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Showing posts from October, 2022

भगवान विश्वकर्मा निर्मित सुदर्शन चक्र

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भगवान विश्वकर्मा निर्मित सुदर्शन चक्र क्षिप्तं क्षिप्तं रणे चैतत् त्वया माधव शत्रुशु । हत्वाप्रतिहतं संख्ये पाणिमेष्यति ते पुनः ।।  - महाभारत, आदिपर्व  ॐ साधनं नास्ति सर्वलोकानां सर्वसाधक:।  करोति लोहकर्माणि, लोकान् रक्षति सानग:।।  ओम् ददौ शस्त्राणि देवानां, दुष्टनिग्रहकारणात्।   ॐ स च सर्वजगत्कर्ता, सद्योजातमुखोद्भभव:।।  ओम् शूलं ददाति भर्गाय, चक्रं दत्तंच विष्णवे।  पाशस्तु ब्राह्मणे दत्तो, निर्मूत्यागमसानग:।।  यजुर्वेद अध्याय ३१, मंत्र १७ के अनुसार भगवान् विश्वकर्मा ने पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश और वायु की रचना की है । आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण भगवान विश्वकर्मा के द्वारा किया गया है । पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होने वाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है । कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान् का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान् का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान् विश्वकर्मा ने ही किया है । श्रीकृष्ण को आग्ने

नारदजी की वीणा

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नारदजी की वीणा  मुनियों की सभा में सूत कथा कह रहे थे नए-नए प्रश्नों में नहीं कथा के बारे में कुलपति मुनि शौनक नई नई चर्चाऐ सुनते रहते थे और सभी को सुनने में तल्लीन भी कर रहे थे तभी वहां पर वीणा का मधुर स्वर सुनाई दिया।खा सभी ने आकाश मठ की तरफ देखा तो देवश्री नारद आ रहे थे। उनकी देवी वीणा पर उनकी उंगलियां फिरते मधुर ध्वनि उत्पन्न हो रही थी और उस ध्वनि ऑन के साथ नारायण नारायण नाम का उच्चार भक्ति मार्ग सहीत नारद जी आ रहे थे। श्रोता वक्ताओं और सभी ने खड़े होकर देवर्षि नारद जी का अभिवादन किया और उनको उचित आसन देकर मुनि शौनक मैं उनका अध्यॅ पाद्य आदि अर्पण कर के पूजन किया। सदा में देवर्षि विराजे और मुनि शौनक ने प्रश्न किया हे देवर्षि आपके जैसे महापुरुष के दर्शन निरथॅक नहीं होते। आज हम सबको आपके दर्शन हुए हैं वही हमारा अहोभाग्य है आपका आगमन का कोई शुभ है तू है वह तो हमें कहिए और साथ ही आपके सत्संग का हमें भी लाभ दीजिए। देवर्षि बोले है - हे मुनिओ आपको धन्य है की आप सभी इस तरह के ज्ञानसत्रो की योजना कर नित्य ज्ञानचर्चा के द्वारा परमात्मा की भक्ति कर रहे हो। मैं आकाश मार्ग पर स्वर्ग ग

द्वापर की द्वारिका

मन्त्रमुग्ध द्वारिका विश्वकर्मा जी के द्वारा अनेक निर्माण कथाएं प्रचलित और ग्रंथो मे वर्णित है। भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित द्वारिका सभी निर्माणों में सबसे श्रेष्ट है। और अनंत सुख सुविधा से परिपूर्ण नगरी बनाई गई थी। कहा जाता है कि विश्वकर्मा जी ने गज के द्वारा चारो युगों मे महत्वपूर्ण निर्माण किए हैं। सत्ययुग मे सोने के गज से अमरावती नगरी का निर्माण किया था। त्रेतायुग मे चांदी के गज से लंका नगरी का निर्माण हुआ था। द्रापरयुग मे चंदन और बांस के गज के द्वारा द्वारिकापुरी का निर्माण किया था। और कलियुग में काष्ठ और लौह से बने गज द्वारा चौसठ कलाओं का निर्माण किया था। भारतवर्ष की सात मोक्षदायिका पुरियों में से द्वारावती एक है जो द्वारका के रूप में विख्यात है। विविध पुराणों में द्वारकापुरी को कुशस्थली, गोमती द्वारका, चक्रतीर्थ, आनर्तक क्षेत्र एवं ओखा-मण्डल(उषा मंडल) इत्यादि विविध नामों से अभिहित किया है। माना जाता है कि महाराज रैवत ने समुद्र के मध्य की भूमि पर कुश बिछाकर एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था, जिस कारण इस भूमि का नाम कुशस्थली पड़ा। एक अन्य मत के अनुसार कुश नामक दैत्य के नाम से कुशस