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Showing posts from July, 2022

श्री देवतणखीजी और लीरलबाई का जीवन चरित्र

श्री देवतणखीजी और लीरलबाई का जीवन चरित्र प्रस्तावना हमारे भारत देश में कई संत महात्मा हो गए, भारतीय संस्कृति ऋषि, मुनि, संत, स्वामी, सती, साधु, महात्मा जैसे कई महान विभूतियों की बनी धरोहर है। हमारा गुजरात भी इसी संस्कृति का अहम हिस्सा है। यहा गुजरात के सौराष्ट्र प्रदेश की भूमि संत महात्मा ओ की भूमि से प्रचलित है। हमारे विश्वकर्मा समाज में बहुत सारे संत महात्मा हो चुके हैं, उनमे से आज विश्वकर्मा लोहार समाज के संत शिरोमणि श्री देवतणखी दादा और लिरलबाई के जीवन चरित्र के बारे में यह ग्रंथ लिखा गया है। यह ग्रंथ को संत महात्मा और वरिष्ठ जनों के अनुभव द्वारा तमाम विवरण का अभ्यास कर और बहुत सारी पुरातन पुस्तकों के आधार और मह्त्वपूर्ण प्रमाणो के साथ यह जीवन चरित्र समाज को समर्पित कर रहे हैं। यह ग्रंथ में कोई क्षति भूल या व्याकरण भूल हो गई हो तो क्षमा करे क्यूंकि मनुष्य मात्र भूल के पात्र इसीलिए उन्हें सुधार करने की तक देनी चाहिए। हालाकि यह जीवन चरित्र मे छोटे से छोटी भूल को सुधारने की कोशिश की गई है, हरएक चरित्र और नामकरण को पाने के लिए हमने बहुत ही संघर्ष किया है जिसका पुख्ता प्रमाण मिलने पर ही

वास्तुशास्त्र के प्रवर्तक आचायों

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वास्तुशास्त्र के प्रवर्तक आचायों शास्त्रबुध्द्रा विभागजः परशास्त्रकुतूहलः । शिल्पीभ्यः स्थपतिभ्यश्च आददित मति सदा ।। वास्तु विज्ञान जीवन आधारित विषय है। वास्तु को जीवन के महत्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में माना गया है। इसीलिए विश्वकर्मा, मय, मान, प्रह्यादि ने वास्तु शास्त्र के मह्त्वपूर्ण सिध्दांतों को दिया है। विश्वकर्मा आदि देव शिल्पीओ भी निर्देश करते हैं कि गृह वास्तु सदा सुखी और पुण्य फल की प्राप्ति है। विधि अनुसार गृह निर्माण के कर्ता को देवालय आदि निर्माण में पुण्य फल प्राप्त होता है। वाल्मीकि द्वारा संकेत किया है कि उस समय लक्षणमय स्थापत्य मे विश्वकर्मा का अधिक महत्व होता था। उसके साथ साथ प्रतिमादि और मय कला का महत्व भी उपमेयवत था।  मत्स्य पुराण और अन्य शिल्प ग्रंथो मे वास्तु शास्त्र के अठारह आचार्यो के नाम दिए गए हैं। वास्तुशास्त्र पर उच्च कोटि के शिल्प ग्रंथो की रचना उन्होंने की है ऐसा कहा गया है। अन्य शास्त्रों पर भी उन्होंने ग्रंथो की रचना की है। प्राचीन काल में ऋषि मुनिओने अरण्य के शांत वातावरण में रहकर विद्या के जिज्ञासुओ को अपने आश्रम में रखकर उन्हें विद्या दान की ह

विश्वकर्मा वंश रत्न स्वामी कल्याणदेव जी

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विश्वकर्मा वंश रत्न स्वामी कल्याणदेव जी (1876 - 14 जुलाई, 2004)  विश्वकर्मा समाज के और भारत देश के समाज सुधारक स्वामी कल्याण देव महाराज जी को विश्वकर्मा साहित्य भारत और श्री विश्वकर्मा साहित्य धर्म प्रचार समिति की तरफ से भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। भारत के एक संन्यासी थे। अपने संयासी जीवन मे स्वामी जी ने 300 शिक्षण संस्थाओं का निर्माण कराया। साथ ही कृषि केन्द्रों, वृ़द्ध आश्रमों, चिकित्सालय, आदि का निर्माण कराकर समाज मे अपनी उत्कृष्ट छाप छोडी। उन्हें सन 2000 में भारत सरकार ने समाज सेवा क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। स्वामी कल्याण देव महाराज का जन्म वर्ष 1876 मे जिला बागपत के गांव कोताना मे उनकी ननिहाल मे हुआ था। उनका पैतृक गांव कस्बा सिसौली के पास मुंडभर है। उनका जन्म विश्वकर्मा परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम फेरु दत्त तथा माता का भोई देवी था। परिवार में संत-महात्मा आते थे, सत्संग और यज्ञ होता था। तीन भाइयों राजा राम, रिसाल सिंह में कालूराम सबसे छोटे थे। बचपन में रामायण सुनकर वैराग्य हो गया। दस-बारह बरस की उम्र में साधु मंडली के साथ अयोध्या, काशी,