Posts

Showing posts from March, 2022

विश्वकर्मिय ध्वज आरोहण पूजा विधान

Image
विश्वकर्मिय ध्वज आरोहण पूजा विधान हिंदू धर्म और अपने विश्वकर्मा समाज में घर और मंदिर की छत या शिखर पर ध्वज लगाने को शुभ और असरदायक माना जाता है। यह ध्वज कई कारणों से लगाया जाता है। हालांकि वास्तु - ज्योतिष के अनुसार ध्वज लगाने के कारण और उनके लाभ अलग-अलग हैं। भारत की सनातन संस्कृति की धरोहर का सांस्कृतिक दूत है। आदि काल से वैदिक संस्कृति, सनातन संस्कृति, हिंदू संस्कृति, आर्य संस्कृति, भारतीय संस्कृति एक दूसरे के पर्याय हैं जिसमें समस्त मांगलिक कार्यों के प्रारंभ करते समय उत्सवों में, पर्वों में, घरों-मंदिरों-देवालयों-वृक्षों, रथों-वाहनों पर विश्वकर्मा ध्वज की पताकाएं फहराई जाती रही हैं। परंपरागत रूप से, विश्वकर्मा ध्वज पांच रंगों में वर्णित आते हैं। पांच रंग पांच तत्वों और पांच शुद्ध रोशनी का प्रतिनिधित्व करते हैं । ध्वज का माप 72 इंच चौड़ाई और 33 इंच लंबाई का शास्त्रोक्त माप है।  विशिष्ट परंपराओं, उद्देश्यों और साधना के लिए विभिन्न तत्व अलग-अलग रंगों से जुड़े होते हैं ।  सफेद रंग शांति और शुद्ध हवा का प्रतीक है जो विश्वकर्मा प्रथम पुत्र मनु उनका कर्म लोहकमॅ का प्रतीक है, साथ में ध्वज

महाभारत में वर्णित कुछ नगर आज भी मौजूद

Image
महाभारत में वर्णित कुछ नगर आज भी मौजूद  भारत देश महाभारतकाल में कई बड़े जनपदों में बंटा हुआ था। हम महाभारत में वर्णित जिन 35 राज्यों और शहरों के बारे में जिक्र करने जा रहे हैं, वे आज भी मौजूद हैं। आप भी देखिए। 1. गांधार - आज के कंधार को कभी गांधार के रूप में जाना जाता था। यह देश पाकिस्तान के रावलपिन्डी से लेकर सुदूर अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी वहां के राजा सुबल की पुत्री थीं। गांधारी के भाई शकुनी दुर्योधन के मामा थे। 2. तक्षशिला -  तक्षशिला गांधार देश की राजधानी थी। इसे वर्तमान में रावलपिन्डी शहर के पास यह जगह  है। तक्षशिला को ज्ञान और शिक्षा की नगरी भी कहा गया है। 3. केकय प्रदेश -  जम्मू-कश्मीर के उत्तरी इलाके का उल्लेख महाभारत में केकय प्रदेश के रूप में है। केकय प्रदेश के राजा जयसेन का विवाह वसुदेव की बहन राधादेवी के साथ हुआ था। उनका पुत्र विन्द जरासंध, दुर्योधन का मित्र था। महाभारत के युद्ध में विन्द ने कौरवों का साथ दिया था। 4. मद्र देश -  केकय प्रदेश से ही सटा हुआ मद्र देश का आशय जम्मू-कश्मीर से ही है। एतरेय ब्राह्मण के मुताबिक, हिमालय के न

कब मिलेगा प्रभु विश्वकर्माजी को सम्मान

Image
कब मिलेगा प्रभु विश्वकर्माजी को सम्मान यहा तो विश्वकर्मा वंशी सम्मान के लिए एक दूसरे के विरोधाभास होते रहते हैं। कभी साहित्यिक, कभी राजनैतिक, कभी लिखित, कभी मंच पर, कभी संस्थाकीय, तो कभी पंथ के आवेश (बातों) में आकर खुद को सही (बात को) ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। खुद के सम्मान के लिए इतना सोचा जा रहा है लेकिन कभी सोचा है जिनके हम वंश से हे और उनकी वंश परंपरागत संस्कृति हमारे रग रग मे हे क्या हमने सही मायने में हमारे आराध्य देव (इस्टदेव) भगवान विश्वकर्मा जी को सम्मान देने के लिए सोचा ही नहीं। सम्मान विश्वकर्माजी का मंदिर धर्मशालाएं या मेरेज हॉल या शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण से वंश को फायदा और सुविधा उपलब्ध होती है। सही अर्थों में हवन, अनुष्ठान, विश्वकर्मा तिथि पर्व, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्वकर्मा प्रभु ने भारत में जहा जहा निर्माण किए वह सभी जगहो पर  विश्वकर्मा जी का शिलालेख या स्थान परिचय का आधार पहचान होना चाहिए जो कहीं भी नहीं है न इन्द्रप्रस्थ, काशी के विश्वकर्मणेश्वर लिंग स्थान, न वृंदावन। न सुदामापुरी, और न रामसेतु, और न ही द्वारिकापुरी मे कोई भी स्थान पर

प्राचीन वैदिक घड़ी

Image
विश्वकर्मा साहित्य भारत वैदिक प्राचीन घड़ी बहुत ही उत्तम प्रकार से अपने ऋषि मुनियों ने संशोधन कर यह घड़ी की रचना की है। वैदिक प्राचीन घड़ी के चित्र के माध्यम से हम समय को नाम से बोल सकते हैं। जिसमें 1 से 12 अंकों के स्थान पर विभिन्न देवताओं के नाम लिखे हे । वो एक अनसुलझी पहेली की भांति थी किन्तु अचानक गौर करने पर इसका रहस्य समझ में आ सकता है । मेने सोचा थोड़ा संशोधन कर इस पर लेख जरूर लिखना चाहिए तो एक लेख के रूप में प्रयास किया है। इस चित्र में आप देख सकते हैं कि इस घडी में 1 से 12 के स्थान पर क्रमांक पर ब्रह्म, अश्विनौ, त्रिगुणा, चतुर्वेदा, पञ्चप्राणा:, षड्रसाः, सप्तर्षयः, अष्टसिद्धयः, नवद्रव्याणि, दशदिशः, रुद्राः एवं आदित्याः लिखा है। ये सभी देवताओं अथवा गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं और जिस स्थान पर वे हैं उनकी संख्या भी उतनी ही है। इनमें से 12 आदित्य, 11 रूद्र एवं 2 अश्विनीकुमारों की गिनती हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 33 कोटि देवताओं में की जाती है। इनमें एक समूह 8 वसुओं का भी है जो इस चित्र में वर्णित नहीं है। ब्रह्म: हमारे पुराणों में आदि एवं अंत ब्रह्म से ही माना गया