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Showing posts from November, 2021

प्रयास मे छुपी हे सफलता

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प्रयास मे छुपी है सफलता सुमन्तपुर मे राजा लाखवीर का राज्य शासन था। सुमन्तपुर की सरहद के पास सुखदास नाम का एक शिल्पी रहता था। वह शिल्पकला मे अत्यंत निपुण कारीगर था। सुंदर, कलात्मक एवं भव्य मूर्तिओ का सृजन किया करता था। एक दिन राजा लाखवीर वहा से गुजर रहे थे उन्होंने यह मूर्ति और शिल्पकला को देखकर बहुत मुग्ध हो गए। उन्होंने अपना रथ रोककर मूर्तिकार सुखदास को मिलने गए। उन्होंने शिल्पकार से खुद की मूर्ति बनाने का आदेश दिया। शिल्पकार सुखदास ने उनकी मूर्ति बनाने का काम शुरू किया। मूर्ति बनाते वक़्त जो कल्पना थी उस हिसाब से मूर्ति बन नहीं रही थी। उसने अनेक बार प्रयास किया लेकिन राजा लाखवीर की मूर्ति को सुंदरता नहीं दे पाए थे। इसीलिए वो हिम्मत हार के बाजू में निराशा से बैठ गया। इतने में उसकी नजर एक चीटि पर पडी। वो गेहू का दाना लेकर दीवार पर चढ़ने का प्रयास कर रही थी। चीटि ने अपना प्रयास जारी रखा और गेहू का दाना लेकर दीवार पर चढ़ने मे सफल हुयी। शिल्पकार सुखदास ने यह देखकर मन में विचार किया कि बारंबार प्रयास करने से सफलता जरूर मिलती है। निरंतर प्रयास करने से एक छोटी सी चीटि को भी सफलता

वास्तुशास्त्र और वास्तुपुरुष उत्पत्ति

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वास्तुशास्त्र और वास्तुपुरुष उत्पत्ति वास्तुमूर्तिः परमज्योतिः वास्तु देवो पराशिवः वास्तुदेवेषु सर्वेषाम वास्तुदेव्यम  (समरांगण सूत्रधार, भवन निवेश)  वास्तुशास्त्र—अर्थात गृहनिर्माण की वह कला जो भवन में निवास कर्ताओं की विघ्नों, प्राकृतिक उत्पातों एवं उपद्रवों से रक्षा करती है. देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो. आदि काल में मानव का निवास स्थल वृक्षों की शाखाओं पर हुआ करता था। कालांतर में उसमें जैसे-जैसे बुद्धि का विकास होता गया वैसे-वैसे उसने परिस्थिति के अनुसार उपलब्ध सामग्री यथा बांस, खर पतवार, फूस, व मिट्टी आदि का उपयोग करके कुटियानुमा संरचना का अविष्कार किया तथा उसे निवास योग्य बनाकर उसमें निवास करने लगा, यह भवन का मात्र प्रारंभिक स्वरुप था वैदिक काल में भवन बनाने का विज्ञान चरम सीमा तक जा पहुंचा, हमारे धर्मग्रंथों में भी देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा का उल्लेख आता है जिन्होंनें रामायण काल से पूर्व लंका नगरी तथा महाभारत