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Showing posts from May, 2020

रामसेतु - एक जीवंत धरोहर - विश्वकर्मा साहित्य भारत

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रामसेतु - एक जीवंत धरोहर  प्रस्तावना आप सब जानते हैं हमारे देश में कई ऐसी धरोहर जो आज भी सनातन के स्थापत्य, कला, निर्माण, कौशल, यात्रा, प्रसंग, पर्व, धर्म, गाथाएं, पौराणिक, प्राचीन, अर्वाचीन, वैदिक, साहित्यिक, वीरता और अनेक प्रकार देखे जा सकते हैं। इन्हें सही पहचान मिले और हमारे पूर्वजों द्वारा रचित यह धरोहरों को विकसित और विकासशील के पथ पर चढ़ाए। ये ग्रंथ मेने अनेक प्रकार के ग्रंथो, पुराणों, लेखक के लेखों, मान्य पुस्तके, सरकारी संशोधन, और पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार लिखने की कोशिश की है। मुझे नहीं पता कि मेरे द्वारा संकलित साहित्यिक सामग्री से एक विषय पर ग्रंथ बन सकता है लेकिन एक छोटी सी कोशिस और ऊपर दिए गए सन्दर्भों के सहयोग से यह बन पाया है। आज अपने देश की धरोहर को सम्मान पूर्वक लिखना और सम्भालना और पढ़ना चाहिए। मेरी यह पुस्तक मे वाल्मीकि रामायण, विश्वकर्मा अंशावतार नल, वीर हनुमान जी, भगवान श्री राम और विश्वकर्मा संबंधित विषयो पर ध्यान केंद्रित रखा है। मे खुद विश्वकर्मा समाज से हू और यह ग्रंथ को विश्वकर्मा समाज और अन्य समाज मे धार्मिक प्रेरणा और जानकारी मिल

विश्वकर्मा ध्वजदंड - विश्वकर्मा साहित्य भारत

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विश्वकर्मा ध्वजदंड  #_विश्वकर्मा_साहित्य_भारत #_JOIN_GROUP_LINK https://www.facebook.com/groups/1478545285635701/ जिस प्रकार मनुष्य के चेहरे पर नाक प्रमुख है उसी प्रकार मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा का विशेष महत्व है। कोई भी मंदिर की ध्वजा मे मंदिर में बिराजमान देव की पहचान होती है साथ ही शिखर पर ध्वज शोभायमान प्रतीक है ।   हिंदू धर्म में गेरूआ, भगवा और केसरिया रंग का ध्वज प्रमुख होता है, लेकिन अवसर विशेष पर पीले, काले, सफेद, नीले, हरे और लाल रंग के ध्वज का उपयोग भी किया जाता है। ध्वजों के रंग भिन्न-भिन्न होने के बावजूद सभी का एक प्रमुख ध्वज केसरिया रंग ही होता है। लेकिन अपने इश्‍टदेवता विश्वकर्मा प्रभु के मंदिर का ध्वजादंड विशिष्ट प्रकार का और वैदिक काल से शाश्त्रोक्त विधिवत रूप से मान्य हे।      जैसे कि आप देखते आए हैं कि दुनिया के सभी झंडे चौकोर होते हैं लेकिन हिन्दू ध्वज हमेशा त्रिभुजाकार ही होता है। इसमें एक त्रिभुजाकृति या दो त्रिभुजाकृति होती है। भगवा ध्वज दो त्रिकोणों से मिलकर बना है। जिसमें से ऊपर वाला त्रिकोण नीचे वाले त्रिकोण से छोटा होता है। नेपाल का राष्ट्रीय ध्वज दो त्रिभुज

देवशिल्पी प्रार्थना - विश्वकर्मा साहित्य भारत

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देवशिल्पी प्रार्थना  निर्मल नयनों से तेरी सृष्टि नीरखु अनंता, रत्न - स्वणाॅ सजावट तेरी अद्भुत विशाला, तेरे सृजन सरोवर को तरसे तालाब सरोवरा, तुम अम्बर अवकाश, तू ही बादल घनघोरा, तुम कला कौशल सहित कलम चित्र चितारा, भौवन, देवशिल्पी कहु तुम विश्वरुपाला, रंग जगत खुशी त्योहार तम अवसरा, समर्पित राहु तम विश्व नवनव आकारा, वषाॅ मेघ धरा स्मित ह्रदय खुशहाला, तुज कृपा फल पुष्प अन्न जनजन भंडारा, रोम रोम चेतन जग संगीतम् सुरताला, रहे आशिष शरण नमन करे मोर मयूरा, ©️मयूर मिस्त्री विश्वकर्मा साहित्य भारत

खराद कला - विश्वकर्मा साहित्य भारत

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काष्ठ कला का हिस्सा खराद कला प्रभु विश्वकर्मा जी की चौसठ कलाओं में से एक काष्ठ कला और उनमे मे से एक कला जो बहुत पुरानी है खराद कला है  यह कला हाथ से या बिजली से चलनेवाली खराद मशीन की सहायता से लकड़ी को छीलकर वांछित आकर दिया जाता है एवं उस पर लाख मिश्रित  रंग चढ़ाने की कला खरादी कला काम कहलाती है।   इस कला पध्दति से आमतौर पर  शंकु आकर, बेलनाकार अथवा गोलाकार आकृतियां बनाई जा सकतीं हैं। रंगांकन भी दो प्रकार से किया जा सकता  है , लाख मिश्रित रंग लगाकर या पहले जलरंग से चित्रकारी कर उस पर पारदर्शी लाख चढ़ाकर।   भारत के विभिन्न राज्यों में प्रचलित यह  कला मध्यकाल में अपने चरमोत्कर्ष थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी यह कला ग्रामीण भारत में अत्यंत लोकप्रिय रही।  विशेष तौर पर खरादियों द्वारा बनाये गए रंग-बिरंगे खिलौने , बच्चा-गाड़ी , किचन सैट, दहेज़ सैट , फिरकी , भौंरा, झुनझुने ,गुड़िया ,सेठ-सेठानी ,इत्रदान, डिब्बियां ,घरेलु उपकरण जैसे रई ,मूसल ,दही बिलोनी, ओखली, चारपाई और पलंग के पाए , हुक्के की नलकी, शतरंज के मोहरे , चौपड़ की गोटियां आदि लगभग प्रत्येक घर  का अभिन्न अंग होते थे। इसके अतिरिक्त फर्नीचर