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Showing posts from October, 2021

निराकार निरंकुश

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निराकार निरंकुश खुले निराकार निरंकुश आकाश में हंसता घमंड, सूअर सी सोच जड़ बुद्धि को बनाता बढ़ा अखंड,  रोती है विद्वता, सशक्त होती प्रमाणता,  इस लाचार, छटपटाहट , थोपता,  निराकार तालमेल से बना समाज, सनातन के शासन में डाल रहा टांग है,  साझेदार, श्रेष्टता सी ओट में छिपता , दया करू, अस्तित्व जाल में फंसता है,  असंख्यों की भीड़ में मूर्खता,  छेड़ा है पर्याय, जैसे सागर की गहराई,  दिखे सुने तो मापे, चट्टानें...!  कमान मजबूत सनातन का है श्रृंगार,  इत्तर सा अवशेष बचा रहेगा ,  जो द्वार दर द्वार निहारेगा, भटकेगा,  कलियुग के ऋषि, रुकेगा तू कहा , सनातन की धार में कटेगा एक रोज़,  मुर्ख का आईना मुर्ख समान,  कटाक्ष है मेरा इस अद्रश्य पर्याय से,  कोई नही मिलेगा, मिले तुझे विश्वकर्मा,  इनके सिवा न होगा तेरा उम्मीदवार,  (रचनाकार - मयूर मिस्त्री) (विश्वकर्मा साहित्य भारत)

महर्षि स्वरूपा भगवान भौवन विश्वकर्मा

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वैदिक सूक्तो मे विश्वकर्म और विश्वकर्मा  महर्षि स्वरूपा भगवान भौवन विश्वकर्मा  भौवन विश्वकर्मा - महर्षि आपत्य के भौवन विश्वकर्मा हुए। उनका जन्म माध शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था। उनके विषय में ऋग्वेद मे विस्तार से बताया गया है।  एतत स्वयंभुवो सजन वनं दिव्यं प्रकाशते । यत्रायजत राजेन्द्र विश्वकर्मा प्रतापवान॥ वनवास के समय अर्जुन इन्द्र के पास शिक्षा प्राप्त करने गये थे। लोमश ऋषि ने अर्जुन द्वारा प्रदत्त सन्देश युधिष्ठिर आदि पाण्डवो को सुनाकर उन्हे साथ लेकर यात्रा प्रारम्भ की। वर्तमान मे उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल के तीर्थो पर होते हुए वे उत्कल प्रदेश मे प्रविष्ठ हुये उस समय उन्होने युधिष्ठिर से ये शब्द कहे थे- हे राजन! यह स्वयंभू ब्रह्मा का दिव्य वन प्रकाशित हो रहा है। यहाँ प्रतापी राजाओ के इन्द्र(भौवन) विश्वकर्मा ने यज्ञ किया था। इससे द बाते स्वत: प्रमाणित हो जाती है | 1. यह दिव्य वन परसुराम की तपो भूमि महेन्द्र पर्वत के निकट उत्कल प्रदेश मे था अत: स्वयंभू भारत मे ही उत्पन्न हुए। 2. इनका काल महाभारत से पूर्व है। इनके काल पश्चात भौवन विश्वकर्मा हुये तथा उन्होने सर्वमेघ यज्ञ किया ।