रमुख ध्वज केसरिया रंग ही होता है। लेकिन अपने इश्‍टदेवता विश्वकर्मा प्रभु के मंदिर का ध्वजादंड विशिष्ट प्रकार का और वैदिक काल से शाश्त्रोक्त विधिवत रूप से मान्य हे। 

    जैसे कि आप देखते आए हैं कि दुनिया के सभी झंडे चौकोर होते हैं लेकिन हिन्दू ध्वज हमेशा त्रिभुजाकार ही होता है। इसमें एक त्रिभुजाकृति या दो त्रिभुजाकृति होती है। भगवा ध्वज दो त्रिकोणों से मिलकर बना है। जिसमें से ऊपर वाला त्रिकोण नीचे वाले त्रिकोण से छोटा होता है। नेपाल का राष्ट्रीय ध्वज दो त्रिभुजाकार का है। इसमें एक पर चंद्र और दूसरे पर सूर्य बना हुआ है। ध्वजों के ऊपर जो चिन्ह अंकित होते हैं उनमें सर्वमान्य और प्रमुख ॐ और त्रिशूल का चिन्ह है ।इसके अलावा विशेष अवसर या समुदाय विशेष के अलग अलग चिन्ह होते हैं ।
लेकिन ॐ अंकित केसरिया ध्वज संपूर्ण हिन्दू जाति समूह का एकमात्र ध्वज होता है। महाभारत में प्रत्येक महारथी और रथी के पास उसका निजी ध्वज और शंख सेना नायक की पहचान के प्रतीक थे। रणभूमि में अवसर के अनुकूल आठ प्रकार के झंड़ों का प्रयोग होता था। ये झंडे थे- जय, विजय, भीम, चपल, वैजयन्तिक, दीर्घ, विशाल और लोल। ये सभी झंडे संकेत के सहारे सूचना देने वाले होते थे।
अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान का चित्र अंकित था। कृपाचार्य की ध्वजा पर सांड, मद्रराज की ध्वजा पर हल, अंगराज वृषसेन की ध्वजा पर मोर और सिंधुराज जयद्रथ के झंडे पर वराह की छवि अंकित थी। गुरू द्रोणाचार्य के ध्वज पर सौवर्ण वेदी का चित्र था तो घटोत्कच के ध्वज पर गिद्ध विराजमान था। दुर्योधन के झंडे पर रत्नों से बना हाथी था जिसमें अनेक घंटियां लगी हुई थीं। इस तरह के झंडे को जयन्ती ध्वज कहा जाता था। श्रीकृष्ण के झंडे पर गरूड़ अंकित था। बलराम के झंडे पर ताल वृक्ष की छवि अंकित होने से तालध्वज कहलाता था। भगवान विष्णु के मंदिर पर ध्वजा मे गरुड़ और शिव मंदिर की ध्वजा मे नंदी और माँ अंबिका की ध्वजा मे सिंह का प्रतीक होता है । 

महाभारत में शाल्व के शासक अष्टमंगला ध्वज रखते थे। महीपति की ध्वजाओं पर स्वर्ण, रजत एवं ताम्र धातुओं से बने कलश आदि चित्रित रहते थे। इनकी एक ध्वजा सर्वसिद्धिदा कहलाती थी। इस ध्वजा पर रत्नजडित घडियाल के चार जबड़े अंकित होते थे। एक अन्य प्राचीन ग्रंथ में लिखा है कि झंडे के ऊपर बाज, वज्र, मृग, छाग, प्रासाद, कलश, कूर्म, नीलोत्पल, शंख, सर्प और सिंह की छवियां अंकित होनी चाहिए।
 
वैदिक एवं पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऋग्वेद काल में धूमकेतु झंडे का खूब प्रयोग होता था। वाल्मीकि रामायण में भी शहर, शिविर, रथयात्रा और रण क्षेत्र के बारे में झंडे का उल्लेख मिलता है। निषादराज गुह की नौकाओं पर स्वस्तिक ध्वज लहराता था। महाराज जनक का सीरध्वज और इनके भाई के पास कुषध्वज था। कोविदार झंडे कौशल साम्राज्य का था।

लेकिन विश्वकर्मा प्रभु की ध्वजा अति विशिष्ट है। पांच रंग के पट्टे द्वारा बनी ध्वजा मे चौड़ी चौमुखी 
होती है जिसमे विश्वकर्मा प्रभु के पांच पुत्रों के हवनकुंड के प्रतीक होते हैं । 
विश्वकर्मा मंदिर की ध्वजा की लंबाई 72" और चौड़ाई 33" होती है। उसमे ध्वजा की चारो तरफ सुवर्ण रंग की पट्टी से किनार को शोभायमान किया जाता है। विश्वकर्मा प्रभु चौसठ कलाओं के ज्ञाता है। जैसे 64 कलाए और 8 वसु मिलाकर 72 " इंच होती है। विश्वकर्मा प्रभु 33 करोड़ देवताओ की शक्ति भी है तो चौड़ाई 33" इंच रखी गई है। 
विश्वकर्मा प्रभु के पांच पुत्रों के प्रतीक समान पांच अलग - अलग रंग के पट्टे ध्वजा मे शामिल हैं। हर एक पट्टे की लंबाई 72 " इंच और चौड़ाई 6" इंच रखने मे आई है। दंड तरफ के भाग मे हर एक पट्टे पर एक हवनकुंड का चिह्न् होता है। प्रथम पुत्र मनु के पट्टे पर सफेद रंग त्रिकोण हवनकुंड अंकित होता है। धृतिय पुत्र मय के पट्टे पर नीला रंग चौमुखी हवनकुंड अंकित होता है। तृतीय पुत्र त्वष्टा के पट्टे पर लाल रंग गोल हवनकुंड अंकित होता है। चतुर्थ पुत्र शिल्पी के पट्टे पर हरा रंग षष्टकोण हवनकुंड अंकित होता है। पंचम पुत्र देवज्ञ के पट्टे पर पीला रंग अष्टकोण हवनकुंड अंकित होता है । लाल रंग के पट्टे पर ॐ का पवित्र चिह्न् होता है। 

ध्वजा को हर अमावस्या के दिन और माध शुक्ल त्रयोदशी और विश्वकर्मा पूजन दिवस (17 सितंबर) के दिन चढ़ाई जाती है। 

विश्वकर्मा वंशीयो को धामधूम हर्षोल्लास से उत्सव मनाकर पचरंगी ध्वजा को चढ़ानी चाहिए और इस ध्वजा का ज्यादा से ज्यादा प्रचार कर समाज के सहभागी बने। 
मेरे लेख द्वारा कोई भी प्रकार की भूल हुयी हो तो माफ करे साथ ही विश्वकर्मा प्रभु के पावन ध्वज को मेरा प्रणाम । 

मयूर मिस्त्री 
विश्वकर्मा प्रचारक 
विश्वकर्मा साहित्य भारत

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